किसानों को बरगलाने के लिए आंदोलन, विरोध प्रदर्शन आदि तो होते रहे हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे, परंतु किसानों की हालत सरकारों के भरोसे रहकर नहीं बदल सकती। किसानों को खुद का भाग्यविधाता खुद ही बनना होगा। क्योंकि खेती और मार्केट को समझने वाला हर आदमी कहता है, खेती में कमाई करनी है तो अनाज नहीं उसको प्रोडक्ट बनाकर बेचो। गेहूं की जगह आटा, तो फल की जगह जूस और जैम। लेकिन ये काम कैसे होगा, उसकी न फैक्ट्री लगाने की मशीनें सस्ती और सस्ती मिलती हैं। लेकिन कुछ किसान ऐसे हैं जिन्होंने इसका तोड़ निकाल लिया है। धीरे-धीरे किसान मार्केट के खेल को समझ रहे हैं और खेती को मार्केट से जोड़ने के काम भी लग रहे हैं। ऐसे ही एक किसान से आज आपको रू-ब-रू करवा रहे हैं-
हरियाणा के रहने वाले धर्मवीर कंबोज न सिर्फ खुद इस राह पर चले बल्कि अपनी बनाई जुगाड़ की मशीनों से हजारों किसानों को रोजगार दिया। उनका खुद का कारोबार आज लाखों में है और वो सफल उद्यमी और किसान ट्रेनर हैं। हरियाणा के यमुनानगर जिले के दंगला गाँव के रहने वाले धर्मवीर कंबोज सालाना 80 लाख से एक करोड़ रूपए तक कमा लेते हैं, लेकिन कभी वो दिल्ली की सड़कों पर दिन-रात रिक्शा चलाते थे। लेकिन एक दिन वो घर लौटे और जैविक खेती शुरु की। फिर अपने ही खेतों में उगाई सब्जियों की प्रोसेसिंग शुरु की, उसके लिए मशीनें बनाईं।
लेकिन, रिक्शा चालक से करोड़पति बनने तक की राह इतनी आसान नहीं थी। करोड़पति बनने तक के सफर के बारे में धर्मवीर सिंह बताते हैं, "इतना पढ़ा लिखा नहीं था कि कोई नौकरी पाता, इसलिए गाँव छोड़कर दिल्ली में रिक्शा चलाने लगा। रिक्शा चलाकर घर चलाना भी मुश्किल था। एक बार एक एक्सीडेंट हो जिससे मैं वापस आने गाँव आ गया।" घर आने के बाद कई महीनों तक उन्हें कोई काम नहीं मिला और वो घर पर ही रहे। एक बार वे राजस्थान के अजमेर गए, जहां उन्हें आंवले की मिठाई और गुलाब जल बनाने की जानकारी मिली। धर्मवीर बताते हैं, "एक बार हमारे गाँव के किसानों का टूर अजमेर गया, वहां पर मैंने देखा कि वहां पर महिलाएं आंवले की मिठाइयां बना रहीं हैं, मैंने सोचा कि मैं भी यही करूंगा, लेकिन इसको बनाने के लिए गाजर या फिर आंवले को कद्दूकस करके निकालना होता है, जिससे हाथ छिलने का डर बना रहता था, जिस हिसाब से मुझे प्रोडक्शन चाहिए था, वो मैन्युअल पर आसानी नहीं हो सकता था। तब मैंने सोचा कि कोई ऐसी मशीन बनायी जाए जिससे मेरा काम आसान हो जाए।"
अपनी फेसबुक पोस्ट पर कमलजीत लिखते हैं कि-ये हरियाणा का आविष्कारी किसान धर्मवीर निवासी ग्राम दामला, यमुनानगर हरियाणा है। इसे सुदूर उत्तरपूर्व के किसान हाथों पे ठाये फिर रहे हैं क्योंकि इसने सिस्टम को गालियां बकने की बाजए एक राह दिखाई है के अपने खेतों पर बल्क प्रोडक्शन के स्थान पर थोड़ा थोड़ा बहुत कुछ उगा कर उसे प्रोसेस करके शीशियों में बेचा जा सकता है। किसी जमाने मे फतेहपुरी नई दिल्ली में रिक्शा चला कर परिवार का गुजारा करते थे। उस जमाने मे भी मंसूबे इतने ऊंचे थे के सिर्फ अपने मन की संतुष्टि के लिए नई दिल्ली से बम्बई तक का बिजनेस क्लास का हवाई टिकेट खरीदा जिसका पैसा रिक्शा चला कर जमा किया गया था और वहां हवाई जहाज में बड़े उद्योगपतियों और फ़िल्म स्टार