डबवाली के गोरीवाला में डॉ. अंबेडकर की मूर्ति तोड़ने वाले मामले में तीन लोगों की गिरफ्तारी हुई है.
3 जुलाई 2018
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नया हरियाणा
इनेलो और बसपा गठबंधन पर इनसो पानी फेरता हुआ दिख रहा है. जिस गठबंधन से कांग्रेस और भाजपा के भीतर बेचैनी बढ़ रही हो, उस मजबूत गठबंधन को तोड़ने वाले काम करने के पीछे आखिर क्या साजिश हो सकती है? क्या है मामला
विगत 29 जून की देर रात के गांव गोरीवाला(डबवाली) में कुछ शरारती तत्त्वों द्वारा नैशनल हाईवे पर स्थित चौक पर लगी बाबा साहिब डॉ. भीमराव अम्बेडर की मूर्ति को खण्डित करने के मामले में पुलिस ने लखुआना के तीनों युवकों को गिरफ्तार किया. इनकी पहचान चार्ली उर्फ पवन कुमार, रविंद्र कुमार, अक्षय कुमार गांव लखुआना निवासी के रूप में हुई है। डीएसपी किशोरी लाल उक्त युवकों के बारे खुलासा करते हुए बताया कि युवकों से पूछतात के दौरान मालूम हुआ है कि उक्त तीनों युवकों ने शराब के नशे में व आपसी भाईचारा में फूट डालने की मंशा से इस घटना को अंजाम दिया है।
उन्होने बताया कि उक्त तीनों युवको को सी.सी.टी.वी कैमरे की फूटेज़ के आधार पर धरदबोचा है.
इनमें से आरोपी अक्षय रोहिल की फेसबुक आईजी से पता चलता है कि वह खुद को इनसो का प्रधान बताता है. हालांकि इनसो इस दावे को सिरे से खारिज कर रही है. जबकि उसने फोटूओं में इनसो का रबड़बैंड पहना हुआ है.
ऐसे में इस घटना के पीछे शराब का नशा कारण हो सकता है या कोई राजनीतिक साजिश भी हो सकती है. शराब से इतर इस घटना के चार राजनीतिक एंगल हो सकते हैं.
पहला बसपा को साथ लेकर और दलितों का वोट लेकर सत्ता की सीढ़ी तो चढ़नी है पर अम्बेडकर को फूटी आंख नहीं देखना चाहते। यह पार्टी के भीतर का अंतर्विरोध हो सकता है।
दूसरा इनसो के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिग्विजय चौटाला हैं, हो सकता है उन्हें यह गठबंधन रास नहीं आ रहा हो. सोशल मीडिया पर इस तरह की सुगबुगाहट चलती रहती है. इस सुगबुगाहट का बड़ा कारण यह भी माना जाता है कि इनेलो-बसपा गठबंधन में दुष्यंत और दिग्विजय कोई मौजूद नहीं था. जबकि यह पार्टी के लिए सबसे अहम् फैसला था. हो सकता है कि इस तरह की घटना से अब गठबंधन खतरे में पड़ जाए।
तीसरा अम्बेडकर की मूर्ति पर हमला करवाकर सत्तारूढ़ बीजेपी को बदनाम करना और दलितों को भाजपा के खिलाफ खड़ा करना हो सकता है।
चौथा अब बहन मायावती और बसपा को भी जवाब देना पड़ेगा कि आप जिन्हें मुख्यमंत्री बनवाना चाहते हैं उनके ही दल के छात्र बाबा साहब की मूर्ति तोड़ने में पकड़े जाते हैं। ऐसे में मायावती की अपने कोर वोटर के सामने मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
शराब के नशे में नादानी कहिए या कुछ ओर. पर इससे अब बसपा-इनेलो गठबंधन के बीच खाई बढ़ना स्वाभाविक है.
हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के राज में दलितों पर अत्याचार की कई घटनाओं ने सरकार की दलित विरोधी छवि बनाई. रही सही कसर कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर पर मारपीट करके हुड्डा समर्थकों ने दलित विरोधी मानसिकता को पब्लिक स्पेस में लाकर खड़ा कर दिया था. शायद यही वजहें रही हो कि मायावती ने हरियाणा में कांग्रेस के साथ गठबंधन न करके इनेलो के साथ करना उचित समझा. इनेलो-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के भीतर बेचैनी पैदा कर दी है. दूसरी तरफ अभय सिंह चौटाला एसवाईएल के मुद्दे का बहाने कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम रहे हैं, जिसमें बसपा गठबंधन ने एक नई ऊर्जा भरने का काम किया है.
पर इस तरह की घटनाएं पार्टी की छवि और एकता दोनों के लिए घातक सिद्ध होंगी। दूसरी तरफ समाज की सद्भावना के लिए इस तरह की घटनाएं खतरनाक है, क्योंकि इनसे समाज में जातिगत द्वेष बढ़ता है।