कलायत इलाका रामायण, महाभारत और आदिकाल के अन्य युगों से जुड़े गौरवशाली इतिहास का गवाह है. फलस्वरूप यह धरा आज भी अनगिनत विश्वविख्यात सांस्कृतिक धरोहरों की मुँह बोलती तस्वीर पेश कर रही है. स्वर्णिम अतीत के कारण इस धरा की तुलना हर की पौड़ी हरिद्वार, गढ़ गंगा और काशी से की जाती है. इसी श्रृंखला में श्री कपिल मुनि धाम परिसर में स्थित 7-8 वीं शताब्दी में निर्मित पंचरथ शैली से निर्मित दो प्राचीन शिवालयों को उत्तरी भारत के अजूबे का गौरव प्राप्त है. ये दोनों मंदिर प्रारंभिक शैली के गुर्जर प्रतिहार कला का उत्तम उदाहरण है. रोजर (1878-79) में भी इन धरोहरों का उल्लेख किया है. इसका चकोर गर्भ गृह अंतराल व मंडप से युक्त इसके शिखर पर छत्ताकार लघु चैत्य द्वार के प्रतीक हैं. जो कि मेहराबी अलंकरण द्वार सुसज्जित हैं. समान दूरी में कोनों पर बनी अमलकाए, मध्य में छतरी से आभूषित हैं. मंदिर निर्माण में बिना गारा के सुंदर रूप से तराशी गई ईंटो का प्रयोग किया गया है. इस प्रकार के पहलुओं को देखते हुए कई वर्ष पूर्व भारतीय पुरातत्व विभाग ने चिमन बाबा स्थली के साथ लगते शिव मंदिर को तो अधिकृत किया था. जन भावना को ध्यान में रखते हुए सरकार ने चिमन बाबा समाधि के पास सरकार ने चिमन बाबा समाधि के पास स्थित शिव मंदिर जीर्णोद्धार के समय इस धरोहर के प्रत्येक कोण से चित्र लेकर मरम्मत कार्य शुरू किया गया था. खुदाई के दौरान करीब 7 फीट गहराई में शिव मंदिर के मूल पीढ़े को खोजा गया. इसके उपरांत पीढ़े के ऊपर के सारों को पूरी तरह साफ करके जस्ता धातु की चादरों व विशेष प्रकार के तैयार अवलेह के प्रयोग से इसे स्थिर और सेम-रोधी बनाया गया. पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी मंदिर के आधार के ऊपर का अधिकांश हिस्सा भरभरा चुका है. महाभारत युद्ध से पहले अर्जुन को गीता उपदेश देते हुए श्री कृष्ण ने मुनियों में स्वंय को कपिल मुनि बताया था. सांख्य दर्शन प्रवर्तक भगवान कपिल मुनि ने यहाँ से गुजर रही सरस्वती नदी के तट पर अपनी माता देवहुति को सांख्य दर्शन का ज्ञान करवाया था. आज भी सरोवर में विभिन्न स्थानों पर सरस्वती की धारा समय-समय पर फूटती रहती है. विलुप्त हुई सरस्वती नदी के सरोवर में प्रवाह से सरस्वती अनुसंधान केंद्र के साथ-साथ अन्य वैज्ञानिकों ने सरोवरों की डगर पकड़ी थी. इस दौरान बह रही धारा को वैज्ञानिकों ने संघन जांच के बाद सरस्वती का पानी करार दिया था.
किंवदंती है कि राजा शालिवाहन का शरीर एक श्राप के कारण रात्रि को निर्जीव हो जाता था. एक दिन आखेट करते-करते समय राजा का तीर सरोवर में जा गिरा. इसे निकालते हुए उनके हाथ सरोवर की गारा से सन गए. जब वे रात्रि को विश्राम कर रहे थे तो रानी ने उनके हाथों की उंगलियों में हरकत देखी. सुबह रानी ने जब इस विषय को लेकर राजा से चर्चा की तो उन्होंने गत दिवस का वृतांत बताया. उपरांत राजा ने जब सरोवर में स्नान किया तो वे पूर्णतः स्वस्थ हो गए. इससे प्रसन्न होकर राजा ने श्री कपिल मुनि तट पर शिवालयों का निर्माण करवाया था. श्री कपिल मुनि धाम परिसर में पंचरथ शैली से निर्मित शिवालयों के अलावा दुर्लभ मंदिर है. इनमें चिमन बाबा, माँ कात्यायनी, संकट मोचक वीर बजरंग बली, श्रीराम दरबार व अन्य धरोहर शामिल है.
