1952 के पहले चुनाव में कांग्रेस के कृष्ण गोपाल दत्त ने जनसंघ के कुंदनलाल को पराजित किया. 1957 में भी कांग्रेस प्रत्याशी परमानंद जनसंघ के जय नारायण को पराजित कर विधायक बने. 1962 के चुनाव में जनसंघ के फतेह चंद ने कांग्रेस के परमानंद को परास्त किया. हरियाणा के राज्य बनने के बाद 1967 में हुए पहले चुनाव में भी इस सीट से जनसंघ के फतेह चंद ही जीते. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी हुकूमत राय शाह को शिकस्त दी. 1968 के मध्यावधि चुनाव में भी फतेह चंद विज ने जनसंघ की पताका फहराया और इस बार कांग्रेस के चमनलाल आहूजा को हराया. इस चुनाव में चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल के बलबीर सिंह लगभग 6 हजार वोट लेने में कामयाब रहे. 1972 में कांग्रेस के हुकूमत रे शाह ने तीन बार विधायक रहे फतेह चंद विज को मात दी. लेकिन 1977 व 1982 के चुनाव फिर से फतेह चंद ने जीते और दोनों बार प्रत्याशी कस्तूरी लाल आहूजा को पराजित किया.
1987 में हुकूमत राय शाह के बेटे बलबीर पाल शाह ने कांग्रेस की तरफ से मोर्चा लिया और निर्दलीय कस्तूरी लाल आहूजा को पराजित किया. भाजपा के महेंद्र कुमार तीसरे स्थान पर रहे. बलबीर पाल शाह उन 5 कांग्रेसी विधायकों में से एक थे जो चौधरी देवीलाल की आंधी में भी चुनाव जीतने में सफल रहे. शाह की इस विजयी से प्रभावित होकर राजीव गांधी ने उन्हें हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था. शाह 1991 में भी विजयी रहे. इस बार उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार ओम प्रकाश जैन को परास्त किया. लेकिन 1996 में बलबीर पाल शाह निर्दलीय ओमप्रकाश जैन के हाथों मात खा गए. 2000 में बलबीर पाल शाह ने भाजपा के मनोहर लाल को पराजित किया. 2005 और 2009 में भी बलबीर पाल शाह ने यहां कांग्रेस का झंडा बुलंद किया. पहली बार उन्होंने निर्दलीय ओम प्रकाश जैन को पराजित किया. भाजपा के संजय भाटिया तीसरे और इनेलो के कस्तूरी लाल आहूजा चौथे स्थान पर है. 2009 में शाह ने भाजपा के संजय भाटिया को पराजित किया. इनेलो के सुरेश मित्तल लगभग 21 हजार वोट लेने में कामयाब रहे और तीसरे स्थान पर रहे. हजकां के विनोद वढ़ेरा भी 6 हजार वोट लेने में सफल रहे. 2014 में पानीपत को पहली बार रोहिता रेवड़ी के रूप में एक महिला विधायक मिली. उन्होंने कांग्रेस के वीरेंद्र कुमार शाह को लगभग 53 हजार वोटों से हराया और 32 साल बाद कमल खिलाया. इनेलो की नीलम नारंग को महज 2600 वोट ही मिल सके.