हरियाणा की राजनीति में बीजेपी खुद के नेताओं और दूसरे दलों से आए नेताओं के भरोसे इतनी मजबूत स्थिति में पहुंच गई है कि उसका 75 पार का नारा भी आसान लग रहा है. दूसरी तरफ बीजेपी के 5 साल के शासन ने बीजेपी को दूसरे दलों की तुलना फिलहाल बेहतर ही साबित किया है, तभी जनता का मोह बीजेपी की तरफ साफ दिख रहा है. ऐसे कांग्रेस से आए कद्दावर नेताओं में आज हम बात करेंगे जींद जिले के चौधरी बीरेंद्र सिंह की. क्योंकि अघोषित तौर पर उन्होंने हरियाणा में बीजेपी की तरफ से विधानसभा चुनाव के बिगुल की पहली रैली जींद में की थी. जिसके बाद सीएम मनोहर लाल ने जन आशीर्वाद यात्रा शुरू की, जिसका समापन रोहतक में पीएम मोदी करेंगे.
जहां तक विपक्षी दलों की बात है, वो अभी चुनाव में उतरने के मूड कम ही नजर आ रहे हैं. कांग्रेस के पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा 5साल से तेल देखो तेल की धार देखो दिखाने में लगे हुए हैं. परिवर्तन रैली के माध्यम से भी हुड्डा को कोई खास संदेश तो दे नहीं पाए, पर कांग्रेस को कितना दबाव में डाल पाए, ये कुछ दिन बाद पता चलेगा. इनेलो की ताखड़ी में चाहे दाने कम ही बचे हों, पर हौंसलों के स्तर पर सूपड़ा साफ कहना अभी भी जारी है. जेजेपी और बसपा गठबंधन बदलाव रैली के जरिए बीजेपी की आंधी में खुरचन के तौर पर एकाध सीट कहीं से निकल जाए, इस तलाश में भटक रही है. खैर हरियाणा की राजनीति में यह पहला मौका होगा, जब विपक्षी पार्टी मैदान छोड़ चुकी हैं और गिरोह की तरह सीट वाइज चुनाव लड़ेंगी. ओवर आल हरियाणा में बीजेपी को छोड़कर कोई पार्टी सभी जगह चुनाव नहीं लड़ रही है.
हरियाणा की राजनीति में चौधरी बीरेंद्र सिंह कोई गंभीर और ठोस व्यक्तित्व वाले नेता नहीं हैं, भले ही उन्हें ये गुमान खूब रहता है कि वो हरियाणा में खासकर जींद जिले के जाटों के बड़े नेता हैं. हां, इतना जरूर है कि वो अपने नाना चौधरी छोटूराम के नाती होने के नाते ज्यादा महत्त्व लेते रहे हैं. कांग्रेस में लंबे समय तक राजनीति करने वाले बीरेंद्र सिंह 2014 में बीजेपी में शामिल हो गए. 2014 से 2019 तक इनकी राजनीति पर गौर करें तो ये जाट आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व कर रहे यशपाल मलिक के मंचों पर तो जरूर दिखाई दिए. उसके अलावा हरियाणा की राजनीति में न के बराबर सक्रिय रहे. हालांकि जाट समाज द्वारा यशपाल मलिक पर चंदे के पैसे हड़पने के आरोप लगते रहे और वो बिना हिसाब दिए बेशर्मी के साथ नेतृत्व करते रहे. यशपाल मलिक आदि के ग्रुप ने बीजेपी पर जो दबाव बनाया, उसकी असली कीमत बीरेंद्र सिंह लोकसभा चुनाव में अपने बेटे को हिसार लोकसभा से टिकट दिलवाकर वसूल कर गए. खुद बीरेंद्र सिंह राज्यसभा सांसद व मंत्री हैं ही और 2014 के विधानसभा चुनाव में उचाना से श्रीमती को विधायक बना गए. खैर कांग्रेस की पारिवारिक राजनीति को बीरेंद्र सिंह ने बीजेपी में भी यूं ही जीवित रखा.
2019 के विधानसभा चुनाव से पूर्व बीरेंद्र सिंह ने शक्ति प्रदर्शन और उचाना से घर में टिकट बनी रहे, इसके लिए जींद में रैली का आयोजन किया. ऐसे में सवाल बनते हैं कि क्या बीरेंद्र सिंह की जींद रैली सफल कही जा सकती है? क्या इस रैली ने बीरेंद्र सिंह की उम्मीदों को पंख लगाए या पंख कुतरने का काम किया?
चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कश्मीर से धारा 370 और 35 A के खत्म होने के बाद देश में मोदी के बाद बीजेपी में दूसरे नंबर के पॉवरफूल गृहमंत्री अमित शाह की जींद में दमदार रैली की और जिस शक्ति प्रदर्शन और प्रशंसा के लिए ये रैली की गई थी. उस मकसद के आसपास भी नहीं रही. ऐसा प्रतीत हुआ मानो ये रैली बीरेंद्र सिंह ने जींद में रैली मनोहर लाल की प्रशंसा में रखी थी. गृहमंत्री अमितशाह का पूरा भाषण धारा 370 और सीएम मनोहर लाल की प्रशंसा पर केंद्रित रहा.
अमित शाह ने जींद रैली में चौधरी बीरेंद्र सिंह के बारे में केवल एक वाक्य कहा कि- ये बीजेपी नामक दूध में शक्कर की तरह घूल गए. इस वाक्य में उनकी प्रशंसा भी है और उनके किसी स्वतंत्र व्यक्तित्व के विलीन हो जाने की ध्वनि को साफ सुना जा सकता है. इस रैली के साथ हरियाणा के पुराने कांग्रेसी नेता और वर्तमान बीजेपी मंत्री बीरेंद्र सिंह के युग के अंत की घोषणा कहा जा सकता है.
बीरेंद्र सिंह ने अपने जीवन में महत्वाकांक्षा और सपने हमेशा बड़े लिए परंतु खुद के व्यक्तित्व को हमेशा लिजलिजा बनाकर रखा. जिसके कारण उन्हें कोई ठोस सफलता नहीं मिल सकी. ऐसे में पूरी संभावना लग रही है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी उचाना से बीरेंद्र सिंह के परिवार की टिकट काट दे तो कोई हैरानी नहीं होगी. चौधरी बीरेंद्र ने इस रैली में गृहमंत्री को भेंट स्वरूप लठ दिया है. हो सकता है कि टिकट बंटवारे में पहली लाठी इन पर ही न पड़ जाएं.