कैथल जिले की वह विधानसभा सीट, जिसने कभी किसी नेता को दोबारा विधायक नहीं बनाया- वह है कलायत. यहां हुए 13 चुनाव में से 13 अलग-अलग लोग विधायक बने हैं. सिर्फ 1982 व 1987 को छोड़कर हर चुनाव में जीतने वाले उम्मीदवार की पार्टी भी पिछले विधायक की पार्टी से अलग रही है. नेताओं को बदलने का चलन यहां इस कदर रहा है कि 13 चुनाव में से एक बार को छोड़कर दूसरे नंबर पर आने वाला उम्मीदवार भी हमेशा बदलता रहा है. वक्त-वक्त पर कांग्रेस, लोकदल, हविपा, इनेलो आदि के विधायक कलायत से बनते रहे हैं. हलके के इतिहास में पहली बार निर्दलीय विधायक भी 2014 में बन गया. यहाँ से बने विधायक आम तौर पर सरकार में बड़े पदों पर नहीं रहे. हरियाणा के गठन के बाद से ही कलायत सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व रही थी. लेकिन 2009 में यह सीट सामान्य वर्ग के लिए भी खोल दी गई. इसके बावजूद इनेलो के रामपाल माजरा और निर्दलीय विधायक बने हैं. 2014 में इनेलो ने रामपाल माजरा को ही टिकट दी थी . वे 2009 में अच्छे वोट लेकर जीते थे और लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का यहां से 18 हजार वोटों की बढ़त पाना अहम है. रामपाल माजरा नीतिगत और प्रशासनिक कानूनी मामलों की अच्छी समझ रखने वाले नेता है. 2000 में बनी चौटाला सरकार में मुख्य संसदीय सचिव भी रहे हैं. रामपाल माजरा 1996 और 2000 में विधानसभा सीट से विधायक बने. जबकि 2005 में वे उसी सीट पर तेजिंदरपाल मान से हार गए थे. यह हलका इनेलो का गढ़ है. लेकिन भाजपा की लहर और जयप्रकाश के निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में आने से वोट कई जगह बंट गए और रामपाल माजरा अपनी सीट नहीं बचा पाए. 2009 में मिले 43.18% वोटों के मुकाबले रामपाल माजरा को 2014 में 27.95% वोट मिल पाए.
कांग्रेस पार्टी का चुनाव यहां से 2009 में तेजिंदरपाल मान ने लड़ा था. जिनका कुछ साल बाद स्वर्गवास हो गया. यह परिवार आजादी से पहले भी राजनीति में सक्रिय था और इसके सदस्य कई बार पंजाब विधानसभा के सदस्य भी रहे हैं. 2014 में टिकट के दावेदार के रूप में तेजेंद्र पाल के बेटे रणवीर मान सक्रिय हो चुके थे. हुड्डा सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री के सहयोग से रणवीर मान टिकट लेने में कामयाब भी हो गए. लेकिन कांग्रेस पार्टी के खिलाफ इस क्षेत्र में विपरीत माहौल के चलते हुए मजबूती से टक्कर नहीं दे पाए. रणबीर मान चौथे नंबर पर आए और 2009 में उनके पिता को मिले 35.88% वोटों के मुकाबले 15.3% वोट ही ले पाए. कांग्रेस यहां इतनी कमजोर कभी नहीं रही थी और 13 में से 11 चुनाव में तो यहां जीती थी या दूसरे स्थान पर रही थी. चौथे नंबर पर खिसक जाना और सिर्फ 15% वोट लेकर आना कांग्रेस की रणनीति और उम्मीदवार पर सवाल खड़े कर गया. तेजेन्द्र मान के पिता सुरजीत मान ने इसी क्षेत्र में विधानसभा सीट पर हुए तीनों चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़े थे. सुरजीत मान 1967 का चुनाव हार गए. जबकि 1968 और 1972 से विधायक बने. वहीं तेजेंद्र पाल 1991 और 2005 में पाई सीट से विधायक रहे.

