हरियाणा में इनेलो का जींद और सिरसा गढ़ माना जाता है. बंसीलाल का गढ़ भिवानी को माना जाता है और भजनलाल का हिसार गढ़ माना जाता है. इसी पंरपरा का निर्वाह करते हुए हुड्डा ने खुद को रोहतक और सोनीपत के बड़े नेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया और काफी हद तक सफल भी हुए. हरियाणा की राजनीति में गढ़ में मौज रही है और बाकी जगह गढ्ढे खोदने वाली राजनीति का बोलबाला रहा है. यह गढ़ बनाया जाता था अपने क्षेत्र को विशेष सुविधाएं देकर और बाकी के हिस्सों को अपने क्षेत्र में बांटकर. दूसरों के हक मारकर अपने क्षेत्र को खास बनाना हरियाणा में पुरानी रिवायत रही है.
2014 में बनी भाजपा की सरकार ने इसी पुरानी रिवायत को काफी हद तक तोड़ने की कोशिश की है. पूरी तरह तोड़ दी है, यह कहना मुश्किल है. जीटी रोड बैल्ट हरियाणा की सबसे समृद्ध बैल्ट मानी जाती है और शायद इसी कारण हर पार्टी के बड़े नेता ने इस बैल्ट पर कभी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया. संपन्न होने के कारण शायद कोई बड़ा नेता भी ये बैल्ट पैदा नहीं कर सकी. क्योंकि अभाव में राजनीति सबसे ज्यादा चमकती है. खैर इसी उपेक्षा के कारण आज ये बैल्ट भाजपा का गढ़ मानी जा सकती है. हालांकि भाजपा ने भी कोई विशेष काम नहीं किया है, परंतु भाजपा पर यह आरोप भी नहीं लग पाया है कि इसने किसी खास क्षेत्र पर मेहरबानी दिखाई हो.
अंबाला, कुरुक्षेत्र और करनाल लोकसभा सीटों के अतंर्गत आने वाली विधान सभा सीटों पर 2014 में भाजपा का परचम लहराया था. कालका, पंचकूला, नारायणगढ़, अंबाला कैंट, अंबाला शहर, मुलाना, सढौरा, जगाधरी, यमुनानगर, रादौर, लाडवा, शाहबाद, थानेसर, गुहला, निलोखेड़ी, इंद्री, करनाल, घरोंडा, असंध, पानीपत ग्रामीण, पानीपत शहर, इसराना. हालांकि समालखा से जीत दर्ज करने वाले रविंद्र मछरोली भी भाजपा में शामिल हो गए थे. इन विधानसभा सीटों पर भाजपा को ज्यादातर मुकाबला इनेलो ने ही दिया था. कांग्रेस नारायणगढ़, अंबाला कैंट, गुहला, पानीपत सिटी, इसराना, समालखा में दूसरे स्थान पर रही थी. दरअसल कांग्रेस इस पूरी बैल्ट में कोई बड़ा नेता नहीं खड़ा कर पाई, जिसका खामियाजा उसके भुगतना पड़ा. भूपेंद्र हुड्डा रोहतक, झज्जर और सोनीपत से बाहर कम ही स्वीकार्य हो पाए.
क्या अगले विधान सभा चुनाव में भी भाजपा इस जीटी रोड बैल्ट पर अपनी पकड़ को बनाए रखने में कामयाब हो पाएगी! या इनेलो उसके इस गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब होगी. हालांकि जीटी रोड बैल्ट पर कांग्रेस को मजबूत माना जाता था, परंतु कांग्रेस की आपसी फूट और स्पष्ट नेतृत्व की घोषणा न होना कांग्रेस के लिए इस बैल्ट पर घातक सिद्ध हो सकता है.
अगर कांग्रेस भाजपा के गैर जाट के दांव का जवाब कुलदीप बिश्नोई को आगे करके खेलती है, तो इसका सीधा फायदा इनेलो-बसपा गठबंधन को मिल सकता है, क्योंकि गैर जाट वोटर दो जगह बंट जाएंगे और जाट वोटर जो हुड्डा के कारण कांग्रेस की तरफ गया था. वो इनेलो में आ सकता है. खासकर जीटी रोड बैल्ट वाला. हुड्डा के अपने गढ़ का जाट वोटर हुड्डा को एक मौका दे भी सकता है.
अगर कांग्रेस हुड्डा के नेतृत्व में चुनाव लड़ती है, तो यह भाजपा के लिए ज्यादा मुनाफे का गेम होगा. क्योंकि फिर जाट वोटर तीन जगह बंट जाएगा. संभावना यही जताई जा रही है कि कांग्रेस अपने पुराने वोटर गरीब और दलित की तरफ लौटना चाह रही है. ऐसे में राहुल गांधी हरियाणा के बारे में क्या निर्णय लेते हैं, इस पर निगाहें टिकी रहेंगी.
2014 के चुनाव में भाजपा ने 47 सीटों पर जीत दर्ज की थी, 17 सीटों पर दूसरे नंबर पर, 19 सीटों पर तीसरे नंबर पर, 6 सीटों पर चौथे नंबर पर रही थी. तोशाम सीट पर पांचवे से भी नीचे पर रही थी.
2014 के चुनाव में इनेलो ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी, 40 पर दूसरे नंबर पर, 21 पर तीसरे नंबर पर, 8 पर चौथे नंबर पर और 1 पर पांचवे नंबर पर रही थी. अगर बसपा का देखा जाए तो 1 सीट पर जीत दर्ज की थी, 2 पर दूसरे नंबर पर, 7 पर तीसरे नंबर पर, 21 पर चौथे नंबर पर, 25 पर पांचवे नंबर पर और 31 पर पांचवे से भी नीचे रही थी.
कांग्रेस ने 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी, 19 पर दूसरे नंबर पर, 30 पर तीसरे नंबर पर, 18 पर चौथे पर, 6 पर पांचवे नंबर पर रही थी. 2 पर पांचवे से भी नीचे रही थी.