के बीच मे बैठ कर कैसा लगता है उसका फील लिया जाए। दो तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके धर्मवीर आज एक किसान सेलेब्रिटी हैं । इनका आविष्कार मल्टी पर्पज फ़ूड प्रोसेसिंग मशीन है जो छोटे किसान को उद्यमी बनाने में सक्षम है। इनकी बनाई मशीने सुदूर अफ्रीका के देशों में किसान इस्तेमाल कर रहे हैं। इनकी कामयाबी में हनी बी नेटवर्क, सृस्टि संस्था अहमदाबाद और राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान अहमदाबाद का बड़ा सहयोग और योगदान है। किसान समाज देश का पेट भरने का काम करता है आज के आधुनिक समाज मे उसका जीडीपी में योगदान बेशक 20% बताया जाता हो लेकिन देश की भूख मिटाने और सुख चैन स्थापित करने में उसका योगदान 100% है।
किसान समाज यदि अपने दिमाग को घिसाये तो दुनिया ऐसे ही हाथों पे ठाये फिरेगी जैसे किसान धमरवीर जी को ठाये फिर रहे हैं उत्तरपूर्व भारत के लोग।
जैविक खेती को बनाया आधार
आज धर्मवीर पूरी तरह से जैविक खेती करते हैं, लेकिन वो अपनी फसल को मंडी में नहीं बेचते हैं जितनी भी फसल होती है, उसकी प्रोसेसिंग करके अच्छी पैकिंग करके बाजार में बेचते हैं। इसके लिए उन्होंने इसके लिए एक मल्टीपरपज प्रोसेसिंग मशीन बनायी है, जिसमें कई तरह के उत्पादों की प्रोसेसिंग हो जाती हो। वो बताते हैं, "इस मशीन से एक घंटे में दो कुंतल एलोवेरा का जूस बनाते हैं और जो छिलका बचता है उससे भी हैंड वॉश, एलोवेरा जेल जैसे उत्पाद बनाते हैं, इसी के साथ ही इसी मशीन से आंवला, अमरूद, स्ट्राबेरी जैसे कई फलों के साथ ही गाजर, अदरक, लहसुन की भी प्रोसेसिंग हो जाती है।
डेढ़ लाख रुपए की इस मशीन का बाद में पेटेंट भी कराया गया। इस मशीन से सब्जियों का छिल्का उतारने, कटाई करने, उबालने और जूस बनाने तक का काम किया जाता है। वर्ष 2010 में नेशनल फॉर्म साइंटिस्ट पुरस्कार से पुरस्कृत कंबोज ने बताया कि वे तुलसी का तेल, सोयाबीन का दूध, हल्दी का अर्क तो तैयार करते ही हैं गुलाब जल, जीरे का तेल, पपीते और जामुन का जैम आदि भी तैयार करते हैं। वे अमरूद का जूस निकालने के अलावा इसकी आइसक्रीम और अमरूद की टॉफी भी बनाते हैं।
राष्ट्रीय पुरस्कार से भी हैं सम्मानित
वर्ष 2013 में खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कंबोज ने बताया कि उनकी मशीन सिंगल फेज बिजली से चलती है और इसमें मोटर की रफ्तार को नियंत्रित करने की भी व्यवस्था है ताकि जरूरत के अनुसार उसका उपयोग किया जा सके। वे अब तक 250 मशीनें बेच चुके हैं। इनमें से अफ्रीका को 20 और नेपाल को आठ मशीनें दी गई हैं। अधिकांश मशीनों को सेल्फ हेल्फ ग्रुप को बेचा गया है।
प्रोसेसिंग से किसान बढ़ा सकता है अपनी आमदनी
धर्मवीर बताते हैं, "किसानों को प्रोसेसिंग की जानकारी नहीं है, किसानों को यह सिखाया जाता है कि वो प्रोग्रसिव फार्मर बने लेकिन वो अपनी फसल मंडी में बेचता है, जिसका उसे कोई फायदा नहीं होता, दस वर्ष से अधिक हो गए मैं अपनी फसल को मंडी में नहीं बेचता हूं, मैं जो उगाता हूं मैं खुद उसका रेट तय करता हूं। अमरूद है एक तो किसान बाग को ही बेच देता है, अगर किसान एक किलो अमरूद बीस रुपए में बेचता है, अगर उसी अमरूद का किसान पल्प बनाकर उसमें चीनी मिलाकर कैंडी बनाकर बेचे तो चार सौ रुपए किलों में बिकेगा। ये काम किसान खुद ही कर सकता है।
