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हरियाणा के सांग शिरोमणी पंडित मांगेराम सांगी के बारे जानिए जिनके सांग आज भी इतने लोकप्रिय

Pandit Mangeram Sangi


Naya Haryana : पंडित मांगे राम जी का हरियाणा के लोक साहित्य में काफी ऊंचा स्थान है। उन्होंने हरियाणा के लोक जीवन को अपनी रागनी और सांगो के द्वारा बहुत कुछ दिया है। पंडित मांगे राम जी का जन्म 5 अप्रैल,1905 में गांव सिसाणा में हुआ था। 


पंडित जी के माता पिता अमर सिंह व धर्मो देवी ने जन्म के कुछ साल बाद उनके नाना उदमी राम को गोद दे दिया था, क्योंकि उनके नाना उदमी राम जी के कोई संतान नहीं थी। इनके पांच भाई व दो बहने थी। 


इनकी शादी छोटी उम्र में रामेति देवी के साथ 1919 ईo में खरहर गांव में हुई, जिससे एक पुत्र व दो पुत्रियां हुई वह पुत्र 9 माह की आयु में गुजर गया। इस कारण इन की दूसरी शादी केड़ी मदनपुर गांव में पिस्तादेवी के साथ सन 1947 में कर दी गई। उनकी पहली पत्नी की इच्छा व पुत्र की चाहत में दूसरा विवाह संपन्न हुआ और इनकी दूसरी पत्नी से पांच पुत्र और तीन पुत्रियाँ हुई।


पिस्तो देवी जी यानि धर्मपत्नी कवि शिरोमणि पण्डित मांगेराम


पंडित मांगेराम उस जमाने के मुताबिक प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाएं। उनको गाने व बजाने का शौक बचपन से ही था और अपने जीवन यापन के लिए खेती बाड़ी पर निर्भर थे। उन्हें घूमने फिरने का बहुत शौक था और इसी शौक के चलते उन्होंने अपना एक निजी वाहन खरीद रखा था जिससे हरियाणा व उसके आस पास के राज्यों में भ्रमण करते थे। 


इसी निजी वाहन के माध्यम से उनकी दोस्ती उस समय के मशहूर सांगी पंडित लख्मीचंद से हुई और इसी दोस्ती के फलस्वरूप पंडित मांगे राम ने पंडित लख्मीचंद को अपना गुरु मान लिया और उनके बेड़े में शामिल हो गए। परंतु पंडित मांगेराम किन्हीं कारणों से अपने गुरु पंडित लख्मीचंद के साथ केवल छह माह साथ रहे। 


इसके बाद उन्होंने अपना अलग बेड़ा बनाकर सांग करना शुरु कर दिया। उन्होंने हरियाणा में लोक संस्कृति को एक नई राह दिखाई और हमेशा अपनी बनाई हुई रचनाओं को ही रागनी के माध्यम से गाया। इन्हीं रागनियों व रचनाओं के माध्यम से वह आज भी लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं। 


अपने शब्दों के माध्यम से उन्होंने हरियाणा के अनेक गांव में स्कूल निर्माण, मंदिर, जोहड़, गौशाला तथा अनेक जनहित के कार्य सांग व रागनियों के माध्यम से पूर्ण करवाएं। जिस कारण उनको आज भी समाज में एक ऊंचा स्थान व आदर के साथ याद किया जाता है।


पंडित जी का परिवार भी राजनीति में अपना खास स्थान रखता था। उनके भाई श्री रामचंद्र शर्मा राज्यसभा सांसद व हरियाणा कांग्रेस के महासचिव रहे। अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए उन्होंने 16 नवंबर, 1967 को गढ़ मुक्तेश्वर के मेले में गंगा जी पर अपना शरीर त्याग दिया था। जिसका संकेत उन्होंने 7 वर्ष पहले ही अपनी रागनियों के माध्यम से बता दिया था:-


" एक दिन तेरे बीच गंगे मांगेराम आने वाला

मिल ज्यागा तेरे रेत में, कित टोवैगा संसार "।


मांगेराम जी ने 42 सांगो की रचना की जो विभिन्न विषयों पर केंद्रित थे। उन्होंने सामाजिक, वीरता से भरपूर देशभक्ति ऐतिहासिक व पौराणिक सांगो की रचनाएं की। इसके साथ-साथ उन्होंने अनेकों फुटकर रागनियों की भी रचना की और उन्हें गाया। 


लोकगीत एवं सांग संस्कृति हरियाणा की विशेष पहचान है तथा इस संस्कृति को समृद्ध बनाने में लोककवि मांगेराम का भी योगदान रहा है। सांगी लख्मीचंद के शिष्य मांगेराम ने सांग-कला को आकाश की बुलंदियों तक पहुंचाने में विशेष योगदान दिया है जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।


हरियाणा के शिरोमणि कवि पण्डित दादा मांगेराम सांगी(पांची) की 57वीं पुण्यतिथि पर कोटि कोटि नमन।


