देवबंद ने दिया बैंक कर्मचारियों से शादी न करने का फरमान
इक्कीसवीं शताब्दी में खड़े होकर यदि आप इतनी रूढ़िवादी बातें कैसे कर सकते हैं?
5 जनवरी 2018
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नया हरियाणा
दारुल उलूम देवबंद कह रहा हैं कि मुसलमानों को ऐसे परिवारों में रिश्ता करने से बचना चाहिए जिनका मुखिया बैंक में नौकरी करता हो. उसने कहा है कि बैंक की कमाई ब्याज से होती है जो इस्लाम में हराम है. दारुल उलूम के मुताबिक इसलिए इस तरह की नौकरी से कमाया गया पैसा भी हराम है,
यानी बैंक में जो मुसलमान काम करे उस से रिश्ता रखना सही नही है यानी दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मुसलमानो को बैंक में काम ही नही करना चाहिए, इस्लाम मे ब्याज लेना और देना दोनों हराम है, यानी क्या इसका मतलब यह है कि, मुसलमान आज कोई बिजनेस कर ही नही सकता क्योंकि आज के समय मे आप कोई बड़ा बिजनेस करोगे तो कम से कम बैंक से कर्जा तो लेना ही पड़ेगा, तो क्या मुसलमान लोगों को गाड़ियों को ठीक करने, पंचर लगाने जैसे छोटे मोटे काम ही करना चाहिए?
आज इक्कीसवीं शताब्दी में खड़े होकर यदि आप इतनी रूढ़िवादी बातें कैसे कर सकते हैं?इस तरह की बातें जब सामने आती हैं तो यह बात वाकई में हुई होगी यह सच लगता है.
15वीं शताब्दी में जब इस्लाम और ईसाई के बीच परस्पर धर्म को लेकर युद्ध होते ही रहते थे, उस वक्त तक अरब और युरोप की स्थिति एक बराबर ही थी. तब योहानेस गुटेनबर्ग ने 1439 में छापेखाने (प्रिंटिंग प्रेस) का अविष्कार किया। जिससे यूरोप में ज्ञान विज्ञान में प्रगति हुई और उनकी बातें जब जल्द ही ज्यादा लोगों तक सुलभता पूर्वक पहुंच सकती थी। इस नए आविष्कार को अपनाने के बजाय मुस्लिम धर्मगुरु तुर्की के शैखुल इस्लाम ने इसके खिलाफ फ़तवा ज़ारी करके इसका उपयोग गैर इस्लामिक करार दे दिया।
एक ओर ईसाई एक के बाद एक आविष्कार करते गए और मुस्लिम धर्मगुरु उन पर फतवे दर फतवे लगाते ही गए। 250 सालों तक मुस्लिमों ने छापेखाने नहीं बनाए तब तक पूरा यूरोप इसके जरिये तालीम में तुर्की और मुसलमानों से 250 साल आगे निकल गया. आज भी यह ढाई सौ सालों का अन्तर कई जगह दिख जाता है.