फागण का मस्त महीना
जै हाम नहीं लिखांगे तो म्हारे बाळक कदे नहीं जाण पावैंगे के पाछले जमाने म्हं होळी पै नाचण गावण का बी रिवाज था। जिब इतणा टी वी ,मोबाइल ,फेसबुक,वाट्स एप्प का रिवाज ना था। लोग असली जीवन जिया करदे। आपणा मनोरंजन करण खातर नकली फूल, नकली होली गुलाल,फालतू की शायरी नहीं करया करदे। हैप्पी होली साची मैं ए हैप्पी होळी होया करदी। महीने पहले चाव चढ जाया करदे। माह आर फागण की चाँदणी रातां म्हं आजकाल की ढाळ रात नहीं होया करदी। अगड़-पड़ोस की सारी लुगाई साँझे तावळी काम करकैं, दामण के ढूंगे पै बाजणे नाड़े लटका कैं आर बळदां की चौरासी नोहरे की खूंटी तै तार गली म्हं जा लिया करदी। फेर गीत गावण की शुरुआत करया करदी। गळी गळी म्हं यो गीत गूंजया करदा....
होळी होळी तेरा लाम्बा टीका
लाम्बे डस की डोरी
डोर बटावै मेरा सीबू बीरा
जिसकी बहूअड़ गौरी
गौरी सै तो दही जमा ल्यो
मंगळ रही सै होळी
हाँ, इसे ए मीठे गीतां की आवाज आया करदी, कुछ साल पहले होळी यानी फागण के दिनां म्हं। सरसम खेतां म्हं जवान होया करदी, गेहूँआं, चणा पै फूल फल आ जाया करदा। इन दिनां म्हं खेत क्यार का किमे घणा सा काम तो होया नहीं करदा, बडी बडेरी आर जवान बहू बेटी माह फागण की चाँदणी राताँ म्हं गाया करदी .....
चाँद की चाँदणी रात
तारा बड़ा चढ्या
मेरी मायड़ देवै गाळ
बाबू छोह आ रह्या
मायड़ मत ना देवै गाळ
छोरी दो दिन की
ये दिन घाली उड़ जांय
चिड़ि मंडेरे की
सारी अगड़ पड़ोसण चाची ताई खूब घाल घाल्या करदी। दो पाळे बणा कैं गली म्हं छड़दम तार दिया करदी। नाचदी,गांदी आर खेल खेलदी। आधी रात लग घूंघरूआं की छम छम, सुरीले गीतां की बात ए न्यारी होया करदी। फागण के गीतां पै दुल्हंडी तक धरती तोड़ण न हो जाया करदी। सारा दिन बिचारी काम करदी, पर फागण का जोश ए न्यारा होया करदा। मार मार एड्डी खडे करण न हो जाया करदी।
फागण के नाचण के गीतां म्हं बूढ़ी लुगाईयां पै मस्ती छा जाया करदी। जिब्बे तो यो गीत बणा ......
काच्ची ईमली गदरायी सामण म्हं
बूढ़ी ए लुगायी मस्तायी फागण म्हं
कहिये री उस सुसरे मेरे न
बिन घांली ले आया फागण म्हं
के बूढ़े, के जवान आर के बाळक सब जोश म्हं भर जाया करदे। कोये भाभी राह चालदे देवर जेठ पै पाणी गेर देंदी तो कोये देवर भाभी पै न्यू कह पाणी गेर भाज जांदा के" भाभी फागण आ लिया सै,तैयार रहिये फाग न।" भाभी हाँस कै टाळ जांदी। ना कोये चिढ ना कोये उलहाणा।
इस फागण के मस्त महीने म्हं फौजण बी आपणे दिल का हाल सुणाया करदी। उनका दुःख म्हारे लोकगीतां म्हं न्यारा ए रंग चढाया करदा.......