इसी तरह एलोवेरा है किसान एक पौधे से एक बोतल जूस निकाल सकता है, जबकि वही एलोवेरा चार-पांच रुपए किलो में बिकता है वही जूस दो सौ रुपए बोतल बिकता है। तो आप खुद देखिए कितना फर्क है, इसी तरह सभी फल, सब्जी और औषधीय फसलों को किसान प्रोसेस करके बेचे तो बीस गुना ज्यादा फायदा होता है।
उन्होंने एक वेजीटेबल कटर मशीन भी बनाई है, जो एक घंटे में 250 किलो सब्जियों को काट सकती है। बिजली से चलने वाली इस मशीन की कीमत 6,000 रुपए रखी गई है। उन्होंने फलों, सब्जियों, इलायची और जड़ी-बूटियों को सुखाने वाली कम कीमत की एक मशीन भी बनाई है।
कंबोज ने बताया कि वे सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाओं को घरेलू स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण के लिए मुफ्त में प्रशिक्षण देते हैं और देश में अब तक 4,000 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है। उनके कारोबार से 35 महिलाएं भी जुड़ी हैं।
भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन में जलवा
दामला के प्रगतिशील किसान धर्मवीर की मशीन का जादू भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन में विभिन्न देशों के राष्ट्रपति व अधिकारियों के सिर चढ़कर बोला। उन्होंने न सिर्फ किसान धर्मवीर की मेहनत को सराहा बल्कि उनके द्वारा तैयार की गई मल्टीपर्पस मशीन को भी तुरंत खरीदने की हामी भर दी। इस सम्मेलन में हरियाणा प्रांत की ओर अपने कृषि उत्पादनों की प्रदर्शनी के माध्यम से सक्रिय भूमिका निभाकर वापस आए गांव दामला के किसान धर्मवीर ने बताया कि इस सम्मेलन में जिम्बाब्वे, सुडान, नाईजीरिया, मलावी, अंगोला, तजानिया, कीनिया, स्वाजिलैंड, युगांडा, मोजांबिक और जाम्बिया सहित 50 से अधिक अफ्रीकी देशों से आए राष्ट्र अध्यक्षों व उच्च अधिकारियों ने हरियाणा प्रांत में अपना निवेश करने की इच्छा प्रकट की है जिससे प्रदेश के किसानों को अत्याधिक आर्थिक लाभ होने की आशा है। किसान धर्मवीर ने बताया कि उसे नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से इस सम्मेलन में अपनी प्रदर्शनी लगाने के लिए कहा गया था। जिस पर अमल करते हुए उसने गाय के दूध व सफेद मूसली से बनाई बर्फी, मूसली के लड्डू, तुलसी के रसगुल्ले व जलेबी, तुलसी की चाय, तुलसी वाटर, शर्बत, जैम, आम व सफेद मूसली का जैम, गुलाब व सफे द मूसली का जैम, एलोविरा जूस, एलोविरा जैल, तुलसी के कैप्सूल व शैम्पू जैसे उत्पादनों की प्रदर्शनी लगाई। किसान धर्मवीर द्वारा तैयार किए इन हर्बल उत्पादनों का स्वाद चखकर इस शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए राष्ट्राध्यक्ष व उच्चाधिकारी अत्याधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने जहां इन उत्पादनों के निर्माण करने के तौर-तरीकों के बारे में जानकारी हासिल करते हुए किसान धर्मवीर के द्वारा बनाई गई ¨सगल फेस बिजली पर चलने वाली मल्टीपर्पस मशीन को भी अपने यहां खरीदने के लिए आदेश दिए। जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगावे ने अपने राजदूत को मौके पर ही आदेश दिए कि वह अपने यहां इस मशीन को गांव-गांव में स्थापित करवाएंगे।
साभार- तसवीर और कटेंट गांव कनेक्शन वेबसाइट से