सोनीपत लोकसभा में कुल 9 विधानसभा क्षेत्र हैं। जिसमें 6 विधानसभा सोनीपत की व 3 विधानसभा सीट जींद की लगती हैं। सोनीपत की 6 विधानसभा- सोनीपत, राई, गन्नौर, खरखोदा, गोहाना व बरोदा हैं। जींद विधानसभा की 3 विधानसभा- जींद, जुलाना व सफीदो हैं। इससे पहले इसमें बहादुरगढ़ शामिल था, जो कि 2009 को हटाकर जींद को शामिल किया गया था। सोनीपत लोकसभा क्षेत्र के कुल 14,17,188 मतदाताओं में सबसे ज्यादा पौने पांच लाख जाट वोटर हैं। इनमें मलिक और दहिया खापों के सबस ज्यादा वोट हैं ओर जाटों के अलावा करीब साढ़े सात लाख गैर जाट, पिछड़े और अनुसूचित जाति के वोटरों का ध्रुवीकरण किसी उम्मीदवार की जीत-हार का कारण बन सकता है
ये जातियां हैं सोनीपत में
जाट----------------4,75,000
ब्राह्मण-------------1,44,000
अनुसूचित जाति बी----1,20,000
धानक--------------59,000
अरोड़ा/पंजाबी-------80,000
वाल्मीकि-----------66,000
वैश्य---------------56,000
सैनी----------------51,000
झींवर----------------35,000
कुम्हार----------------30,000
अन्य बीसी------------28,000
खाती----------------26,000
राजपूत----------------24,000
नाई-------------------24,000
बैरागी----------------22,000
लुहार----------------22,000
सिख/जट सिख--------15,000
मुस्लिम--------------13,000
त्यागी---------------11,000
अन्य अनुसूचित जाति--10,000
दर्जी----------------9,000
अहीर--------------8,800
रोड---------------9,000
अन्य जनरल--------6,000
सुनार--------------5,000
कांग्रेस हर बार बदल देती है उम्मीदवार
कांग्रेस के साथ दिक्कत है कि हर लोकसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बदल देती है। 2009 में जितेंद्र मलिक को टिकट दिया था तो 2014 में जगबीर मलिक को टिकट दे दिया। 2004 में धर्मपाल मलिक को उम्मीदवार बनाया था तो 1999 में चिरंजी लाल शर्मा को मैदान में उतार दिया था। 1998 में बलबीर सिंह को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया तो 1996 में धर्मपाल मलिक को टिकट दे दिया था। इनेलो और भाजपा जब गठबंधन में चुनाव लड़ते थे तो सोनीपत सीट भाजपा के खाते में जाती थी। इसलिए इनेलो का वोट बैंक टूटता-जुड़ता रहता है।
सोनीपत लोकसभा क्षेत्र मैं अभी तक 11 लोकसभा चुनाव हुए हैं जिसमें 9 बार तो जाट उम्मीदवार को लोकसभा सीट गई है जबकि दो बार गैर जाट को यहां से लोगों ने लोकसभा मेंबर चुनकर भेजने का काम किया है। जिसमें पहली बार सोनीपत में 1996 में अरविंद शर्मा निर्दलीय चुनाव लड़कर लोकसभा के मेंबर बने। दूसरा गैर जाट मोदी लहर में 2014 में सोलवीं लोकसभा चुनाव में रमेश चंद्र कौशिक जीते। सोनीपत में सबसे पहला लोकसभा ओर भारत मे छटी लोकसभा का चुनाव हुआ। जिसमे मुख्त्यार सिंह मलिक भारतीय लोक दल से लोकसभा मेंबर बने। सोनीपत में सबसे ज्यादा बार लोकसभा मेंबर किशन सिंह सांगवान रहे हैं जो एक बार inld से दो बार भजपा से लोकसभा मेंबर रहे हैं। अगर बात करे तो सोनीपत लोकसभा चुनाव की यहाँ के मतदाता आपने ही हिसाब से वोट करते हैं। बाहर के चुनाव कंडीडेट से ज्यादा अपने क्षेत्र के कैंडिडेट ऊपर भरोसा करते हैं। इसीलिए तो एक बार धर्मपाल सिंह मलिक को जीता कर भारत के उप प्रधानमंत्री देवीलाल को हराने का काम किया था और एक और बड़ा कारण है यहाँ पर दो खाप पंचायत बड़ी हैं। जिसमें मलिक व दहिया हैं जो लोकसभा मेंबर जिताने में अहम भूमिका निभाते हैं। अगर मलिक लोकसभा मेंबर की बात करे तो यहाँ 4 बार मलिक गोत्र के लोकसभा मेंबर रहे हैं। जिसमें-
