2019 में दीपेंद्र हुड्डा की रोहतक लोकसभा से जीत होगी मुश्किल!
क्या भाजपा का हरियाणा लोकसभा के चुनाव में रोहतक फतेह का सपना पूरा हो पाएगा.
19 जुलाई 2018
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नया हरियाणा
अमित शाह ने हरियाणा के लोकसभा चुनावों के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं. 2014 के चुनाव में हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में भाजपा के हिस्से में 7 सीटें आई थी, कांग्रेस को रोहतक से जीत मिली थी और इनेलो को सिरसा व हिसार से जीत मिली थी. भाजपा अपनी रणनीति इस तरह बना रही है कि 10 लोकसभा सीटें भाजपा के खाते में आ जाए.
इसके लिए भाजपा ने रणनीतियां बनानी शुरू कर दी हैं. सूत्रों के हवाले से खबर है कि गुड़गांव से राव इंद्रजीत और फरीदाबाद से कृष्णपाल गुर्जर की टिकटों के अलावा भाजपा ज्यादातर सीटों पर नए उम्मीदवार उतार सकती है.
भाजपा की नजर रोहतक लोकसभा सीट पर खास तौर से टिकी हुई हैं, क्योंकि दीपेंद्र हुड्डा की हार हुड्डा खेमे को हरियाणा में तो कमजोर करेगा ही साथ में कांग्रेस हाईकमान में हुड्डा गुट की लगतार कमजोर होती पकड़ पर बुरा असर पड़ेगा.
रोहतक लोकसभा में हालांकि कांग्रेस का दबदबा रहा है पर इस बार दीपेंद्र हुड्डा की मश्किलें बढ़ती हुई साफ नजर आ रही हैं. दीपेंद्र हुड्डा का पंजाबी समुदाय को टारगेट करके दिया गया बयान उनके लिए काफी भारी पड़ेगा. दूसरी तरफ उनके पिता भूपेंद्र हुड्डा और उनके खुद साथियों का नाम रोहतक को जलाने, लूटने वालों में आने के कारण भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा. तीसरा पिछले कुछ साल में हिसार के युवा सांसद दुष्यंत चौटाला ने भी रोहतक में अपनी कार्यकर्ताओं में इजाफा किया है. जो सीधे-सीधे दीपेंद्र पर असर डालेंगे. हालांकि भाजपा किस चेहरे पर चुनाव लड़ेगी, उस पर दीपेंद्र हुड्डा की हार जीत तय होगी. वर्तमान समय में दलबीर सिंह सुहाग रोहतक लोकसभा से चुनाव लड़ सकते हैं या क्रिकेटर वीरेंद्र सिंह सहवाग. इन दोनों की प्रसिद्धि के सहारे भाजपा इस सीट को जीतकर विधानसभा के लिए मॉरल विक्टरी के तौर पर देख रही है. कांग्रेस जिस नेता के बलबूते हरियाणा में जीत का सपना देख रही है. उसको उसके गढ़ में जाकर हराना राजनीति में सबसे सफल राजनीति मानी जाती है. इस काम में भाजपा को कांग्रेसी फूट का फायदा मिलेगा और दूसरी तरफ इनेलो नेताओं को भी मौन समर्थन रहने की पूरी संभावनाएं हैं.
सत्ता से दूर होने के कारण 5 साल में कार्यकर्ताओं के काम न होने के कारण भी कार्यकर्ता साथ छोड़ते चले जाते हैं और 2014 के चुनाव में तो सत्ता खुद के पास होने के भी फायदे उठाए होंगे. पर 2019 के चुनाव में दीपेंद्र हुड्डा की हार के अनेक कारण साफ नजर आ रहे हैं.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि लोकसभा हारने के बाद क्या दीपेंद्र हुड्डा विधानसभा चुनाव लड़ेंगे? क्योंकि उनके पिता भूपेंद्र हुड्डा ने भी संन्यास लेने की बात कही है. ऐसा सुनने में आ रहा है. पब्लिक में भूपेंद्र हुड्डा को सजा होने की खबरें भी चल रही हैं. मानेसर जमीन घोटाले में उनकी मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में क्या दीपेंद्र हुड्डा किलोई से विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं!