जूता या स्याही फेंकने के पीछे क्या होता है मकसद! राजनीतिक साजिश या कुछ और?
कल मनोहरलाल पर रोड शो में काला तेल फेंक दिया गया।
18 मई 2018
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प्रदीप डबास
जूता या स्याही फेंकने के पीछे क्या होता है मकसद ?
राजनीतिक साजिश या कुछ और ?
दिसंबर 2008 के बाद से दुनिया में विरोध जताने का एक अजीब सा तरीका प्रचलित होता गया। करीब दस साल पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश पर इराकी पत्रकार मुंतिजर अल जैदी ने जूता फेंका था। इसके बाद से तो मानो ये परंपरा ही बन गई। किसी की कोई बात पसंद नहीं आए तो मार दो जूता। किसी पार्टी की नीतियां रास नहीं आ रही तो उस पार्टी के नेता पर कर दो हमला। उस पर जूता फेंक दो, स्याही फेंक दो, विरोध का ये रास्ता बेहद खराब है। भारत में भी पिछले दस साल में इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं। कभी किसी नेता पर जूता उझाल दिया जाता तो किसी को थप्पड़ मारकर अपना विरोध दर्ज करवाने की कोशिश की जाती रही है। यहां तककि स्याही फेंक कर किसी का मुंह काला करने का प्रयास भी हुआ। ये कैसी रिवायत है? ये कैसी मानसिकता है? कम से कम लोकतंत्र में तो इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी दो दलों, गुटों या व्यक्तियों में वैचारिक मतभेद हो सकते हैं किंतु इसकी वजह से किसी को शारीरिक रूप से क्षति पहुंचाने की कोशिश करना या जूता फेंक देना, स्याही उझाल देना ये तो सरासर गलत है।
गुरुवार को हिसार में रोड शो के लिए पहुंचे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल पर एक युवक ने स्याही फेंक दी। पुलिस ने उसे तुरंत काबू कर लिया लेकिन इस घटना से हर कोई हैरान था। किसी सरकार या नेता की नीतियों से अगर आप खुश नहीं तो क्या उसपर हमला कर दिया जाना चाहिए। इसका जवाब नहीं के अलावा कुछ नहीं होना चाहिए। लोकतांत्रिक परंपराओं में इस तरह की हरकतों के लिए कोई जगह ही नहीं होनी चाहिए। हरियाणा में इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। पानीपत में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को रोड शो के दौरान ही एक युवक ने थप्पड़ मार दिया था, तो चरखी दादरी में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर रोड शो के दौरान एक सिरफिरे ने हमला कर दिया था। नेता किसी भी दल का हो वो लोगों के लिए संघर्ष करता है। आप उसकी या उसके दल की नीतियों के हक में या खिलाफ हो सकते हो लेकिन हमला कैसे कर सकते हो ये समझ से परे है।
वैसे ये कहकर पल्ला भी नहीं झाडा सकता कि ऐसी हरकते समझ से परे हैं। हमें कोशिश करनी होगी ऐसी हरकतों के पीछे क्या-क्या चीजें काम करती हैं। सबसे पहले बात करनी होगी उस व्यक्ति के मनोविज्ञान की। दूसरे नंबर पर समझना होगा कि कहीं ऐसी हरकते किसी साजिश का हिस्सा तो नहीं और आखिर में ध्यान देना होगा इन हरकतों से जनता पर होने वाले राजनीति प्रभाव पर।
मनोविज्ञान में एक टर्म है तदात्मिकरण। हम सबने देखा है कि अगर कोई किसी फिल्म स्टार की तरह थोड़ा बहुत लगता है तो फिर वो खुद को पूरी तरह उसी रूप में ढालकर मशहूर होने की कोशिश करता है। जैदी ने जूता मारा बुश को तो अरब देशों का हीरो बन गया और पूरी दुनिया में मशहूर हो गया फिर चुनाव भी लड़ा। इसी तरह दिल्ली में पत्रकार जरनैल सिंह जूता मारा उस समय देश के गृह मंत्री को तो देशभर में मशहूर हो गया। चुनाव लड़ा और विधायक भी बन गया। मतलब क्या फेमस होने की चाहत जूता उझलवा रही है या स्याही फिकवा रही है। कई बार फ्रसट्रेशन में व्यक्ति इस तरह के काम करता है। जैसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा को थप्पड़ मारने वाला युवक बेरोजगारी से परेशान था।
लेकिन इनमें सबसे बड़ा जो कारण होता है वो राजनीति और साजिश के दायरे में आता है। गुरुवार को मुख्यमंत्री मनोहरलाल पर स्याही फेंकने वाला एक दल के नेता के नारे लगा रहा था और किसी और दल के नेता के साथ उसकी तस्वीरें इस ओर इशारा कर रही थीं कि ये सबकुछ जान बूझकर और साजिश के तहत करवाया गया प्रतीत होता है। अगर ऐसे है तो ये गंभीर बात है ऐसे लोगों को स्वीकार करना थोड़ा कठिन हो जाता है क्योंकि ये किसी के इशारों पर चलने वाले लोग होते हैं।
लोकतंत्र में अपनी बात रखने का अधिकार सभी को है लेकिन उसका तरीका ठीक होना चाहिए। जूते स्याही या मारपीट की भाषा तो सहन ही नहीं होनी चाहिए।
कब किसने किस पर जूता या स्याही फेंकी
दिसंबर 2008 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश पर पत्रकार ने जूता फेंका
फ़रवरी 2009 में लंदन के दौरे पर पहुंचे चीनी राष्ट्रपति वेन जियाबाओ पर एक जर्मन छात्र ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में जूता फेंका
2009 में ही कांग्रेस नेता नवीन जिंदल पर जूता फेंका गया, जूता फेंकने वाला एक टीचर था
उसी साल भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी की तरफ एक पार्टी कार्यकर्ता ने चप्पल उछाली थी
अप्रैल 2009 में ही एक प्रेस वार्ता में एक पत्रकार ने तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम पर जूता फेंका था
अप्रैल 2009 में ही एक रैली के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरफ जूता उछाला गया
28 अप्रैल 2009 को हासन ज़िले में भारतीय जनता पार्टी की रैली में कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पर चप्पल फेंकी गई थी
अगस्त 2010 को पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी की बर्मिंघम यात्रा के दौरान सरदार शमीम ख़ान नाम के एक 50 वर्षीय व्यक्ति ने उन पर एक जोड़ी जूते फेंके और उन्हें 'हत्यारा' कहा
फ़रवरी 2010 को लंदन में पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ पर एक आदमी ने जूता फेंका
पंद्रह अगस्त 2014 को लुधियाना में एक राजनीतिक कांफ्रेंस में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की ओर एक बेरोज़गार युवक ने जूता उछाला
अक्टूबर 2016 को कुरुक्षेत्र से सांसद राजकुमार सैनी पर स्याही फेंकी गई और उन्हें थप्पड़ मारे गये
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी स्याही वालों का शिकार हो चुके हैं
कुछ भी लेकिन विरोध का ये तरीका थमना चाहिए।