सिरसा लोकसभा के नरवाना विधानसभा का राजनीतिक इतिहास
नरवाना जींद जिले का हिस्सा है और सिरसा लोकसभा में आने वाला विधानसभा क्षेत्र है. यह आरक्षित सीट है.
4 अगस्त 2019
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नया हरियाणा
सिरसा लोकसभा सीट के अंतर्गत 9 विधानसभा सीटें आती हैं। जिनमें सिरसा विधानसभा, फतेहाबाद विधानसभा, टोहाना विधानसभा, डबवाली विधानसभा, ऐलनाबाद विधानसभा, रानियां विधानसभा, नरवाना विधानसभा, रतिया विधानसभा और कालावली विधानसभा क्षेत्र आते हैं। जिनमें से तीन आरक्षित सीटें हैं रतिया, कालावली और नरवाना।
नरवाना विधानसभा
1962 में सृजित जींद जिले का चर्चित नरवाना विधानसभा क्षेत्र प्रदेश की सियासत में लंबे समय तक सुरजेवाला परिवार का गढ़ रहा है। एक दौर में ओमप्रकाश चौटाला ने भी यहां प्रभावी दस्तक दी। चौटाला दो बार यहां से विजई हुए और दो ही बार पराजित भी हुए। 1962 में नरवाना आरक्षित विधानसभा क्षेत्र था और स्वतंत्र पार्टी के फकीरा कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर यहां से विधायक चुने गए थे। 1967 से 2005 तक एक उपचुनाव समेत यहां कुल 11 बार चुनाव हुए। केवल 1972 के एक चुनाव को छोड़कर सुरजेवाला परिवार ने सभी चुनाव में भाग लिया। 10 चुनाव में से चौधरी शमशेर सिंह सुरजेवाला और उनके बेटे रणदीप सुरजेवाला ने छह चुनाव जीते। 1967 में शमशेर सुरजेवाला ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस प्रत्याशी कलीराम मोर को पर जीत हासिल की। 1968 के मध्यावधि चुनाव में सुरजेवाला निर्दलीय लड़ा लेकिन इस बार कांग्रेस प्रत्याशी चौधरी नेकीराम डूमरखा चौधरी बिरेंदर सिंह के पिता ने उन्हें पराजित किया। 1972 में सुरजेवाला ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की लेकिन चुनाव नहीं लड़े। इस दफा कांग्रेस ने चौधरी बिरेंदर सिंह डूमरखा को मैदान में उतारा। संगठन कांग्रेस ने लाला गौरीशंकर को प्रत्याशी बनाया। तीसरे उम्मीदवार भारतीय आर्य सभा के टेकचंद थे। गोरी शंकर ने टेकचन्द हैं को मात दी। बीरेंद्र सिंह तीसरे स्थान पर रहे। 1977 में शमशेर सिंह सुरजेवाला ने आजाद उम्मीदवार टेक चन्द को पराजित किया। 1982 में भी सुरजेवाला विजई रहे। उन्होंने इस बार लोक दल के प्रत्याशी बने टेकचंद को हराया। निर्दलीय लाला गौरीशंकर तीसरे स्थान पर रहे। 1991 में सुरजेवाला ने इस बार हविपा से लड़ रहे लाला गोरी शंकर को पराजित किया।
जनता पार्टी के टेकचन्द तीसरे स्थान पर रहे। 1992 में सुरजेवाला राज्यसभा सदस्य हो गए तो उपचुनाव की स्थिति पैदा हो गई। 1993 में उपचुनाव हुआ तो शमशेर सिंह सुरजेवाला ने अपने पुत्र रणदीप सिंह को मैदान में उतारा। लेकिन युवा रणदीप अपने जीवन का पहला चुनाव हार गए। रणदीप को मात देने वाला कोई साधारण नेता नहीं अपितु ओमप्रकाश चौटाला थे लेकिन 1996 में रणदीप में चौटाला से अपनी हार का बदला ले लिया। 2000 में चौटाला ने रणदीप को फिर से पराजित कर दिया। अब बदला लेने की बारी रणदीप की थी। जो 2005 में रणदीप ने चौटाला को परास्त कर दिया। 2009 में नरवाना फिर से आरक्षित हो गया और इस तरह चौटाला रणदीप चुनावी जंग का भी अंत हो गया। 2009 में रणदीप कैथल शिफ्ट गया। जहां उनके पिता शमशेर सिंह ने 2005 में जीत हासिल की थी।
