हरियाणा विधानसभा सदन में पूर्व सीएम हुड्डा का बयान सरकार के मंत्री बयान देते हैं. एक सीएम अंदर गया है दूसरा जल्दी जाएगा. खुद ही शिकायत कर्ता, खुद ही वकील और खुद ही जज बने हुए हैं. हुड्डा ने कहा करवा लो जांच तैयार हूं. बताओ किस जेल जाना है चलूंगा. सदन में वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु का हुड्डा को जवाब देते हुए कहा कि मामले कोर्ट में हैं. उनमें तारीखें लग रही हैं आप कोर्ट को सहयोग करो. फ़ैसले में पता लगेगा. आप कोर्ट को सहयोग करो फ़ैसले में पता लगेगा अंदर जा जाना है या बहार रहना है.
मनीष ग्रोवर तो पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा पर रोहतक को जलाने का आरोप लगाते रहे हैं और मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा था कि एक मुख्यमंत्री जेल में है और दूसरा भी जल्दी ही जाने वाला है। दरअसल भूपेंद्र हुड्डा की हर सप्ताह भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर तारीखें लग रही हैं. मानेसर जमीन घोटाले के अलावा पंचकूला प्लॉट घोटाला आदि मामले कोर्ट में चल रहे हैं।
भूपेंद्र हुड्डा पर चल रहे हैं केस
वाड्रा और डीएलएफ
गुरुग्राम भूमि घोटाले में करीब पांच हजार करोड़ रुपये की मुनाफाखोरी हुई है। राबर्ट वाड्रा व हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अलावा वाड्रा की कंपनी डीएलएफ व ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज पर दर्ज एफआइआर में इसी रकम का उल्लेख है। 3.50 एकड़ की भूमि का आवंटन भूपेंद्र सिंह हुड्डा के जरिए डीएलएफ व स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी को किया गया था। इससे दोनों कंपनियों को करीब पांच हजार करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया गया।
इन कंपनियों के जो लाइसेंस दिखाए गए, उनमें भी अनियमितता मिली है। एफआइआर में दर्ज है कि रॉबर्ट वाड्रा ने अपने रसूख व भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मिलीभगत कर धोखाधड़ी को अंजाम दिया। एफआइआर 420, 120बी, 467, 468 और 471 धारा के तहत दर्ज की गई। प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 की धारा 13 के तहत भी कार्रवाई की गई है।
मानेसर लैंड स्कैम
दिल्ली से सटे हरियाणा के शिकोहपुर जमीन घोटाले से पहले मानेसर जमीन घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के ऊपर आंच आ चुकी है। ग्रामीणों की शिकायत है कि हुड्डा सरकार के दौरान उन लोगों के साथ धोखा किया गया था। शासन-प्रशासन की मिलीभगत से बिल्डरों ने अधिग्रहण का भय दिखाकर 444 एकड़ जमीन खरीद ली थी। आइएमटी मानेसर के विस्तार के लिए प्रदेश सरकार ने 27 अगस्त 2004 को सेक्शन चार का नोटिस जारी किया था। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इनेलो की सरकार थी। कुछ महीने बाद ही प्रदेश में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन गई थी। शिकायत है कि इसके बाद किसान कई बार तत्कालीन मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मिले।
उन्होंने हर बार आश्वासन दिया कि जमीन छोड़ दी जाएगी, लेकिन 25 अगस्त 2005 को सेक्शन 6 का नोटिस जारी कर दिया गया। नोटिस जारी होते हुए इलाके में किसानों के पास बिल्डरों के एजेंट आने शुरू हो गए थे। वे कहने लगे कि यदि सरकार आपकी जमीन लेती है, तो आपको बहुत कम पैसे मिलेंगे। आप उनसे यदि सौदा करते हैं तो अच्छी राशि मिलेगी। किसानों ने देखा कि सरकार उनकी जमीन हर हाल में लेगी ही। इस डर से उन्होंने बिल्डरों को जमीन बेच दी। कुछ किसानों ने जमीन नहीं बेची तो तत्कालीन सरकार ने 2 अगस्त 2007 को सेक्शन 9 के नोटिस जारी किये। इस नोटिस के बाद मान लिया जाता है कि जमीन सरकार की हो गई। शिकायत है कि सेक्शन 9 के नोटिस के बाद भी काफी जमीन बिल्डरों ने खरीदी।
इस तरह जमीन अधिग्रहण का डर दिखाकर मानेसर, नखड़ौला एवं नौरंगपुर की 444 एकड़ जमीन बिल्डरों ने खरीद ली। 24 अगस्त 2007 को मुआवजा राशि की घोषणा करने की बजाय जमीन को अधिग्रहण से मुक्त कर दिया गया। इस तरह बिल्डरों ने 444 एकड़ जमीन अधिग्रहण का भय दिखाकर खरीद ली।
