समालखा पानीपत जिले और करनाल लोकसभा की विधानसभा सीट है.
4 अगस्त 2019
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नया हरियाणा
उत्तर भारत में कोल्हू के पाठ व चारा काटने वाली मशीन के निर्माण के लिए प्रसिद्ध समालखा आया राम गया राम की राजनीति के लिए हरियाणा भर में चर्चाओं का केंद्र रहा. समालखा विधानसभा में 1967 में राव वीरेंद्र सिंह और 1996 में चौधरी बंसीलाल की सरकार के पतन के दौरान तत्कालीन विधायक को पर दलबदल की अंगुली उठी थी. जबकि करतार भडाना को तो चौधरी बंसीलाल की सरकार गिराने का सबसे तगड़ा सूत्रधार माना गया है. वहीं 2009 में हरियाणा जनहित कांग्रेस में विधायक बने धर्म सिंह छौक्कर रातों-रात हुड्डा की सरकार में मंत्री बनने की लालसा के लिए कांग्रेसी बन गए थे. लेकिन धर्म सिंह के मंत्री बनने का उनका सपना पूरा नहीं हो पाया. स्मरणीय है कि सन 1990 से पहले समालखा, करनाल जिला का हिस्सा हुआ करती थी. चौधरी देवीलाल की सरकार ने सन 1991 में पानीपत को नया समालखा, पानीपत जिला विधान सभा बन गई. वहीं समालखा सीट पर भाजपा का जनाधार पहले भी था और वर्तमान में भी है. भाजपा के जनाधार के बल पर समालखा से जनता पार्टी के मूलचंद जैन, इनेलो के सचदेव त्यागी एक-एक बार व हरियाणा विकास पार्टी व इनेलो से करतार सिंह भडाना दो बार विधायक चुने जा चुके हैं. 2014 में राजनीतिक समीकरणों को किनारे रखते हुए जाट बिरादरी बाहुल समालखा हलके से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में रविंदर मछरौली विधायक बने. वर्तमान में रविंदर भाजपा सरकार का समर्थन कर रहे हैं और अक्टूबर में आयोजित होने जा रहे हरियाणा विधानसभा के चुनाव में भाजपा से टिकट लेने के लिए प्रयासरत हैं. हालांकि रविंदर ने सार्वजनिक रूप से संबंध में फिलहाल कुछ नहीं कहा है. जबकि निर्दलीय विधायक होने के बावजूद भी रविंदर भाजपा के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेते दिखाई देते हैं. भाजपा हाईकमान को भी समालखा कमल खिलने का इंतजार है और समालखा फतेह के लिए भाजपा को सशक्त उम्मीदवार की तलाश है.
विधायक रविंदर मछरौली का कहना है कि वे निर्दलीय विधायक हैं. उन्होंने भाजपा सरकार का समर्थन किया, वहीं मुख्यमंत्री मनोहर लाल समालखा की जर्जर हालत से वाकिफ थे. उन्होंने समालखा हलके में विकास कार्यो को प्राथमिकता से लेते हुए तेजी से विकास कार्य करवाए. जबकि 1967 से लेकर 2014 तक समालखा से 11 विधायक रहे, जो कि सभी सत्तारूढ़ दल से थे. इसके बावजूद भी किसी भी विधायक ने समालखा हलके का विकास नहीं करवाया. सभी विधायकों ने जनता को वोट बैंक के रूप में प्रयोग किया. यही नहीं समालखा से तीन विधायक तो बाहरी बने और तीन विधायकों ने दलबदल कर समालखा हलके की जनता को बदनाम किया. उनका कहना है कि सीएम ने समालखा हलके की जनता की एक पिता की तरह सेवा की है. वहीं जनता की सलाह से मैंने जो भी मुख्यमंत्री से जनता के लिए मांगा वह मांग मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने तत्काल पूरी की. समालखा हलके के हर गांव में विकास कार्य चल रहे हैं. अब समालखा के किसी भी गांव में कोई रास्ता कच्चा नहीं है. जनता की मांग पर हर गांव में चौपाल बनवाई गई है तथा पुराने चौपालों का जीर्णोद्धार किया.