मस्त महीना फागण का हे मेरा जा रह्या पिया फौज के म्हं
मनै शर्म सी आवै सै ए पड़ रह्या फर्क मौज के म्हं
काग मंडेरै आ बैठै ए जब खाणा पीणा छुटज्या सै
हे चीज टेम पर पावै ना ए माणस का धर्म उठ ज्या सै
कां कां करता चाल्या जा जब हिम्मत मेरी छूटज्या सै
हे आवैं हुचकी अंगडाई ए जोबन की झाल उठ ज्या सै
जब आवण का जिक्र सुणा ए मैं घर म्हं खुशी मनाण लगी
हे कंघा शीशा सुरखी रै पोडर अपणी अदा बढाण लगी
बिना लडाई किसा छिडै मुकदमा ए लाम्बा केस रह्यीं जा सै
हे बेरा न ए कद छुट्टी आवै रोज अंदेश रह्यीं जा सै
होळी की तैयारियाँ म्हं नाचणा गाणा तो होया ए करदा, साथ म्हं गोबर के ढाल बड़कुल्लयां की होड़ होया करदी। किसकी माळा बड्डी सै, किसकी होळी पै सबकैं ऊँची जावैगी? गोबर की फूल बणा बणा ढाल, होळी, बाजणा नारियल, कुकड़ी,चाँद सूरज, जूती खूब बणाया करदे। होळी पूजण जांदे जिब नए कपड़े पहरते, बिस्कुट, बेर, नारियल, टॉफी की बाळक माळा बी पहरया करदे। जितणा सीधा सादा जीवन था,उतणे ए चोंचले बी कम थे। थाळी म्हं हल्दी,गुड़ आर थोड़े से चावल शक्कर, अधपकी फसल की गेहूँ चणा की डाळी आर एर लोटा पाणी थाली म्हं सजा कैं सारी पडोसण परिवार की बहू आर टाबर गोबर की बणी माळा ठाकैं गीत गांदे होळी धोकण जाया करदे। गाम की एक साझी होळी होया करदी। सब कट्ठे होळी धोक्या करदे।
ना कोये पटाखे बजाया करदा, ना कोये राकेट छोड्या करदा, बस साँझ सी न्यू रह्या करदा कदे म्हारा कोये बिटोड़ा आर बाड़ पाड़ ले जावै न आर होळी की भेंट चढ़ा दे। घर के छोरे होळी मंगलाण की तैयारी करदे आर बड़ी बडेरी चावल दाळ बणाया करदी। उन दिनां दाल चावळ बणना कोये छोटी बात नहीं थी। मुश्किल तै घर मैं चावळ शक्कर बणया करदे। साँझ होंदे सारा गाम जेळी म्हं गोळे टांग होळी मंगलाण पहुँच जांदा। होली की धोक मार कैं होळी न अग्नि देंदे। फेर बारी आंदी प्रहलाद लिकाड़न की। जळदी आग म्हं कूदण खातर बी भोत बड़ा दिल चाहिए था। एक गाबरू गीला गुदड़ा ओढ होळी म्हं बड़दा आर प्रहलाद न बचा कैं लांदा। फेर जो किलकी पाटदी, वे पटाखे फूटण तै सौ गुणा मजा दिया करदी। फेर सब आपणे आपणे नारियल होळी झळां म्हं तै काढ कैं आपणे परिवार कै साथ प्रसाद की ढाळ बांड कै खाया करदे।
फेर बाळकां की तो रात मुश्किल तै लिकड़या करदी। सबेरे ऊठदे ए तैयारी करण लाग जांदे। कोये गुब्बारे भरदा, कोये आलू काट कैं उल्टा गधा लिखदा, आर आपस म्हं आपणे ए यारां की बुरसट पै काळे तेल म्हं डूबो डूबो "गधा" की मोहर लगांदे। सबेरे पहले बाळक पिछाण म्हं आण तै रह जाया करदे। ज्यूं ज्यूं दिन जवान होंदा बस रंग सा चढ़ जाया करदा। कोलड़े, गोबर, रेत, कीचड़, काळा तेल, तोवे की काळस गेल होळी खेली जाया करदी, उसमैं आणिये -जाणिये, जान पिछाण या अनजाणा कोए नहीं बखस्या जाया करदा। लुगाई मार मार ढाठे, कती सूड़ ठा दिया करदी। आर कोलड़े बी बिलोणी के नेत्यां के बणाया करदी। जै एक लाग ज्या तो हफ्ते लग निशान नहीं जा। चार-पाँच भाभी आर खेलण आळां का ओड़ नहीं। पूरी गाळ रंगा म्हं गारा म्हं डूब जाया करदी। भाभी के हाथ म्हं कोलड़ा आर छोरां के हाथ म्हं बालटी, कोलड़े ओटण खातर एक लट्ठ। वे पाणी की मार मारते तो लुगाई कूण म्हं जा लाग्या करदी। पर खेलण तै पाछै नहीं हटया करदी। आणिये जाणियां न साइकिल पै तै तार लिया करदी। किसे की घास की गठड़ी खोस लेंदी।फेर बी कोये बुरा नहीं मान्या करदा। तीन चार बजे तक चुगरदे न किलकी पाट्या करदी" रै वा आगी फळाणी,कोलड़ा ले कैं।"
साँझ न देवर भाभी खातर लाड्डू लाया करदे। भाभी खूब राजी हो जाया करदी। सीळी सातम लग भाभी देवर राह चालदे पाणी गेर दिया करते। ईब तो गेट भीतर घर घर की होळी रह रह्यी सै। ना देवर आंदे, ना भाभी लाडूआं की बाट देखदी। फागण गूंगा होग्या, आर रिश्ते नाते अपाहिज होग्ये।