अपने आपको सभ्य कहने वाला समाज दंड पर टिका है और आदिवासी समाज गलती का अहसास करवाकर गलती न करने की प्रेरणा देता है।
26 अप्रैल 2018
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नया हरियाणा
अफ्रीका की हिम्बा प्रजाति में बच्चे का जन्म उस दिन से माना जाता है जिस दिन स्त्री गर्भधारण का निर्णय करती है । वो अकेले कहीं बैठती है जा के जिसे वो अपने होने वाले बच्चे (शारीरिक तौर से जिसका अभी अस्तित्व नहीं है ) का गाना सुनना कहते हैं, सम्भव है कि वो खुद ही अपना एक गाना गुनती है । फिर जाके वो गीत उस आदमी को सुनाती है जिसे वो अपने होने वाले शिशु के पिता की तरह देखती है । फिर वो दोनों मिल के वो गीत गाते है , और संसर्ग के बाद भी वो गीत गाते हैं । इसको इस तरह देख सकते हैं कि दोनों अपने होने वाले उस बच्चे को बुला रहे हैं जिसकी उन्होंने कल्पना मात्र की है । जब स्त्री गर्भवती हो जाती है तो वही गीत वो वहां की औरतों को सिखाती है जिससे प्रसवपीड़ा के दौरान उसी गीत को सब गायें और शिशु का स्वागत करें ।
वो गाना उस बच्चे के हर ज़रूरी अवसर पर गाया जाता है और तब भी जब उसे चोट लगती है या वो प्यूबर्टी में कदम रखता है ।
सबसे अनोखी और प्यारी बात यह है कि जब कोई हिम्बा स्त्री/पुरुष अपराध करता है तो उसको बीच गाँव में ले जाते हैं और फिर सारे लोग हाथ पकड़ के घेरा बनाते हैं और वही गीत उसको सुनाते हैं, जो उसकी माँ ने उसके जन्म से पहले ही उसके लिए गुना था ।
इसका औचित्य यह है कि हिम्बा जनजाति सुधार के लिए दंड को महत्व नहीं देती बल्कि व्यक्ति को फिर से उसकी पहचान से जोड़ देने को ज़रूरी मानती है, उसको याद कराना कि तुम्हारा गीत तो यह है, तुम कितने निर्दोष-निष्पाप थे, यह क्या करने लगे तुम !!! उसको पश्चाताप कराने को प्रमुखता देती है, उसकी इनोसेंस को पुनः स्मरण कराना ।
और जब वो मनुष्य मरता है तब जो लोग उसका गीत जानते हैं वो सब उसको दफनाते हुए वही गीत गाते हैं । आखिरी बार, वही गीत जो उसकी माँ ने गुनगुनाया था उसके आने से भी बहुत पहले ।
(एक पेज से अनुदित)
आदिवासी दरअसल इंसानों और जानवरों के बीच की दिव्य कड़ी हैं। ये वो चाभी हैं जो मुख्यधारा के इंसानों को जानवरों की छठी इंद्री का रहस्य बता सकते हैं ।