सिरसा के बिज्जुवाली में पिता को मुखाग्नि देकर बेटी ने रची मिसाल, तोड़ी रूढ़ियों की बेड़ियां
हेमराज बिरट, सिरसा: गांव बिज्जूवाली में बेटी ने अपने पिता के निधन पर बेटे का फर्ज निभाकर समाज में एक नई मिसाल पेश की। पिता के अंतिम संस्कार में बेटी ने न केवल अर्थी को कंधा दिया, बल्कि श्मशान घाट जाकर हिंदू रीति-रिवाजों से मुखाग्नि भी दी। इस भावुक क्षण ने वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें नम कर दीं।
बेटी ने निभाया बेटे का फर्ज
दिवंगत हरबंश, पुत्र स्वर्गीय देशराज बिरट का निधन होने पर उनकी बेटी ने परिवार की परंपराओं को दरकिनार करते हुए यह कदम उठाया। उनके परिवार में कोई पुत्र नहीं था, लेकिन बेटी ने रूढ़िवादी सोच को चुनौती देते हुए पिता के अंतिम संस्कार की सभी रस्में पूरी कीं। बेटी ने अपने कंधों पर पिता की अर्थी उठाई और पूरे सम्मान के साथ अंतिम यात्रा में शामिल हुई।
समाज को दिया बड़ा संदेश
बेटी के इस साहसिक कदम ने पुरानी परंपराओं और समाज की रूढ़िवादी सोच को झकझोर दिया है। यह घटना न केवल परिवार के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई। ग्रामीणों और आसपास के क्षेत्र के लोगों ने इस पहल को महिलाओं के अधिकारों और समानता की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा।
ग्रामीणों की प्रतिक्रिया
गांव के लोगों ने बेटी की सराहना करते हुए कहा कि आज के समय में बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं है। हमें पुरानी मान्यताओं को पीछे छोड़ते हुए समानता की ओर बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस घटना ने साबित कर दिया है कि बेटियां भी अपने माता-पिता के लिए वही सब कर सकती हैं, जो बेटों से अपेक्षित होता है।
रूढ़िवादी सोच को चुनौती
इस घटना ने समाज को यह सोचने पर मजबूर किया कि अंतिम संस्कार जैसे कर्मकांड केवल बेटों के लिए ही नहीं, बल्कि बेटियों के लिए भी हैं। बेटी के इस साहसिक कदम ने यह संदेश दिया कि बेटियां किसी भी स्थिति में पीछे नहीं हैं और वे परिवार की जिम्मेदारियां निभाने में पूरी तरह सक्षम हैं।
बेटियों को सलाम
ग्रामीणों और समाज के लोगों ने इस पहल को सलाम करते हुए इसे बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह घटना महिलाओं के अधिकारों के प्रति समाज की सोच को बदलने में मददगार होगी।
बेटी की इस पहल ने यह साबित कर दिया कि बेटा-बेटी में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए और बेटियां भी परिवार का गौरव बन सकती हैं।