फरीदाबाद से भाजपा के तीन बार सांसद रहे आर्यसमाजी रामचंद्र बैंदा का निधन!
हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.
12 जून 2018
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नया हरियाणा
रामचंद बैंदा का जन्म हरियाणा के हिसार जिले के खाबरा कलां गांव में 7 फरवरी 1946 को हुआ था. हरियाणा की राजनीति में काफी लंबे समय तक सक्रिय रहने वाले आर्य समाजी रामचंद बैंदा का आज निधन(12जून 2018) हो गया. भाजपा और संघ में आजीवन अपनी आस्था रखने वाले बैंदा फरीदाबाद से भाजपा की ओर 3 बार सांसद बने थे.
हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है कि-
बैंदा का राजनीतिक सफर
1980 में भारतीय जनता पार्टी में राज्य कार्यकारिणी के मेंबर बने थे. 11वीं लोकसभा में 1996 में सांसद चुने गए थे. 1996 से 1998 तक डिफेंस कमेटी के मेंबर रहे थे. 1998 के उपचुनाव में अर्थात् 12वीं लोकसभा में दूसरी बार सांसद बने थे. 1998-99 में एग्रीकल्चर कमेटी के मेंबर बने. 1999 में 13वीं लोकसभा में तीसरी बार सांसद बने. 1999-2000 कई कमेटियों के मेंबर रहे. 1964 में भारतीय जन संघ के सदस्य बने और आर्य समाज और सामाजिक संस्थाओं में लगातार सक्रिय भूमिका निभाई. माउंट आबू में गुरुकुल को स्थापित में अहम् भूमिका निभाई. राजस्थान में आर्य समाज के प्रवक्ता पद पर आसीन रहे.
फरीदाबाद लोकसभा चुनावों में चुने गए प्रतिनिधित्व ( Results of Faridabad Lok Sabha)
दामाद के साथ चला फ्लैट का विवाद
गौरतलब है कि ससुर दामाद के बीच सरिता विहार में मौजूद एक फ्लैट को लेकर विवाद चला। सेक्टर-14 की कोठी संख्या 1492 में फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र से तीन बाद सांसद रह चुके रामचंद्र बैंदा अपने बेटे दयानंद के साथ रहते हैं। पूर्व सांसद बैंदा की बेटे दयानंद के अलावा पांच बेटियां हैं। सबसे बड़ी बेटी हिसार और दूसरी जींद में ब्याही है। तीसरी बेटी बल्लभगढ़ के झाड़सेंतली गांव निवासी धनसिंह डागर को ब्याही है। चौथी बेटी का विवाह पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह बीसला के भतीजे के साथ हुआ है। जबकि पांचवीं बेटी दिल्ली विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री योगानंद शास्त्री की बहू है। सेंट्रल थाना प्रभारी हंसराज के मुताबिक सांसद बैंदा का अपने दामाद धन सिंह डागर के साथ सरिता विहार में मौजूद एक फ्लैट को लेकर कुछ समय से विवाद चला था। जिसमें पुलिस केस तक दर्ज करवाए गए थे।
2014 के चुनाव में कटी टिकट
फरीदाबाद सीट से रामचंद्र बैंदा को प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा था क्योंकि वे इस सीट से भाजपा की टिकट पर तीन बार संसद का रास्ता तय कर चुके थे और उनके आरएसएस से संबंध भी अच्छे माने जाते थे। लेकिन रामचंद्र बैंदा का एक कमजोर पहलू यह था कि वे पिछले दो चुनाव कांग्रेस के प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना से हार चुके थे और भाजपा के लिए हारे हुए प्रत्याशी पर दाव लगाना काफी रिस्की हो सकता था।
वहीं तिगांव से विधायक कृष्णापाल गुर्जर इस सीट पर उनसे भी प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, क्योंकि उनके भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और पार्टी से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से अच्छे संबंध बताए जाते थे। अब भाजपा रामचंद्र बैंदा पर रिस्क लेती है या कृष्णापाल गुर्जर पर दाव लगाती है- इस तरह के कयासों को विराम देते हुए भाजपा ने कृष्णपाल गुर्जर को टिकट दिया और वो सांसद भी चुने गए.