भोले-भाले, मेहनतकश, लेकिन राजनीतिक तौर से दूरदर्शी लोगों की धरती जींद। करीब ढाई-तीन महीने बाद लोकसभा चुनाव और करीब 6-7 महीने बाद विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सजी है चुनावी बिसात। इनेलो विधायक डॉ़ हरिचंद मिड्ढा के निधन के बाद खाली सीट पर हो रहा है उपचुनाव। हैवीवेट उम्मीदवारों ने इसे बना दिया है दिलचस्प। लेकिन, जींद की इस चुनावी प्रयोगशाला में कौन 'कुंदन' बनकर बाहर निकलेगा, यह मतगणना के बाद तय होगा, लेकिन इतना जरूर है कि जींद के मतदाता प्रदेश की अगली राजनीतिक दिशा का निर्धारण इस चुनाव के जरिए करेंगे।
देखा जाए तो जींद का उपचुनाव किसी प्रयोगशाला से कम साबित होने वाला नहीं है। प्रदेश में इसी साल होने वाले अगले दोनों चुनाव मुद्दों पर लड़े जाएंगे या फिर जाति पर, यह इसी उपचुनाव से तय होगा। भाग्य से, सौभाग्य से या फिर दुर्भाग्य से, जिस किसी भी तरीके से टिकटों का बंटवारा हुआ है, चुनाव के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि विचार, विकास और सही मायनों में जो मुद्दे हैं, जनता इन पर जाएगी या फिर जाति पर लौटेगी। यह चुनाव सभी पार्टियों के लिए लिटमस टेस्ट है।
प्रदेश में एक जाति के खिलाफ जहर उगलते हुए राजकुमार सैनी ने लोकतंत्र सुरक्षा मंच बनाकर पहली बार उम्मीदवार के तौर पर विनोद आश्री को उतारा है। जींद का चुनाव बताएगा कि लोगों को जहर उगलने वाला राजकुमार स्वीकार है या नहीं।
बीजेपी के लिए यह प्रतिष्ठा वाला चुनाव है। स्थानीय निकाय चुनावों में आम तौर पर सत्तारूढ़ के उम्मीदवार जीतते हैं और पांचों मेयर की विजय से यह साबित भी हो चुका है। लेकिन, अब असली परीक्षा जींद का उपचुनाव है। जाट, नॉन जाट की राजनीति करने वाली बीजेपी ने दिवंगत विधायक के बेटे कृष्ण मिड्ढा को मैदान में उतारा है। मिड्ढा दो बार पंजाबी व जाट वोटों के साथ आने से विधायक बने। लेकिन, अब बीजेपी उम्मीदवार की हार-जीत से तय होगा कि बीजेपी जाटों की वोट लेने में सफल होती है या फिर नहीं। और, इसी के साथ बीजेपी का अगला भविष्य जींद का उपचुनाव ही तय करने वाला साबित होगा।
कांग्रेस, कई धड़ों में बंटी है। सभी के अपने-अपने कुनबे हैं। व्यक्तिगत फॉलोइंग है। कांग्रेस की विचारधारा या बैनर का एकजुट होकर कोई प्रचार नहीं करता। कांग्रेस उम्मीदवार रणदीप सिंह सुरजेवाला के लिए सिर्फ विरोधी चुनौती नहीं हैं, पार्टी में अंदरखाने उन्हें राजनीतिक तौर से खत्म करने का प्रयास विरोधी धड़े करेंगे। उनकी हार-जीत इस बात को सार्वजनिक करेगी कि पार्टी की गुटबाजी को जनता स्वीकार करती है या फिर नकारती है।
जींद का उपचुनाव तय करेगा कि असली लोकदल कौन सी? दुष्यंत चौटाला वाली या फिर अभय सिंह चौटाला वाली? परिवार में फूट के बाद दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी के बैनर तले भाई दिग्विजय चौटाला को मैदान में उतारा है। वहीं, अभय चौटाला ने इनेलो बसपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर उमेद रेढ़ू पर दांव खेला है। इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले साबित होंगे या नहीं, यह भी जींद के मतदाता ही तय करेंगे। इनेलो पर परिवारवाद के आरोप अक्सर लगते रहे और भले ही विचारधारा की दुहाई देकर दुष्यंत अलग हुए हों, लेकिन भाई को मैदान में उतार कर परिवारवाद की छाया से बच नहीं पाए। अब जींद का उपचुनाव ही तय करेगा कि दुष्यंत-दिग्विजय करिश्माई साबित हो पाते हैं या नहीं। इनेलो व जजपा में से किसका भविष्य खुशहाल साबित होने वाला है, यह भी जींद का उपचुनाव ही तय करेगा।