किंडल पर कोई भी बुक प्रकाशित कर सकता है। आप चाहे तो यूँ ही किसी बच्चे से की-बोर्ड पर रगड़वा लें, और kdp.amazon.com पर जाकर डाल दें, छप जाएगा। उनके पास कोई संपादकीय बोर्ड नहीं है। इसमें अपने सामान की जिम्मेदारी लेखक की ही है। किंडल यह शुरूआती काम मुफ्त में करता है। हाँ! गर यह कचरा बिक गया, तो हिस्सेदारी लेता है। कुछ दोस्त-यार कचरा खरीद भी लेंगें, और ‘शून्य’ पूंजी लगाकर सौ-दो सौ रूपए के मालिक आप हो लेंगें। तो ‘कैसे छापें?’ का उत्तर यही है, कि फलां साइट पर जाएँ, वहाँ अपनी पांडुलिपि अपलोड करें, एक कवर चुन लें, और छाप लें। पांडुलिपि हिंदी में ‘यूनीकोड’ या एक जैसी फॉन्ट में हो, एलाइनमेंट वगैरा न हो, हर अध्याय नए पृष्ठ से शुरू हो, और ‘preview’ कर देख लें कि सब ठीक है या नहीं। चौबीस घंटे के अंदर आप विश्व के सभी अमेज़न पर होंगें। आप कभी भी कोई वर्तनी-दोष या चाहें तो पूरा कन्टेंट ही बदल सकते हैं।
अब प्रश्न यह है कि गर अच्छा लिखा तो बढ़िया प्रकाशक को क्यों न दें? और गर घटिया लिखा तो छापें ही क्यों? इसके बिंदुवार उत्तर देता हूँ-
1. 50 हजार शब्द से कम लिखा प्रकाशक अक्सर लेते नहीं। कथा-संग्रह भी अच्छे प्रकाशक ऐरू-गैरू का नहीं छापते। ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ नामचीन लोगों की ही आती हैं। गर आपके पास ऐसा माल है, और अच्छा लिखा है, तो कागज न बरबाद करें, डिज़िटल डाल दें। पतली किताब है, लोग पढ़ लेंगें।
2. आपकी लिखने की गति अगर बहुत ही ज्यादा है, कि हर महीने एक किताब रगड़ देते हैं, तो इतने किताब छपने से रहे। अच्छे प्रकाशक एक किताब पर छह महीने से कुछ वर्ष तक लगा सकते हैं। इतने में आपने बीस किताबें लिख दी, जो बीस वर्ष में छपेगी। आप रहेंगें भी या नहीं, पता नहीं। तो आंक लें कि आपने क्या लिखा जिसमें वक्त लगा, और अद्भुत् लिख गए। और क्या लिखा, जो पठनीय है, पर छपनीय नहीं। उस हिसाब से बांट लें।
3. कविता-संग्रह मेरा मानना है कि डिज़िटल ही हो। हालांकि कवियों को सम्मान की भी अपेक्षा होती है, जो प्रकाशक बेहतर दिलवाते हैं। पर बिक्री के हिसाब से फिलहाल मुझे यह प्रकाशन पर बोझ लगता है। जो कविता-प्रेमी हैं, वो डिज़िटल में भी एक-एक कविता का खूब लुत्फ लेंगें। पर मैं कवि नहीं, इसलिए यह कवि ही जानें।
4. लुगदी लेखन, क्राईम थ्रिलर, सीरीज़ लेखन, अश्लील लेखन के नए लेखकों के लिए किंडल गजब का अवसर हो सकता है। हर किसी को मेरठ के प्रकाशक नहीं मिलते, जो एकमुश्त बड़ी रकम देकर चलता करें। अब वो जमाना गया। इंटरनेट पर अंग्रेजी लुगदी खूब पढ़ी जाती है। आप पॉपुलर हुए, और गर धड़ाधड़ निकालें, तो खूब चलेगी।
5. रोचक कथेतर लेखन जैसे फिल्म, खेल, संगीत. इतिहास इत्यादि भी बढ़िया चल सकते हैं। बशर्तें कि आप ठीक-ठाक विशेषज्ञ हों।
पर किंडल से मिलेगा क्या?
किंडल या कोई भी ई-बुक प्रकाशक (जगरनॉट, नॉटनुल, पोथी इत्यादि) मोटी और पारदर्शी रॉयल्टी देते हैं। 35 से 70 प्रतिशत तक। आम प्रकाशक 10 प्रतिशत देते हैं। यानी उधर सात बिकी, इधर एक, बराबर। किंडल की एक और स्कीम है- ‘kdp select’ जिसमें जुड़ने के बाद आपकी किताब ‘kindle unlimited’ वालों को मुफ्त मिलेगी, पर आपको 70 प्रतिशत रॉयल्टी मिलती रहेगी। फर्ज करिए कि भारत में कई लोगों ने यह unlimited ले ली, और आपकी किताब बस यूँ ही मुफ्त के नाम पर रख ली। वो चाहें एक पन्ना पढ़ पटक दें, आपको पैसे मिल गए। यह पूरा पारदर्शी है। आप real time देख सकते हैं कि कितनी बिकी, कितने पन्ने आज पढ़े गए, और आपने कितने कमाए। इतना ही नहीं kdpselect का एक ग्लोबल फंड है, जिसकी रॉयल्टी भी अलग से मिलेगी।
क्या भारत के लिए उपयुक्त है?
इसका जवाब पता नहीं। पर जब पूरी दुनिया में चल ही रहा है तो भारत क्या मंगल ग्रह से है? अंग्रेजी पढ़ने वाला बड़ा वर्ग पिछले पांच वर्षों से भारत में भी किंडल पर किताब पढ़ रहे हैं। मैं स्वयं खूंखार किंडल पाठक हूँ। इतिहास से पॉर्न तक पढ़ता हूँ। हिंदी अब आनी शुरू हुई है, पांच वर्ष बाद असर दिखेगा ही।
यह कार्य कैसे बेहतर किया जाए?
लिखा अच्छा जाए। ‘प्रूफ़-रीड’ अच्छी कराई जाए। ऑनलाइन मार्केटिंग टूल का उपयोग किया जाए। काबिल ग्राफिक डिज़ाइनर की भी मदद ली जाए। और उनसे संपर्क करें, जो यह कार्य करते रहे हैं।
(पोस्ट के लेखक को किंडल का मामूली लेखक अनुभव है, पर पाठक रूप में आठ साल का अनुभव है। किंडल मार्गदर्शन के लिए वो ऐसे व्यक्ति के शुक्रगुजार हैं, जिनको वो मन ही मन गुरू मानते हैं।)
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