हरियाणा की राजनीति में जीटी रोड बेल्ट होगी किंग मेकर!
कांग्रेस और इनेलो में कौन जीतेगा जीटी रोड बेल्ट का दिल या भाजपा पर टिका रहेगा दिल!
8 जून 2018
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नया हरियाणा
हरियाणा की राजनीति का तवा चूल्हे पर चढ़ चुका है. हर पार्टी अपने हिसाब से चूल्हे में खूब सारा ईंधन लगा रही हैं. ताकि तवा बढ़िया से गर्म हो जाए और सत्ता रूपी रोटियां बढ़िया सेकी जा सकें. कोई दल और नेता इस बहम में नहीं रहना चाहता कि ये कर देते तो ठीक रहता, या वो कर देते तो ठीक रहता.
सत्ता रूपी रोटियां सेंकने में कोई धुएं रूपी अड़चन ना आए, इसके लिए शीर्ष के नेता संभल-संभल कर कदम रख रहे हैं. कहीं चूल्हे में गलती से गीली लकड़ी ना दी जाए और तवा गर्म कम हो और धुआं ज्यादा न हो जाए.
सभी दलों की कदम-ताल को देखते हुए यह साफ लग रहा है कि सबकी नजर हरियाणा की सबसे उपेक्षित मानी जाने वाली जीटी रोड 'बैल्ट' पर टिकी है. क्योंकि यहां कोई भी दल सीना तो छोड़िए छाती ठोक कर ये नहीं सकता कि ये मेरा गढ़ है. पिछले चुनाव के नतीजे देखते हुए ये जरूर कहा जा सकता है कि भाजपा यहां बढ़त में है. क्योंकि जीटी रोड 'बैल्ट' पर सारी सीटें भाजपा के खाते में गई थी.
पर 2019 के समीकरण क्या रहेंगे या बनेंगे. यह कहना अभी मुश्किल है. जीटी रोड 'बैल्ट' पर अंबाला, कुरुक्षेत्र और करनाल लोकसभा के अंतर्गत आने वाले 27 विधान सभा सीटों के अलावा गन्नौर, सोनीपत और राई की सीटों समेत ये आंकड़ा 30 विधान सभा सीटों पर पहुंच जाता है. मौटे तौर पर रोहतक और झज्जर को हुड्डा का गढ़ कहा जाता है और सिरसा और जींद के आसपास का इनेलो का गढ़ माना जाता है. 90 विधानसभा सीटों में से 30 सीटें जीटी रोड 'बैल्ट' पर हैं. इसीलिए सभी दल सारा जोर इसी 'बैल्ट' पर लगा रहे हैं. वह इनेलो-बसपा गठबंधन हो या हुड्डा का समालखा और पानीपत से जनआक्रोश रैली करना हो. जीटी रोड बैल्ट पर दिल्ली की तरफ से कांग्रेस आगे बढ़ने के लिए प्रयास कर रही है तो चंडीगढ़ की तरफ से इनेलो बढ़त बनाने की कोशिशों में लगी है. इन दोनों को रोकने के जीटी रोड बैल्ट के बीचों बीच बैठे हैं मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर.
इसके अलावा कांग्रेस की दावेदारी इस 'बैल्ट' पर इस कारण भी बढ़ जाती है कि वो अपने दो पत्ते तंवर और कुलदीप बिश्नोई को करनाल से इस्तेमाल कर सकती है. अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस के लिए ये दोनों गेम-चेंजर बन सकते हैं. तंवर का असर अंबाला और कुरुक्षेत्र की सीटों पर पड़ेगा और कुलदीप का करनाल और पानीपत की सीटों पर. पर इसमें एक अड़चन कांग्रेस के लिए यह रहेगी कि वो इन तीनों(हुड्डा, कुलदीप व तंवर) में से मुख्यमंत्री का चेहरा किसे बनाएगी? अगर बिना चेहरे के कांग्रेस उतरती है तो यह जनता में यह मैसेज जाएगा कि मुख्यमंत्री हुड्डा ही बनेंगे, जो कि कांग्रेस के लिए नुकसानदायक रहेगा. दूसरी तरफ हुड्डा को घोषित करते हैं तो कांग्रेस पानीपत तक सिमटकर रह जाएगी.
इधर इनेलो में अभय सिंह और कांग्रेस में हुड्डा मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे, तो जाट वोटर के लिए ये असमंजस की स्थिति रहेगी कि वो किस तरफ अपनी वोट दें. जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. दरअसल जनता का उस समय क्या रूझान रहता है, यह उस समय के प्रचार-प्रसार और केंद्र में किसकी सरकार बनेगी, इस पर ज्यादा निर्भर करेगा.