हिंदुवादी राजनीति की राह पर राहुल गाँधी, पार्टी प्रवक्ताओं को हिंदुत्व विरोधी बयान न देने के आदेश दिए
क्षेत्रीय दलों से मुक्ति चाहती है देश की जनता.
29 दिसंबर 2017
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नया हरियाणा
राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के सभी 55 अधिकृत प्रवक्ताओं और पार्टी के जिम्मेदार नेताओं को साफ निर्देश दिए हैं कि वे ऐसा कोई बयान न दें जो हिंदुत्व के खिलाफ जाता हो अथवा जिससे हिन्दुओं को महसूस हो कि एक वर्ग विशेष का तुष्टीकरण किया जा रहा है।कांग्रेस अध्यक्ष की ये एक सकारात्मक पहल है। हालांकि एन्टोनी कमेटी ने कांग्रेस को पहले ही चेताया था कि कांग्रेस की छवि हिन्दू विरोधी की बन गई है और यदि राहुल गांधी अब इस छवि को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं तो भविष्य में न सिर्फ ये कांग्रेस की सेहत के लिए अच्छा है बल्कि भाजपा को भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
दरअसल ज्यादातर हिन्दू कट्टर नहीं हैं किन्तु जब वे एकतरफा तुष्टिकरण देखते हैं तो बेमन से ही सही वे भाजपा के पाले में खड़े हो जाते हैं। इसका ये अर्थ कतई नहीं है कि किसी भी तरह से अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन हो, बल्कि उन्हें एक अलग समुदाय के बजाय सिर्फ एक भारतीय के रूप में देखने की प्रवृत्ति प्रारम्भ होनी चाहिए।
क्षेत्रीय दलों और प्राइवेट लिमिटेड पार्टियों से सदैव कांग्रेस कई गुना बेहतर है। बशर्ते इस एक कार्य के साथ राहुल गांधी को दो कार्य और करने चाहिए। एक तो भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस और कामरेडों से आजीवन के लिए हल्दी बांटन अर्थात तलाक।
दरअसल भारतभूमि एक धर्मप्राण भूमि है और यहां नेहरूजी का मॉडल लंबे समय तक नहीं चल सकता। तब चूंकि देश नया-नया आजाद हुआ था, नेहरू एक नेता न होकर इस देश के हीरो थे, लोग उनसे भावुकता से जुड़े हुए थे तो इस भावुक जुड़ाव में नेहरू की कई कमियां भी छुपती चली गईं, किन्तु अब गंगा में बहुत पानी बह चुका है, देश की सोचने की दिशा बदली है, सूचना का विस्फोट हुआ है, संचार क्रांति ने हर व्यक्ति को अपने विचार सार्वजनिक करने का मंच दे दिया है। ऐसे में सिर्फ अपने आदर्शों और यूटोपिया के लिए आप मुल्क के 80% से ज्यादा हिन्दुओं को कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं?
राहुल गांधी को काँग्रेस की बुझी लालटेनों को मार्गदर्शक मंडल में बिठलाकर नई सोच और नए आइडिया के साथ आगे बढ़ना चाहिए और उनका पहला भोजन क्षेत्रीय दल होना चाहिए न कि भाजपा।
भाजपा को भी कांग्रेस मुक्त भारत के बजाय क्षेत्रीय दल मुक्त भारत का नारा देना चाहिए।
तभी सच्चा लोकतंत्र दिखेगा, तभी हम अमेरिका और ब्रिटेन की तरह एक खूबसूरत लोकतंत्र के वाहक बन पाएंगे। क्योंकि कुछ भी हो राष्ट्रीय दलों की फिर भी एक जवाबदेही होती है जबकि प्राइवेट लिमिटेड पार्टियां क्या करती हैं ये हम सब पिछले दो तीन दशकों से देख ही रहे हैं।