भिवानी के दिव्यांग खिलाड़ियों ने एशिया पैसिफिक डेफ गेम्स में जीते पदक, शहर में हुआ भव्य स्वागत

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भिवानी: हरियाणा के भिवानी, जिसे खेल नगरी के नाम से जाना जाता है, ने एक बार फिर अपनी खेल प्रतिभा से देश का नाम रोशन किया है। भिवानी के दो मूक-बधिर खिलाड़ियों ने 10वें एशिया पैसिफिक डेफ गेम्स 2024 में सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत को गौरवान्वित किया है। इनकी इस उपलब्धि पर जिलेवासियों ने फूलमालाओं और नगाड़ों के साथ भव्य स्वागत किया। खुली जीप में पूरे शहर का भ्रमण करते हुए इन खिलाड़ियों को खेल प्रेमियों का भरपूर प्यार और समर्थन मिला।

मलेशिया में जीते पदक

भिवानी के दिव्यांग खिलाड़ी जसपाल ने 1 से 8 दिसंबर तक मलेशिया के कोलालंपुर में आयोजित 10वें एशिया पैसिफिक डेफ गेम्स में हिस्सा लिया। जसपाल ने शॉटपुट में सिल्वर मेडल और डिस्कस थ्रो में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत का परचम लहराया। इसी प्रतियोगिता में भिवानी के अमित ने कुश्ती में ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया।

भिवानी के ही रूपेश ने जैवलिन थ्रो में दुनिया में सातवां स्थान प्राप्त किया। हालांकि, कमर में चोट लगने के कारण वह पदक नहीं जीत सके, लेकिन उनके प्रदर्शन ने सबका ध्यान खींचा।

खेल शिक्षकों ने जताया गर्व

इन खिलाड़ियों की कोच और आस्था स्पेशल स्कूल की अध्यापिका सुमन शर्मा ने बताया कि इन खिलाड़ियों ने हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरे देश का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है। सुनने और बोलने में अक्षम होने के बावजूद उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से यह उपलब्धि हासिल की है। सुमन शर्मा ने कहा कि इनका अगला लक्ष्य 2025 पैरा ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतना है।

परिजनों का गर्व और भावनाएं

खिलाड़ियों के परिजनों ने उनकी उपलब्धि पर गर्व जताया। जसपाल के परिवार ने बताया कि वह पिछले तीन साल से शॉटपुट और डिस्कस थ्रो की नियमित प्रैक्टिस कर रहा है और अब अन्य खिलाड़ियों को कोचिंग भी देता है। वहीं, कुश्ती में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले अमित के पिता हरज्ञान ने कहा कि यह उनका पहला अंतर्राष्ट्रीय खेल अनुभव था, और उनकी यह उपलब्धि पूरे परिवार के लिए गर्व का पल है।

अगला लक्ष्य: पैरा ओलंपिक में गोल्ड मेडल

दोनों खिलाड़ियों ने स्पष्ट किया कि उनका अगला लक्ष्य 2025 पैरा ओलंपिक में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना है। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए वे अभी से तैयारी में जुट गए हैं।

भिवानी ने फिर रचा इतिहास

भिवानी, जिसे खेलों की धरती के रूप में पहचाना जाता है, ने एक बार फिर साबित किया कि यहां की प्रतिभा किसी भी शारीरिक कमी को आड़े नहीं आने देती। इन खिलाड़ियों की सफलता उन सभी दिव्यांग व्यक्तियों के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पूरा करने की चाह रखते हैं।

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