चंद्रो तोमर एक अस्सी साल से ऊपर की शार्प शूटर हैं. जो उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के जोहरी गांव की हैं. दादी चंद्रो शूटर दादी और रिवाल्वर दादी के नाम से प्रसिद्ध हैं. उन्होंने 1999 में शूटिंग शुरू की थी. आज वो 30 से ज्यादा प्रतियोगिताओं को जीत चुकी हैं. और उन्हें दुनिया की सबसे बुजुर्ग महिला शूटर का खिताब भी मिला हुआ है.

चंद्रो देवी के 8 बच्चे और 15 पोते-पोतियां हैं. 60 साल कर शूटर दादी का शूटिंग से कोई वास्ता तक नहीं था. एक सामान्य सी गृहणी की तरह उनका भी जीवन रोजाना के कामकाज में व्यतीत होता था. जिसमें घर, खेत और पशुओं का काम था. घर, परिवार और बच्चे संभालते-संभालते जवानी कब निकल गई, पता ही नहीं चली. जब दादी बनी और ज्यादातर समय पोते-पोतियों के साथ व्यतीत करने लगी. पोती शैफाली का निशानेबाजी में गहरा शौक था. जैसा कि आम होता है लड़कियों को घर से अकेले नहीं भेजा जाता, ऐसे में पोती के साथ दादी को भेज दिया जाने लगा. पोती ने जोहरी राइफल क्लब ज्वाइन किया और उसके हाथ कांपते देख दादी ने उसे हौंसला देने के लिए खुद बंदूक उठा ली. हालांकि शुरूआत में यह एक सामान्य सी लगने वाली घटना या प्रतिक्रिया थी. परंतु देखते ही देखते दादी ने ऐसा कारनामा कर दिखाया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. पोती तो दूर दादी अब खुद शूटर बनकर उभर गई. उनके निशाने देखकर सब दांतों तले उंगलियां दबाने लगे. पोती शैफाली के कोच फारुख पठान दादी के सटीक निशाने देखकर दंग रह गए. उन्होंने ही दादी को निशानेबाजी सीखने के लिए प्रार्थना की. उन्होंने कहा कि दादी आपकी नज़र और निशाना गजब के हैं.

हालांकि परिवार वालों को भी सुनकर हैरानी हुई कि दादी इस उमर में बंदूक चलाना सीखेंगी. कई लोगों ने तो तंज भी कसे कि बुढ़िया सठिया गई है. पर जब हौसले और इरादे मजबूत हो तो ताने फीके पड़ते चले जाते हैं और इंसान आगे बढ़ता चला जाता है. उसके बाद तो दादी ने विधिवत रूप से निशानेबाजी सीखी और तकनीकि रूप से मजबूत होकर प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना भी शुरू कर दिया और जीतने की ऐसी लत लगी कि लगातार प्रतियोगिताएं जीतती चली गई. धीरे-धीरे वो अपने एरिया में मशहूर होने लगी और आज उनकी पहचान पूरे भारत और विश्व में बन चुकी है. दादी की बदौलत उनके जौहरी गांव को दुनिया जानने पहचानने लगी. अब दादी चंद्रो पर पूरा गांव गर्व करता है. कहां वो वक्त भी था जब उन पर ताने कसे जाते थे.

दादी चंद्रो ने यह मुकाम किस्मत के सहारे हासिल नहीं किया है. इसके पीछे दादी की मेहनत और जज्बा हैं. दादी चंद्रो ने दो साल तक लगातार अभ्यास किया और उसके बाद दिल्ली में आयोजित प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. संयोग की बात देखिए इस प्रतियोगिता में उस समय के दिल्ली के डीआईजी से भीडंत हो गई और दादी ने उन्हें चारों खाने चित्त कर दिया. प्रतियोगिता देखने वालों की आंखें खुली की खुली रह गई. उस दिन जो जीत का डंका दादी के नाम का बजा, फिर उसने थमने का नाम नहीं लिया.
इस जीत के बाद दादी चंद्रो ने लगातार प्रतियोगिताओं में सफलता प्राप्त की. उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में विजय प्राप्त की. 2009 के आसपास हरियाणा के सोनीपत मंल हुए चौधरी चरण सिंह मेमोरियल प्रतिभा सम्मान समारोह में उन्हें सोनिया गांधी ने सम्मानित किया तथा मेरठ की स्त्री शक्ति सम्मान से नवाजा गया.

हाल फिलहाल वो अपने परिवार और अपने क्षेत्र के बच्चों को प्रशिक्षण(ट्रेनिंग) देने का काम करती हैं और उनके यहां सीखे हुए बच्चों ने राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीते हैं. उनकी पोती नीतू सोलंकी एक अंतरराष्ट्रीय शूटर है, जो हंगरी व जर्मनी की शूटिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी है.