हरियाणा का एक ऐसा गांव जहां लोग घर में दफनाते है शव, वजह जान हो जाएंगे हैरान!

Haryana Village


चरखी दादरी: हरियाणा के चरखी दादरी जिले के गुडाना गांव में करीब 50 मुस्लिम परिवार रहते हैं। लेकिन गांव में कब्रिस्तान की जमीन नहीं होने के कारण उन्हें अपने परिजनों के शव घर के परिसर में ही दफनाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इस स्थिति को लेकर गांव के लोगों ने कई बार अधिकारियों और नेताओं से जमीन आवंटित करने की मांग की है, लेकिन हर बार उन्हें केवल आश्वासन ही मिला है। आश्वासनों से थक चुके मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अब विरोध का एक अनोखा तरीका अपनाने का निर्णय लिया है।

अधिकारियों के दरवाजे पर प्रदर्शन करेंगे

रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम समाज के लोगों ने फैसला किया है कि अब अगर उनके परिवार में किसी की मृत्यु होती है, तो वे शव को लेकर अधिकारियों के कार्यालयों के बाहर प्रदर्शन करेंगे। ग्रामीणों का कहना है कि घर के परिसर में दफनाए गए शवों के बीच रहना उनके लिए मानसिक तनाव का कारण बन गया है।

ग्रामीण अब्दुल रहीम ने बताया कि हाल ही में एक बुजुर्ग महिला का शव तीन दिन तक पड़ा रहा क्योंकि उसे दफनाने के लिए कोई जगह नहीं थी। अंततः उसे घर के परिसर में ही दफनाना पड़ा। अब तक इस प्लॉट में दर्जनभर शव दफनाए जा चुके हैं।

जमीन का मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन

गांव के सरपंच रविंद्र कुमार ने बताया कि गांव में जमीन की चकबंदी नहीं हुई है, और यह मामला पिछले चार साल से हाईकोर्ट में लंबित है। अगली सुनवाई फरवरी 2025 में निर्धारित है। उन्होंने कहा कि कब्रिस्तान के साथ-साथ श्मशान भूमि के लिए भी जमीन आवंटित नहीं हो पाई है, जिससे केवल मुस्लिम समुदाय ही नहीं, बल्कि अन्य ग्रामीणों को भी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस मुद्दे को लेकर जल्द ही बड़ा आंदोलन किया जाएगा।

प्रशासन की प्रतिक्रिया

खंड विकास और पंचायत अधिकारी स्वाति अग्रवाल ने बताया कि मामला कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए फिलहाल कोई स्थायी समाधान संभव नहीं है। कोर्ट का फैसला आने के बाद ही इस समस्या का स्थायी समाधान हो पाएगा।

समुदाय का धैर्य समाप्त

गांव के मुस्लिम समुदाय का कहना है कि प्रशासन और नेताओं की ओर से बार-बार आश्वासन मिलने के बावजूद समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो वे मजबूरन प्रदर्शन का सहारा लेंगे।

यह मामला न केवल एक समुदाय की कठिनाइयों को उजागर करता है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था और कानूनी अड़चनों की धीमी प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े करता है।

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