हरियाणा: हाउसिंग बोर्ड हरियाणा को 5,000 रुपये मुआवजा देने के आदेश, सेवा में देरी पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी
Haryana News: हरियाणा से एक अहम खबर सामने आई है। हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग ने हाउसिंग बोर्ड हरियाणा को निर्देश दिया है कि वह एक आवंटी के निधन से संबंधित संपत्ति रिफंड के मामले में देरी और उत्पीड़न के लिए 5,000 रुपये का मुआवजा शिकायतकर्ता को प्रदान करे। यह आदेश हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग के मुख्य आयुक्त टी.सी. गुप्ता ने जारी किए हैं।
मुआवजे का आदेश और जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली के निर्देश
आयोग ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि हाउसिंग बोर्ड द्वारा की गई देरी की जांच की जाए और मुआवजा राशि जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली जाए। इसके अलावा, संपत्ति हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आयोग को सूचित करने का निर्देश भी दिया गया है।
मामले का पूरा विवरण
शिकायतकर्ता भूपिंदर शर्मा ने हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग में शिकायत दर्ज करवाई थी। उनकी शिकायत में कहा गया कि उनके मृतक पिता के नाम पर आवंटित फ्लैट की राशि वापस करने में हाउसिंग बोर्ड ने अनावश्यक देरी की।
- बोर्ड ने आवंटन रद्द कर दिया था और रिफंड देने के बजाय शिकायतकर्ता को निर्देश दिया कि वह पहले फ्लैट को अपने नाम पर स्थानांतरित करें।
- शिकायतकर्ता ने बोर्ड द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया, लेकिन फिर भी बोर्ड आवश्यक समय सीमा के भीतर सेवा प्रदान करने में असफल रहा।
आयोग की सख्त टिप्पणी और कार्रवाई के निर्देश
मामले की समीक्षा और संबंधित अधिकारियों की सुनवाई के बाद, आयोग ने पाया कि हाउसिंग बोर्ड की लापरवाही और देरी के कारण शिकायतकर्ता को अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ा।
- आयोग ने हाउसिंग बोर्ड को निर्देश दिया कि वह 5,000 रुपये का मुआवजा शिकायतकर्ता को प्रदान करे।
- साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाए कि देरी की जांच कर जिम्मेदार अधिकारियों से मुआवजा राशि वसूली जाए।
- बोर्ड को आदेश दिया गया है कि संपत्ति हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी होते ही आयोग को सूचित किया जाए।
- यदि आगे देरी होती है, तो आयोग ने अतिरिक्त दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी है।
हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग की भूमिका
यह मामला हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग की सक्रियता को दर्शाता है, जो राज्य में नागरिकों को समय पर सेवाएं प्रदान करने के लिए जिम्मेदार विभागों और अधिकारियों पर निगरानी रखता है। आयोग का यह फैसला सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।