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Haryana Assembly Election 2024 : ऐतिहासिक नगरी हांसी विधानसभा का राजनीतिक इतिहास, 1952 से 2019 तक

हांसी हरियाणी की सबसे बड़ी ऐतिहासिक नगरी में से एक है। बताया जाता है कि ये शहर कभी हरियाणा (उतरी भारत का क्षेत्र) की राजधानी हुआ करता था। इतिहासकारों का एक पक्ष कहता है कि हाँसी देश में अंग्रेजों के आगमन से पहले जॉर्ज थॉमस के दौर में उत्तरी भारत के दिल्ली परगना के अधीन प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में शुमार था, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के उत्तरी भारत में पैर पसारने के साथ ही हांसी का इलाका विकास के मामले में पिछाड़ दिया। 

1857 के विद्रोह में इस क्षेत्र के लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत से जमकर लोहा लिया था। कुछ इतिहासकारों का तर्क है कि इस विद्रोह से पहले हांसी से ही अंग्रेज यही से प्रशासनिक प्रक्रिया संभालते थे। लेकिन अंग्रेजी शासन से मुखालफत करने के कारण ही अंग्रेजों ने हांसी से जिले की उपाधि छीन ली और हिसार को जिला बना दिया। जहां से वो बैठकर राज करने लगे। हालाँकि इसकी कोई पुख़्ता तारीख़ नहीं है लेकिन 1870-80 दशक में ये बदलाव माना जाता है।

हाँसी का राजनीतिक इतिहास

हाँसी में पहला चुनाव 1952 में हुआ। यह क्षेत्र पहले से ही हिसार ज़िले में आता था। हिसार लोकसभा के हांसी विधानसभा क्षेत्र से 1952 के प्रथम चुनाव में कांग्रेस के लाजपत राय विधायक चुने गये। उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी को हराया। 

1957 के विधानसभा चुनाव में यह सीट आरक्षित हो गई। आरक्षित सीट पर कांग्रेस के दलबीर सिंह चुने गए। 1962 में हांसी से एक सामान्य वर्ग से प्रतिनिधि चुनना था। इस बार सोशलिस्ट पार्टी के टेकराम विधायक चुने गए। उन्होंने कांग्रेस के सरूप सिंह को हराया।

इशार सिंह ने हरि सिंह की रोकी हैट्रिक

1967 में कांग्रेस के हरि सिंह ने आजाद उम्मीदवार को हराया। 1968 में विशाल हरियाणा पार्टी के अजीत सिंह को पराजित कर हरि सिंह दोबारा विधायक बने। 1972 में निर्दलीय इशार सिंह ने हरी सिंह को हराकर उन्हें हैट्रिक लगाने से रोका।

1977 में स्वतंत्रता सेनानी बलवन्त राय तायल ने जनता पार्टी प्रत्याशी के रूप में आजाद उम्मीदवार अमीर चन्द मक्कड़ को हराकर जीत दर्ज की।

1982 में लोकदल के अमीर चन्द मक्कड़ कांग्रेस के हरि सिंह से हार गए। 1987 में स्वर्गीय छज्जूराम के पुत्र प्रदीप चौधरी ने यह सीट जीत कर बीजेपी की झोली में डाल दी।

1991 में अमीर चन्द ने आजाद चुनाव लड़कर निर्दलीय अतर सिंह सैनी को हराया। 1996 में अतर सिंह सैनी ने हविपा से चुनाव जीता। उन्होंने अमीर चन्द मक्कड़ को पराजित किया।

2000 में मिली इनेलो को जीत

2000 में इनेलो के सुभाष चंद यहाँ से विजयी हुए। उन्होंने निर्दलीय अमीर चन्द को पराजित किया।

2005 में मक्कड़ कांग्रेस की ओर से लड़े और निर्दलीय विनोद भ्याना को पराजित किया। इनेलो की सत्य बाला तीसरे बीजेपी के पीके चौधरी चौथे स्थान पर रहे।

2009 में हरियाणा जनहित कांग्रेस के विनोद भ्याना ने कांग्रेस के प्रो। छतरपाल सिंह को शिकस्त दी।

2014 में तीन बड़े खिलाड़ी मैदान में थे लेकिन रेणुका बिश्नोई ने जीत दर्ज की। उन्होंने इनेलो के उमेद लोहान को पराजित किया। बीजेपी के छतर पाल तीसरे कांग्रेस के विनोद भ्याना चौथे स्थान पर रहे।

2014 के विधानसभा चुनाव का परिणाम

रेणुका बिश्नोई (हजकां)-46335, उमेद लोहान (इनेलो)- 31683, प्रो. छतर सिंह (बीजेपी)- 24242, विनोद भ्याणा (कांग्रेस)- 22244, राव कुलदीप (आजाद)-1767

कुलदीप बिश्नोई की पत्नी रेणुका बिश्नोई ने हांसी से पहले 2011 में आदमपुर विधानसभा से उपचुनाव जीता था। उसके बाद 2014 में हांसी से विधानसभा में जीत दर्ज की थी। भजनलाल परिवार से रेणुका बिश्नोई ही ऐसी नेता हैं, जिन्होंने अभी तक हार का सामना नहीं किया है। आदमपुर के बाद हांसी विधानसभा सीट को भजनलाल परिवार का गढ़ माना जाता है। 


2019 के विधानसभा चुनाव का परिणाम

2019 में यहाँ से बीजेपी के विनोद भ्याणा ने बाज़ी मारी। कांग्रेस से बीजेपी में आए भ्याणा ने जेजेपी को 22,260 वोटों से हराया। दूसरे नंबर पर जजेपी के राहुल मक्कर रहे। जबकि तीसरे नंबर पर इनेलो के प्रेम सिंह मलिक रहे। 

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