पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने झूठे मामलों की प्रवृत्ति पर चिंता जताई, कहा पुलिस केवल 'डाकिया' नहीं हैं जो शिकायतों को भेजें

Haryana And Punja Highcourt


चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हाल ही में frivolous मामलों के बढ़ते चलन पर गहरी चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी केवल डाकिया नहीं होते, जिनका काम शिकायतों को कोर्ट तक भेजना होता है। इसके बजाय, उन्हें अपनी जिम्मेदारी समझते हुए सच्चाई का पता लगाने के लिए कार्य करना चाहिए, ताकि न्यायिक प्रणाली पर अनावश्यक दबाव न पड़े और नागरिकों के जीवन को बर्बाद करने से बचा जा सके।

न्यायमूर्ति आलोक जैन ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हाल के समय में झूठे और बेबुनियादी मामलों की प्रवृत्ति बढ़ रही है, और जांच अधिकारियों के कार्यों पर कोई निगरानी या जवाबदेही नहीं होने के कारण यह न केवल अदालतों को दबाव में डालता है बल्कि आम नागरिकों के जीवन को भी बर्बाद करता है।

मामला: मादक पदार्थों के व्यापार से संबंधित

यह मामला मादक पदार्थों के व्यापार से संबंधित था। न्यायमूर्ति जैन ने कहा कि मामले में आरोपी के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं थे, जैसा कि जांच अधिकारी ने खुद अपनी गवाही में स्वीकार किया। ऐसे में आरोपी को तुरंत आरोपों से मुक्त कर दिया जाना चाहिए था, न कि उसे मुकदमे की कठिनाइयों का सामना करने के लिए मजबूर किया जाता।

न्यायिक प्रणाली पर दबाव

कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी को मुकदमे के दौरान अनावश्यक कष्टों का सामना करना पड़ा, जैसे उत्पीड़न, समय और धन की हानि, और सबसे महत्वपूर्ण बात, उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ। इससे उसकी नौकरी पाने की संभावना पर असर पड़ा और उसकी परिवारिक स्थिति भी प्रभावित हुई।

पुलिस अधिकारियों पर जवाबदेही की कमी

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह बात पुलिस अधिकारियों की सत्यनिष्ठा पर सवाल नहीं उठाती, लेकिन यह कहा कि जांच अधिकारी के काम में जवाबदेही की कमी है, जिसके कारण वे अपनी जिम्मेदारी से बच जाते हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर जांच अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन सही तरीके से करें और कानून के दायरे में रहते हुए कार्य करें, तो इन समस्याओं से बचा जा सकता है।

आदेश और कार्रवाई

कोर्ट ने निर्देश दिया कि पंजाब के पुलिस महानिदेशक (DGP) को इस मामले में एक हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा जाए, जिसमें बताया जाए कि यदि कोई जांच अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता, तो उसके खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है। साथ ही, कोर्ट ने कहा कि संबंधित जांच अधिकारी को सुनवाई का अवसर दिया जाए और trial court को उनके आचरण पर विचार करके उचित कदम उठाने का निर्देश दिया।

पेटीशनर की जमानत याचिका

यह आदेश एनडीपीएस एक्ट के तहत दायर जमानत याचिका के संबंध में दिया गया था। पेटीशनर को झूठे रूप से आरोपित किया गया था। पेटीशनर के वकील ने कहा कि जिरह के दौरान जांच अधिकारी ने स्वीकार किया कि आरोपी को गुप्त सूचना के आधार पर नामित किया गया था, लेकिन आरोपियों और अन्य संबंधित लोगों के बीच कोई स्पष्ट संबंध स्थापित नहीं किया गया।

न्याय की प्रक्रिया और नागरिक अधिकारों का उल्लंघन

कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच अधिकारी ने अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से निभाया नहीं, जिसके कारण नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ। कोर्ट ने इस मामले में जांच अधिकारियों के कृत्य पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उन्हें सख्त चेतावनी दी।

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