मुख्तयार सिंह मलिक भारतीय लोकदल पार्टी 1977
धर्मपाल सिंह मालिक कांग्रेस 1984
धर्मपाल सिंह मालिक कॉग्रेस 1996
जितेंद्र सिंह मालिक कांग्रेस 2009 से बने।
धर्मपाल सिंह मलिक ने 1984 के चुनाव में भारत के उप प्रधानमंत्री देवी लाल को यहां से हराया है। अगर बात करे तो कॉग्रेस की पहली जीत की बात करे तो 1984 लोकसभा चुनाव में जीत हुई और भाजपा की पहली जीत 1999 में हुई जब कि उप प्रधानमंत्री देवी लाल की पार्टी भारतीय लोकदल के मुख्तयार सिंह मलिक ने जीत दर्ज की थी। सोनीपत लोकसभा पर तीन बार कांग्रेस का कब्जा रहा तीन बार बीजेपी का कब्जा रहा जबकि इंडियन नेशनल लोकदल भी अलग अलग पार्टी के नाम से 4 बार कब्जा रहा है। सोनीपत 1972 में रोहतक से अलग होकर नया जिला बना। बात अगर 1971 के पहले लोकसभा चुनाव की करें तो उस वक़्त सोनीपत क्षेत्र रोहतक में ही गिना जाता था। 1977 से पहले सोनीपत लोकसभा सीट अस्तित्व में नहीं थी और उस वक़्त यह क्षेत्र रोहतक लोकसभा सीट का ही हिस्सा था ।
1975 में एमरजैंसी के बाद 1977 में दूसरा लोकसभा चुनाव हुए। उन दिनों देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी होती थी। एमरजेंसी के बाद साल 1977 में नई पार्टी का गठन हुआ था जिसका नाम भारतीय लोकदल बनी। 1977 के इसी लोकसभा चुनाव में भारतीय लोकदल पार्टी के उम्मीदवार मुख्त्यार सिंह मलिक ने सोनीपत लोकसभा सीट से कांग्रेस की प्रत्याशी और भगत फूल गुरुकुल की हेड सुभाषिणी देवी को बुरी तरह हरा जीत दर्ज की। इस लोकसभा चुनाव में मुख्तार सिंह ने 340900 वोट हासिल की, जबकि सुभाषिनी देवी ने 64 हजार 677 वोट हासिल की।जो दूसरे स्थान पर रही और मुख्तार सिंह ने बड़े अंतर से सुभाषिनी देवी को हराया इस चुनाव में 72. 72 % वोट पोलिंग हुई।
1979 में फिर लोकसभा चुनाव 31 दिसम्बर 1979 और 1 जनवरी 1980 में दो दिन चुनाव हुए। जनवरी 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल ने अपनी पार्टी जनता दल पार्टी से चुनाव लड़ते हुए सिक्किम के राज्यपाल रह चुके चौधरी रणधीर सिंह(कांग्रेस) को हरा कर इस सीट पर जीत दर्ज की थी।1982 में चौ.देवीलाल ने एस वाई एल के मुद्दे के कारण अस्तिफा दे दिया। इस अस्तिफे देने के बाद जानता दल पार्टी के दो फाड़ हो गए। चौ. देवीलाल और चौ. चरण सिंह अलग अलग हो गए।सीट खाली हो गई।
