ओपी चौटाला की कहानी उनके लंगोटिया यार की जुबानी: आपका ओमप्रकाश चौटाला, हमारा ओम था, मुझे घोड़ी पर बैठाकर स्कूल ले जाता

OP Chautala


ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा का निधन हरियाणा की राजनीति के एक युग का अंत है। आज हमारे बीच चौटाला साहब तो नहीं रहे लेकिन उनके यार, उनकी यांदे और कुछ उनकी मुलाकातें ही रह गई है। ऐसे ही उनके एक दोस्त मंगत राम शर्मा जो चौटाला गांव निवासी है से बात की है आवाज न्यूज नेटवर्क के डीडी गोयल ने। 

डीडी गोयल अपनी रिपोर्ट में मंगत राम शर्मा की एक-एक बात को हुब-हु लिखते हैं.... करीब चार साल पहले सरपंच मेरे पास आया, बोला कि चौटाला साहब याद कर रहे हैं। मैं चला गया। मुझे देखकर ओम बोला कि थक गया। मैंने जवाब दिया कि हां, थक चुका हूं। 86 वर्ष का हो गया हूं। अब जाना पड़ेगा। ओम ने टोकते हुए कहा कि अरे, गोपाल, याद है मास्टर ज्ञानी जी। जो हमें तीसरी कक्षा में पढ़ाया करते थे। वे पंजाब में हैं, जीवित हैं। हमें तो अभी बहुत जीना है। इसके बाद हम दोनों बचपन की यादों में खो गए। मैंने सवाल किया कि घर के सामने खेलते थे, याद है आपको? ओम ने जवाब दिया कि तेरे साथ बिताया बचपन कैसे भूल सकता हूं गोपाल। मुझे सब याद है। 

मदन गोपाल के अनुसार जिन्हें आप ओमप्रकाश चौटाला कहते हैं, वह मेरा लंगोटिया यार था। हमारा ओम था। हम उसे ओम कहकर बुलाते थे। वर्ष 1945 में हमनें एक साथ चौथी कक्षा पास की थी। मुझे आज भी याद है कि उन दिनों गांव चौटाला में चौथी तक स्कूल होता था। हम एक टाट-पट्टी पर बैठकर पढ़ते थे। मैं क्लास में होशियार होता था। ओम मेरे साथ ही बैठता था। हम चौथी कक्षा में 31 विद्यार्थी थे। जिसमें से सिर्फ दो जीवित बचे हैं। चौथी के बाद ओम ने संगरिया के जाट हाइ स्कूल में दाखिला लिया था। मैं स्टेट मिडिल स्कूल संगरिया में पढ़ता था। ओम यारों का यार था। वह घोड़ी पर सवार होकर चौटाला से संगरिया पढ़ने जाता था। जाते समय मुझे भी साथ ही बैठा लेता था।

मेरा ट्रांसफर हुआ तो बोला-घर जाकर बैठ जा

चौटाला के सहपाठी मदन गोपाल शर्मा बताते हैं कि एक बारगी उसका तेजाखेड़ा गांव से तबादला कर दिया। वह तबादला रुकवाने के लिए चंडीगढ़ पहुंच गया। वहां अधिकारी ने कहा कि तेरा तबादला मुख्यमंत्री ने करवाया है। उस वक्त चौटाला मुख्यमंत्री थे, मैं चंडीगढ़ में ही उनके पास चला गया। चौटाला ने सवाल किया कि किसने तेरा ट्रांसफर किसने करवाया है, मैं बोला कि मुख्यमंत्री ने। वे हंस दिए, कहा कि जब तक तबादला रद न हो जाए तो घर बैठा रह। मैं 21 दिन घर बैठा रहा। मेरा तबादला रद हुआ, पूरे माह का वेतन भी मुझे दिलाया।

ऐसा कभी नहीं लगा, वह प्रदेश का राजा बनेगा

मुझे आज भी याद है कि ओम मुझसे करीब चार माह छोटा था। 10 अक्तूबर 1934 का मेरा जन्म है। हमारी दोस्ती यहां तक ही सीमित नहीं थी। मेरे भतीजे की शादी में ओम सिरसा गया था। जब हम पढ़ते थे तो ऐसा कभी नहीं लगा कि ओम एक दिन हरियाणा की बागडोर संभालेगा। हालांकि उसमें जज्बा और जुनून था।

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