वहीं, ओमप्रकाश यादव (पूर्व सरपंच, मानेसर) का कहना है कि बिना सरकार की मिलीभगत के सेक्शन 9 का नोटिस जारी होने के बाद कोई जमीन नहीं खरीद सकता। सेक्शन 9 का नोटिस जारी होने का मतलब है कि जमीन सरकार की हो गई। इसके बाद भी बिल्डरों ने जमीन खरीदी। साफ है कि सरकार व बिल्डरों की मिलीभगत थी। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से भी साफ हो गया कि तत्कालीन सरकार व बिल्डरों की मिलीभगत थी। यहां पर बता दें कि शिकोहपुर जमीन घोटाले को लेकर कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा एवं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीधे-सीधे गुरुग्राम पुलिस के चंगुल में फंस गए हैं। दोनों को इस मामले में नामजद किया गया है। नामजद शिकायत की वजह से अब मामले में सीधे-सीधे दोनों से पूछताछ संभव है।
गौरतलब है कि शनिवार को नूंह जिले के राठीवास गांव निवासी सुरेंद्र शर्मा ने राबर्ट वाड्रा एवं भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अलावा रियल एस्टेट सेक्टर की कंपनी डीएलएफ एवं ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ खेड़कीदौला थाने में एफआइआर दर्ज कर कराई है। दो साल पहले एक जमीन घोटाले में प्रदेश सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए मानेसर के पूर्व सरपंच ओमप्रकाश यादव ने मानेसर थाने में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन शिकायत नामजद नहीं थी। चूंकि यह मामला हुड्डा से जुड़ा है, सो जांच सहायक पुलिस आयुक्त स्तर पर होगी।
पंचकूला प्लॉट आवंटन घोटाला
पंचकूला में प्लॉट आवंटन घोटाले में सीबीआई ने सोमवार को पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा व यूपीएससी के सदस्य चतर सिंह से पूछताछ की। हुड्डा से इस मामले में 29 दिन में दूसरी बार पूछताछ की गई है। 8 मई को भी सीबीआई ने उनसे पूछताछ की थी। हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (हुडा) द्वारा 2012 में 14 लोगों को प्लाॅट अलॉट किए गए थे। हुड्डा उस समय हुडा चेयनमैन भी थे। आरोप है कि ये प्लॉट अपात्र व करीबियों को बाजार से कम रेट पर आवंटित किए गए थे।
हुड्डा सरकार के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2011 में पंचकूला में औद्योगिक प्लाट आवंटित करने के लिए आवेदन मांगे थे। यह प्लाट 496 स्केयर मीटर से लेकर 1280 स्केयर मीटर तक के थे। जिसकी एवज में हुडा के पास 582 आवेदन आए थे। जिनमें से अलाटमेंट के लिए 14 का चयन किया गया था। इस आवंटन में जमकर भाई भतीजावाद हुआ था। सरकार ने सत्ता में आते ही इस मामले की जांच विजिलेंस ब्यूरो के हवाले की थी। विजिलेंस ने प्रारंभिक जांच में इस आवंटन में ढेरों अनियमितताएं पाई थी।
विजिलेंस ब्यूरो को प्लाट आवंटन घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री एवं हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के चेयरमैन भूपेंद्र सिंह हुड्डा, तत्कालीन हुडा प्रशासक आई.ए.एस. अधिकारी डी.पी.एस. नागल, हुडा के मुख्य वित्त अधिकारी एस.सी. कांसल तथा हुडा अधिकारी बी.बी. तनेजा के खिलाफ मामला दर्ज करने के आदेश जारी किए जाने की सिफारिश की। दिनभर चले घटनाक्रम में विजिलेंस ब्यूरो ने पूर्व सीएम व अन्य अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। उधर सरकार द्वारा भी सीबीआई को इस मामले की जांच के लिए पत्र भेज दिया गया है।
विजिलेंस ब्यूरो द्वारा प्लाट आवंटन घोटाले को लेकर सरकार को सौंपी गई प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व सरकार ने प्लाट आवंटन में सारी कार्रवाई नियमानुसार किए जाने का दावा किया है। सरकार ने अपने चहेतों को लाभ देने के उद्देश्य से आवेदन की तिथि समाप्त होने से एक दिन पहले नियमों में फेरबदल कर दिया गया। बदले हुए नियमों के बारे में सभी आवेदकों को पता नहीं चल सका। नए नियमों के बारे में केवल उन्हीं लोगों को पता चला जिन्हें यह प्लाट आवंटित किए जाने थे। तत्कालीन सरकार की मदद से केवल वही लोग आवेदन कर पाए जिन्हें यह प्लाट दिए जाने थे
पंचकूला में औद्योगिक प्लाट आवंटन का यह पूरा मामला आपस में उलझा हुआ है। यह मामला विजिलेंस और सीबीआई के बीच उलझा हुआ है। सरकार ने सत्ता में आने के बाद मामले की जांच विजिलेंस ब्यूरो को सौंपी। विजिलेंस ब्यूरो ने रिपोर्ट में भारी अनियमितताओं का उल्लेख किया। जिसके आधार पर मामला सीबीआई को रैफर कर दिया गया। अब विजिलेंस ने अधिकारिक रूप से एफआईआर दर्ज कर ली है। जिसे मदद के लिए सीबीआई को सौंप दिया जाएगा। अगर जरूरत पड़ी तो सीबीआई अलग से भी मामला दर्ज कर सकती है।