नफरत की लाठी तोड़ो लालच का खंजर फेकों जिद के पीछे मत दौड़ो, तुम प्रेम के पंछी हो देश प्रेमियों, आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों.... देश प्रेमी फिल्म का ये गाना जो मोहम्मद रफी ने बड़ी ही शिद्त के साथ गाया और देश की जनता को इस गाने से माध्यम से भाईचारे का संदेश देने का काम किया। लेकिन फिल्मी गााने फिल्मों में अच्छे लगते हैं। सच्चाई इससे कही कोसो दूर है। देश की राजनीति मे जो कुछ इन दिनों घटित हो रहा है वह किसी से छुपाया नहीं जा सकता और छुप भी नही सकता।
किस प्रकार आज देश के नेता सारे आम धर्म और जात पात के नाम पर ब्यान देकर सुर्खिया बटोरने का काम कर रहे हैं और धर्म के साथ राजनीति को जोड़ कर देश की जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। कोई पूछने वाला नहीं, कोई बताने वाला नहीं, केवल नेता जी को चिंता है धर्म के नाम पर तैरने की और मुद्दा विहिन राजनीति करने की। आखिर ऐसा क्यों कर रहे देश के नेता। इसे तुच्छ राजनीति भी कहां जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि किस प्रकार नेता हर रोज धर्म की आड़ में जनता की परेशानियों और समस्याओं को छुपा रहे हैं। उनसे किनारा कर रहे हैं। लेकिन जो धर्म जात पात का बीज देश की भोली भाली जनता के बीच में बोया जा रहा है उसका परिणाम क्या होगा? कोई नहीं जानता। केवल सत्ता पर आसीन होने का ख्वाब देख रही राजनीतिक पार्टियों को किस प्रकार मंहगा पड़ेगा ये समय ही बता सकता है, क्योंकि ये जनता जनार्दन है सब कुछ जानती है?
इन मुद्दों को भुना कर राजनीति में कदम बढ़ा चुके देश के नेता आज उन्हीं मुद्दों से किनारा कर रहे हैं। वैसे तो राजनीति में चुने गये उम्मीदवारों के लिए जनता सर्वापरि है। जनता के सुख दुख उनके सुख दुख है। जनता की परेशानियों , समस्याओं को देश की सबसे बड़ी पंचायत में उठाने का हक केवल इन्हीं चुने गये नेताओं को मिला है। जिनको जनता ने भरोसा दिखा कर चुना और सत्ता पर काबिज करने का काम किया। ना जाने कितने मुद्दे लेकर देश की जनता सडक़ों पर उतर कर इंसाफ की भीख मांग रही है। देश में हर रोज धरने प्रदर्शनों का सहारा लिया जा रहा है । जनता को जब बलात्कारी को पकड़वाने के लिए सडक़ों का सहारा लेने पड़े तो समझिये कैसा होगा देश का कानून, जब कोई ईलाज के लिए तड़प तड़प कर अपने प्राण त्याग दे। तो जरा सोचिए कैसा हाल होगा देश में स्वास्थय सेवाओं का, पानी के लिए तरसते हुए लोग, शिक्षा की आड़ में करोड़ो रूपए का चूना लगाने वाली शिक्षा प्रणाली पर कई बार सवाल उठ गये, बेरोजगारों को सुनहरे सपने दिखा कर कई बार उनकी वोट हथियाने का काम कर गये हैं। देश के नेता क्या राजनीति की आड़ में किस प्रकार के देश का निर्माण करने पर उतारू हो गये हैं देश की राजनीति के चाणक्य।
क्या राजनीति का स्तर इतना गिर जाएगा कि धर्म और राजनीति को एकत्रित करके ही सत्ता हासिल करनी होगी? क्या इसके इलावा कोई भी रास्ता नहीं? जिसके कारण देश के नेता जनता दरबार में जनता की समस्याओं, उनके मुद्दों का समाधान करवा सकें। क्या केवल सत्ता में आने से पहले किये वायदे केवल चुनावी जुमला बन कर रह जाएंगे? आखिर कब देश को जात पात के कोढ़ से मुक्ति मिलेगी ?आखिर कब तक देश में राजनीति को चमकाने के लिए धर्म का सहारा लिया जाएगा। आखिर कब तक हिन्दु मुस्लिम का बीज आने वाले भविष्य के दीमाग में बौया जाएगा और यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं। दरअसल जनता नेता का खेल बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती, अपनी चुनावों के दौरान अपनी वोट का इस्तेमाल करने वाले करोड़ों भारतीयों को जब ये बात घर कर गयी कि नेता केवल केवल अपनी रोटियों सेकने का काम कर रहे हैं तो भारत का नागरिक नोटा का बटन दबाकर इन नेताओं का सत्ता से बहार करने का काम भी कर सकता है..