जमीनी हकीकत यह है कि कांग्रेस, इनेलो आदि राजनीतिक दलों ने समालखा की जनता के साथ अपनी सरकारों के दौरान न्याय नहीं किया. आया राम गया राम की राजनीति तीन विधायकों के बाहरी होने आदि कारणों के चलते समालखा हलके का उतना विकास नहीं हो पाया, जितना होना चाहिए था. यह एक कड़वा सच है कि समालखा की जनता का वोट बैंक के रूप में प्रयोग हुआ है. वहीं भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में समालखा हलके की अनदेखी से हुए नुकसान की अच्छी-खासी भरपाई की है. मनोहर लाल ने सबका साथ सबका विकास के नारे को समालखा में प्रबल करते हुए निर्दलीय विधायक रविंद्र मछरौली का भरपूर समर्थन किया और जनता को 100 बेड का सिविल अस्पताल, सामुदायिक केंद्र, पंजाबी धर्मशाला, सैनिक भवन व समालखा बापौली रोड पर पुल का निर्माण करवा दिया. भाजपा सरकार के कड़े प्रयासों के चलते जीटी रोड व हाईवे पर यातायात का बोझ कम हुआ.
समालखा की जनता अधिकतर सरकार के साथ ही चली है. वहीं लोकसभा चुनाव में करनाल से भाजपा प्रत्याशी देश में दूसरे सर्वाधिक वोटों से जीते. सांसद संजय भाटिया की जीत में समालखा के वोटरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वहीं शहरी व ग्रामीण क्षेत्र से बने समालखा हलके में अभी भी मोदी लहर का अच्छा खासा प्रभाव है. इधर भाजपा से टिकट के लिए निर्दलीय विधायक रविंद्र मछरौली, शशिकांत कौशिक, विधु रावल, हरपाल जौरासी राजकुमार कालीरमन व कृष्ण छौक्कर किवाना प्रबल दावेदार हैं. इनमें सबसे ज्यादा संभावना हरपाल जौरासी की हैं. जबकि लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से पूर्व विधायक भरत सिंह छौक्कर दावेदार है. कांग्रेस से संजय छौक्कर दावेदार हैं. जजपा से ब्रह्मपाल रावल तथा इनेलो से लेखराज चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. ऐसे में समालखा हलके में बहुकोणीय मुकाबला हो सकता है. फिर भी भाजपा प्रत्याशी ही फायदे में इसीलिए रहेगा कि कांग्रेसी अपनी आपसी फूट के लिए देश भर में प्रसिद्ध है. इनेलो से जजपा का जन्म होने से आधार दो भागों में बंट गया है. वहीं लोसुपा के भरत सिंह छौक्कर को रावल गोत्र के गुर्जरों से मुकाबला करना पड़ेगा. यदि ऐसा होता है तो भाजपा की विधानसभा में जीत की राह काफी आसान हो जाएगी. निर्दलीय विधायक ने राज्य सरकार से मिलकर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विकास कार्य करवाए हैं. जिसमें गांव आट्टा में उत्तर प्रदेश को समालखा से जोड़ने के लिए यमुना नदी पर विशाल पुल का निर्माण कार्य चालू करवाया. वहीं समालखा हलके के सभी गांव में गंदे पानी की निकासी के लिए नाले-नालियों का निर्माण, कच्चे मार्ग को पक्का करवाने, समालखा हलके के ग्रामीण अंचल में सभी लिंक मार्ग को चौड़ा करवाया गया है.
विधानसभा का इतिहास
1967 चौधरी रणधीर सिंह बीजेएस
1968 कटार छौकर कांग्रेस
1972 हरी सिंह रावल कांग्रेस
1977 मूलचंद जैन जपा
1982 कटार छौकर कांग्रेस
1987 सचदेव त्यागी लोकदल
1991 हरी सिंह नलवा जनता दल
1996 करतार भड़ाना हविपा
2000 करतार भड़ाना इनेलो
2005 भरत सिंह छौकर कांग्रेस
2009 धर्मसिंह छौकर हजकां
2014 रविंद्र मछरौली निर्दलीय