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेसी लोकसभा नेता को काफी सहानुभूति मिली और इस सहानुभूति के कारण कांग्रेस की जबरदस्त लहर बन चुकी थी।इसी कारण चौधरी देवीलाल जैसे धुरंधर नेता को भी जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के एक मामूली उम्मीदवार धर्मपाल मलिक ने इस लोकसभा चुनाव में शिकस्त किया। लगभग 4100 वोट से देवीलाल हार गए। साल 1987 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव भी करवाए गए। उस समय चौ. बंशीलाल मुख्यमंत्री थे।उस समय चुनाव के दौरान देवीलाल को 90 सीट में से 85 सीट मिली और चौ. देवीलाल मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन ,1989 में देवीलाल ने अपने एक कार्यकर्ता कपिलदेव शास्त्री को खड़ा कर दिया।जिसने कांग्रेस के धर्मपाल मलिक को धूल चटा कर देवीलाल की हार का बदला चुका दिया। लेकिन 1991दोबारा लोकसभा का चुनाव हुआ। जिसमें धर्मपाल मलिक ने अपनी हार का बदला लेते हुए बाजी पलट कर कपिलदेव शास्त्री को हराया। इस चुनाव में धर्मपाल मलिक ने 55000 वोटों की अधिकता के साथ जीत दर्ज की थी। उसके बाद धर्मपाल मालिक 1991 से 1996 तक हरियाणा प्रदेश कमेटी के अध्यक्ष भी रहे।
लेकिन 1996 में एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए गए। जिसमें 4 उम्मीदवार शामिल हुए। कांग्रेस के धर्मपाल मालिक,लोकदल के रिजकराम,अभय राम दहिया हरियाणा विकास पार्टी और आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर डॉ अरविंद शर्मा शामिल रहें।1996 में हरियाणा विकास पार्टी (वर्तमान में बीजेपी) ने पहली बार चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में तीनों उम्मीदवारों को हराकर आज़ाद उम्मीदवार डॉ अरविंद शर्मा ने जीत दर्ज की। अरविंद शर्मा डेढ़ साल तक एम पी रहें। इसके बाद 1998 में लोकसभा भंग जो गयी। 6 महीने के उपरांत ही 1998 में दोबारा लोकसभा चुनाव हुए। उस समय कांग्रेस से बलबीर सिंह मलिक गोहाना निवासी,हरियाणा विकास पार्टी से जगबीर सिंह मालिक,समाजवादी जनता पार्टी के किशन सिंह सांगवान उम्मीदवार रहे। 1998 के इस मध्यावधि लोकसभा चुनावों मे समाजवादी जनता पार्टी के किशन सिंह सांगवान ने बाजी मारी । वर्ष 1999 में किशन सिंह सांगवान ने INLD पार्टी को छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए। इस चुनाव में बीजेपी की तरफ से किशन सिंह सांगवान ने कांग्रेस के पंडित चिरंजीलाल को हराकर जीत दर्ज की।इसी दौरान एक वोट के कारण स्व. श्रीअटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गयी। 1999 में फिर हुए मध्यावधि चुनाव में किशन सिंह सांगवान दोबारा विजय हुए। साल 2004 में भी उन्होंने ही फिर बीजेपी के टिकट पर ही बाजी मारी । लेकिन 2009 में कांग्रेस के जीतेंद्र मलिक ने किशन सिंह सांगवान को पराजित कर सारे समीकरण बदल दिए। 2014 में देशव्यापी मोदी लहर में यह सीट फिर बीजेपी की झोली में चली गई और यहां से पुन: एक गैर जाट उम्मीदवार रमेश कौशिक (बीजेपी) संसद में पहुंचने में कामयाब रहे ।
सोनीपत से अब तक रहे सांसद
वर्ष सांसद पार्टी
1977 मुखत्यार ङ्क्षसह बी.एल.डी.(भारतीय लोकदल)
1980 देवीलाल जे.एन.पी. (एस.)
1984 धर्मपाल मलिक कांग्रेस
1989 कपिलदेव जनता दल
1991 धर्मपाल मलिक कांग्रेस
1996 अरविंद शर्मा निर्दलीय
1998 किशन सिंह सांगवान एच.एल.डी. (आर.)
1999 किशन सिंह सांगवान भाजपा
2004 किशन सिंह सांगवान भाजपा
2009 जितेंद्र मलिक कांग्रेस
2014 रमेश कौशिक भाजपा
(राहुल सैनी)