कलायत में कांग्रेस की टिकट के रणवीर मान से भी बड़े दावेदार थे. पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश जिनका पैतृक गांव इसी हल्के का हिस्सा है. जयप्रकाश तीन बार (1989 जनता दल, 1996 हविपा, 2004 कांग्रेस) हिसार से सांसद और एक बार 2000 में बरवाला से विधायक रह चुके हैं. 1990 में चंद्रशेखर सरकार में भी पेट्रोलियम और गैस विभाग के केंद्रीय राज्य मंत्री भी रहे. जयप्रकाश 1988 में चौधरी देवीलाल की ग्रीन बिग्रेड के प्रमुख के रूप में भी चर्चा में आए थे और तब वे उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद सीट पर वीपी सिंह के चुनाव में मदद करने गए थे. जिसमें वीपी सिंह की जीत हुई थी. इसी के इनाम के रूप में उन्हें बाद में केंद्र में मंत्री बनाया गया था. जयप्रकाश ने 2009 का विधानसभा चुनाव आदमपुर सीट से लड़ा था. जहां वे कुलदीप बिश्नोई से लगभग 6000 वोटों से हारे. यह भजन लाल परिवार की आदमपुर सीट पर सबसे छोटी जीत थी और भजन लाल की सबसे बड़ी राजनीतिक जीत. क्योंकि उन्होंने आदमपुर का चुनाव कड़ा कर भजन लाल परिवार को पूरे हरियाणा में खुलकर घूमने से रोक दिया था. इस वजह से बहुत जगह हजका उम्मीदवारों का प्रचार ढंग से नहीं हो पाया. वरना कांग्रेस को भारी नुकसान हो जाता. इस दौरान हिसार सीट से 2009 लोकसभा चुनाव और 2011 के चुनाव में जयप्रकाश की कांग्रेस की टिकट पर करारी हार भी हुई और 2011 में तो जमानत तक जप्त हो गई. क्योंकि वहां मुकाबला मुख्य रूप से इनेलो और हजका के बीच ही हो गया था.
2014 में जयप्रकाश अपने गृह क्षेत्र कलायत से कांग्रेस की टिकट चाहते थे. क्योंकि उन्हें अपने राजनीतिक जीवन को नई जान देनी थी. टिकट बंटवारे के आखिरी दिनों में जब यह साफ हो गया कि कांग्रेस अपना उम्मीदवार रणवीर मान को बनाने जा रही है. तो जयप्रकाश ने घोषणा से पहले ही अपने कार्यकर्ताओं को इकट्ठा कर चुनाव आजाद उम्मीदवार के रूप में लड़ने के संकेत दे दिए थे. क्षेत्र के जानकार कहते हैं कि टिकट न मिलने से जयप्रकाश के लिए अच्छा रहा क्योंकि टिकट कटने से उन्हें लोगों की सहानुभूति मिली और कांग्रेस से नाराजगी का भी वोट सारा इनेलो या भाजपा को जाने की बजाय बंट गया. जेपी कांग्रेस की टिकट पर लड़ते तो शायद ही जीत पाते. निर्दलीय लड़ते हुए जयप्रकाश दूसरी बार विधानसभा पहुंचे. लोगों से जुड़ने का अंदाज कहता है कि नामांकन के फॉर्म में उन्होंने अपना नाम 'भाई जयप्रकाश' लिखा और वही यही नाम इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में भी आया. यही नहीं अधिकारिक परिणाम में भी उनका नाम यूं का यूं ही लिखा गया. मनोविज्ञान का इतना इस्तेमाल तो ज्ञाता और पढ़े-लिखे समाजशास्त्री भी नहीं करते.
भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर धर्मपाल शर्मा को उतारा था. जो इस हलके के रहने वाले नहीं थे. धर्मपाल शर्मा का गांव कोयल जींद जिले में पड़ता है और नरवाना विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है. वह काफी समय से कैथल में रहते हैं. कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए चौधरी बिरेंदर सिंह के नजदीकी धर्मपाल शर्मा को पूरी उम्मीद मोदी लहर और बीरेंद्र सिंह के समर्थकों से ही थी. कलायत से बहुत से राजनीतिक लोग उन्हें पहचानते नहीं थे और नाम भी कम ही लोगों ने सुना था. भाजपा ने इस हलके में कभी अपनी उपस्थिति मजबूत तरीके से दर्ज नहीं करवाई थी. लेकिन धर्मपाल शर्मा को 17.3% वोट मिले, जो कांग्रेस से भी ज्यादा थे. भाजपा को यहां 2009 में 1.5% और 2005 में 2.80% वोट मिल पाए थे. भाजपा किसी स्थानीय नेता को टिकट देती तो मुकाबले में आ सकती थी.
कलायत ने किसी को दोबारा विधायक ना बनने का अपना रिकॉर्ड कायम रखा और जयप्रकाश को राजनीतिक जीवन दान दिया. रामपाल माजरा की यहां हार इनेलो के लिए चिंता का विषय रही क्योंकि यह लोकदल के सबसे मजबूत क्षेत्रों में से एक है. कांग्रेस उम्मीदवार को पहली बार चौथे नंबर पर धकेल कर लोगों ने पार्टी और उम्मीदवार के प्रति 2014 का अपना नजरिया साफ कर दिया.