साहित्य रचना


निसन्देह पं. मांगेराम हरियाणा के लोक साहत्यि के सबसे बड़े व ऊंचे स्थान पर वैसे ही नही पहुँचें। उन्होनं 40 सांगों की रचना की।


1. ध्रुव भगत 2. कृष्ण जन्म 3. वीर हकिकत राय 4. भगत सिंह 5. सैन बाला 6. जादू की रात 7. रूप बन्सत 8. नौ रत्न 9. सती सुशीला 10. सरवीर नीर 11. पिंगला भरथरी 12.वीर विक्रता जीत 13. चन्द्र हास 15. द्रौपदी चीर हरण 16. हीर रांझा 17. कृष्णा जन्म 18. रूकमणी हरण 19. कृष्ण सुदामा 20. जयमन्यफता 21. शिवाजी का ब्याह 22. शकुन्तला दुष्यन्त 23. धमन ऋषि 24. देवयानी सर्मिष्ठा 25. नल दमयन्ती 26. महात्मा बुद्ध 27. अजीत सिंह राजबाण 28. अमर सिंह राठौर 29. जयमल फेता दूसरा भाग 30. धायसिंह 31. सुलतान निहाल दे इत्यादि इसके अलावा उन्होनें राजनिति पर भक्ति के ऊपर रचानाओं, लोक व्यवहार की रागनियों, स्वाधीनता संग्राम व आजादी की लड़ाई का बखूबी अपनी रचानाओं में जिक्र किया और बहुत ही लोक प्रिय रचनाएं बनाई।


उस समय में आजादी के नेताओं में महात्मा गान्धी, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल के ऊपर रचानाओं का निर्माण किया। फुटकर रचानाओं की कोई कमी नही थी। लोक सेवा उन्होनें हरियाणा के 300 के लगभग गांवों में गांव वासियों के साथ मिलकर सांग के माध्यम से चन्दा इक्कठा करके स्वयं मन्दिर, गऊशाला, जोहड़ तालाब आदि का निर्माण किया। 


गरीबों के परिवारों के लिए उनकी लड़कियों की शादियां करवाई सांग के माध्यम से। परिवार प्रेम- अपने भाईयों को पढा-लिखा कर हरियाणा में नाम करवाया। 


रामचन्द्र शर्मा एडवोकेट कांग्रेस के अध्यक्ष रहें एंव कांग्रेस पार्टी से राज्य सभा सांसद भी रहे। गीता संगीत- उनकी रचनाएं देश ही नहीं विदेश में भी लोक प्रिय रहीं।


उनकी काल अभी रचना 


1. ’’तू राजा की राज दुलारी’’ 


2. ’’ गंगा जी तेरे खेत में गड़े हिन्डोले चार’’ 


ये रचनाऐं तो बच्चे-2 की जुबान पर है। बॉलीवुड में भी छायी हुई है। बहुत लोगों ने उनके ब्रह्म ज्ञान पर पीएचडी की है और बहुत लोग कर रहे है। अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि पं. मांगेराम जैसा कथा संयोजक, लोक जीवन का बहु आयामी चित्रक, शास्त्रों का चिन्तन-मन्थन-मर्यादित-सामाजिक-इच्छाओं का वकील देश भक्ति की भावनाओं का संचेतक, समसामजिक घटनाओं का चितेरा श्रृगांर के दोनों पक्षों की मार्मिक अभिव्यंजना करने वाला सहृदयी तथा काल्पनिक अश्लील श्रुगांरिकता की दलदल से निकाल कर काव्य कामिनी को यथार्थ सामाजिक धरातल पर उतारने वाला अन्यत्र दुर्भल है। 


सिवाय पं. मांगेराम जी के डॉ पूर्णचन्द शर्मा के शब्दों में ’’इनकी कला में वह जादू था कि भारत के प्रधान मंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी उनका सांग अभिनय देखा था’’। सांग कला को नया जीवन देने के उद्देश्य से पं.मांगेराम जी ने 1962 में, हरियाणा के सांग मण्डलीयों के मुखियाओं को एक पलेट फार्म पर इक्कठा करके एक संस्था बनाई थी। जिसका नाम’’हरियाणा गन्र्धव सभा’’रखा। पर इस संस्था को शैशव कला मं ही छोड़ कर 16 नवम्बर 1967 को गढ़ मुक्तेश्वर में गंगा के घाट पर बुद्ध की कथा गाते हुए इस संसार से कूच कर गए।


उन्होंने ऐसे सांगों की रचना की ,कि बाप और बेटी साथ बैठकर आनन्द ले सकते थे उनके सांगों का।

“बाप और बेटी सुणों बैठ कर, पटनी जांण जमाने नै।”


अतः इनके सांगों में मूल भावना भक्ति धर्म और ज्ञान की रही है। जिन्हें बाप और बेटी इक्कठे बैठ कर देख सकते थे और आज भी सुनते है। जब गांवों में जाते तो आज भी बड़े बुजुर्ग घण्टो बैठ के उनके बारे में बताते और याद करते है।

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