किसी भी इंसान को धमकी देना, गलत नहीं बल्कि अपराध है. जहां अपराध होता है, वहां पुलिस शिकायत की जाती है या मीडिया में उसे भुनाया जाता है?
रवीश कुमार को किसी सिरफिरे ने धमकी दी और यह पहला मामला नहीं है और सोशल मीडिया पर पक्ष-विपक्ष जिस मर्जी पर खुलकर लिखने वाले सभी जानते हैं कि धमकियां हम सभी के जीवन का आम हिस्सा बन गई हैं. शुरू शुरू में अजीब लगता था, अब आदत हो गई है. बस लिखने वाला जितना हाई प्रोफाइल होता है, उसको मिलने वाली धमकी भी उतनी ही हाई प्रोफाइल हो जाती है. खैर.
रवीश को मिलने वाली धमकी को हिंदुत्व आतंकवाद कहकर संबोधित किया जा रहा है. यही वह बीमारी है, जिसके कारण भाजपा आगे बढ़ती जाएगी और कांग्रेस खत्म होती जाएगी. और इस काम को अप्रत्यक्ष तौर पर तथाकथित बौद्धिक समाज करने में लगा हुआ है. ये वही लोग हैं जो जाट आंदोलन में हुई हिंसा की आड में जाट-आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल करने लगे थे, क्योंकि इन्हें तब दलित कार्ड खेलना था. जब इन्हें स्त्रीवादी कार्ड खेलना होता है तो पूरा हरियाणा इन्हें खाप लगने लगता है.
क्या जब रोहित सरदाना को मुस्लिमों ने जान से मारने की धमकी सैकड़ों लोगों ने एक साथ दी, तब क्या वो मुस्लिम आतंकवाद था.
न तब मुस्लिम आतंकवाद था और न अब हिंदू आतंकवाद है. सोशल मीडिया ने सिरफिरों को कुछ ज्यादा महत्व दे दिया है. जिसने रवीश को धमकी दी, क्या उसे मोदी सरकार ने कहा कि धमकी दे दो. या जिसने सरदाना को धमकी दी, उसे कांग्रेस ने बोला था.
दरअसल विश्लेषण ही इतना सतही स्तर का हो गया है हम सभी का कि पूछिए मत. दूसरा डर को भुनाना अब आम बात हो गई है. सहानुभूति की रोटियां, तुष्टिकरण से आगे का कदम है और यह सभी तरफ से आजमाया जा रहा है. संघी मुस्लिमों का डर दिखाते हैं और तथाकथित बुद्धिजीवी हिंदुत्व का डर दिखाते हैं.