कांग्रेसराज में पुलिस से क्यों छिपते फिरे थे प्रदीप कासनी!
कांग्रेस पार्टी में शामिल होते हुए उन्होंने कांग्रेस के उदारवाद का हवाला दिया है और भाजपा को कट्टरवादी पार्टी बताया है.
15 जून 2018
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नया हरियाणा
25 जून 1975 को इमरजेंसी की पहली रात थी. भिवानी जिले के दादरी शहर के एक छोटे से मकान में पुलिस एक पिता को गिरफ्तार करने के बाद भी चैन से नहीं बैठी थी. उसे तलाश थी एक छोटे से बालक की. जिसे तलाशने के लिए उसने घर की कोई खाट नहीं छोड़ी. घर का हर कोना टटोल मारा. पर पुलिस के हाथ लगा ठनठन गोपाल.
जिस 15 साल के बालक की पुलिस को तलाश थी. उसके पिता का नाम था धर्म सिंह कासनी. पिता गिरफ्तार हो गए और बेटा मां के कहने पर दीवार कूदकर भाग गया. करीब 4 महीने तक पुलिस की आंखों में धूल झोंकते हुए हरियाणा तो कभी राजस्थान दर-दर भटकता रहा.
इमरजेंसी के खिलाफ उस छोटे से बालक की मुहिम खत्म नहीं हुई थी. वह पुलिस से छिप जरूर रहा था. पर इमरजेंसी के खिलाफ पर्चे बांटने उसने अभी भी बंद नहीं किए थे. पर्चे इमरजेंसी में संचार का सबसे मजबूत माध्यम था. पर्चे बांटने से लेकर पर्चे छापना सबसे मुश्किल काम था.
15 साल का बालक पुलिस की आंखों से कब तक बचता. आखिर पुलिस के हाथ लग गया और उसे पकड़कर पुलिस ने रोहतक जेल में भेज दिया. दरअसल उन दिनों बालक की सबसे बड़ी जिम्मेवारी मुनादी करने की होती थी. पुलिस ने उन दिनों उन पर शांति भंग करने का मुकदमा लगाया था. हालत यह हो गई थी कि कोई जमानत लेने को तैयार नहीं हो रहा था. सरकार का खौफ इतना ज्यादा था. करीब ढाई महीने जेल काटने के बाद रिहा हुआ. वह भी कम उमर होने की वजह से छोड़ दिया गया था. उसके बाद भूमिगत होकर इस बालक ने पढ़ाई की. सुनने में आता है कि छुपकर पढ़ते हुए दिनों में पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे और पुलिस ने रीढ़ की हड्डी पर इतनी गहरी चोट मारी थी कि वह कभी ठीक नहीं हुई.
जिस इमरजेंसी के खिलाफ लड़ते हुए यह बालक बड़ा हुआ. रिटायरमेंट के बाद उसी इमरजेंसी की जनक कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. जी हां, यह 15 साल का बालक रिटायर आईएएस ऑफिसर प्रदीप कासनी ही है. जिन्होंने अशोक तंवर और राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का हाथ थाम लिया.