सिरसा लोकसभा का इतिहास
देश में 1952 में पहली बार चुनाव हुए तो सिरसा लोकसभा क्षेत्र के साथ फाजिल्का का नाम भी जुड़ा हुआ था. यह फाजिल्का सिरसा संसदीय क्षेत्र कहलाता था। नामधारी आत्मा सिंह यहां के पहले सांसद थे। नामधारी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में सरदार इकबाल सिंह जीते और 1954 से 1957 तक लोकसभा सदस्य रहे। दोनों ही सांसद कांग्रेस पार्टी के थे और शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवारों को पराजित कर लोकसभा पहुंचे थे। 1957 व 1962 के चुनाव में सिरसा लोकसभा क्षेत्र नाम से कोई संसदीय क्षेत्र था ही नहीं। इस क्षेत्र के मतदाता हिसार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा थे। 1967 में पहली बार विशुद्ध सिरसा लोकसभा क्षेत्र (आरक्षित) अस्तित्व में आया और कांग्रेस के चौधरी दलबीर सिंह सांसद चुने गए। 1971 में भी दलबीर सिंह विशाल हरियाणा पार्टी के जगन्नाथ को पराजित कर चुने गए। 1970 में भारतीय लोकदल के चौधरी चांदराम ने दलबीर सिंह को शिकस्त दी। 1980 में दलबीर सिंह जनता पार्टी के फूल चंद को मात देकर तीसरी बार सांसद चुने गए। 1984 का चुनाव भी दलबीर सिंह के लिए विजय लेकर आया। इस बार उन्होंने लोकदल के मनीराम को हराया। 1987 में दलबीर सिंह का निधन हो गया। 1988 के उपचुनाव में कांग्रेस की ओर से स्वर्गीय दलबीर सिंह की बेटी कुमारी शैलजा मैदान में उतरी लेकिन जब लोकदल के हेतराम से हार गई। लगभग 1 साल बाद 1989 में नियमित चुनाव हुए तो सैलजा चुनाव नहीं लड़ी बल्कि कांग्रेस ने मनीराम को प्रत्याशी बनाया लेकिन हेतराम फिर विजई हुए। 1991 में संपन्न हुए चुनाव में कुमारी शैलजा ने हेतराम को पराजित किया। 1996 में शैलजा ने समता पार्टी के सुशील इंदौरा को पराजित किया लेकिन 1998 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए तो डॉक्टर इंदौरा ने शैलजा को पराजित कर दिया। 1999 में इंदौरा ने कांग्रेसी के ओम प्रकाश को हराया तो 2004 में कांग्रेस की आत्मा सिंह गिल ने इंदौरा को चित्त कर दिया। 2004 में शैलजा से अंबाला शिफ्ट हो गई। 2009 में कांग्रेस ने नए और युवा चेहरे के रूप में डॉ अशोक तंवर उम्मीदवार बनाया और अपने जीवन के पहले चुनाव में इनेलो के डॉक्टर सीताराम को मात देकर संसद पहुंचने में सफल रहे। सिरसा के लोगों के लिए तंवर एक तरह से बाहरी व्यक्ति थे क्योंकि न तो वह यहां पैदा हुए थे और न ही सिरसा उनकी कर्मभूमि रही थी। तंवर मूलतः झज्जर जिले के हैं। उनसे पहले रोहतक के चौधरी चांदराम भी सिरसा से लोकसभा सांसद रहे थे। 2014 में इनेलो के चरणजीत सिंह रोड़ी ने अशोक तंवर को पराजित कर दिया और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सुनीता दुग्गल ने कांग्रेसी अशोक तंवर को बुरी तरह पराजित कर दिया।