हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी पिछले 50 साल में खुद के लिए सीएम पद हासिल करने में नाकाम रही है
प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी को हासिल करने के लिए पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा, कुलदीप बिश्नोई, रणदीप सुरजेवाला, कुमारी शैलजा, किरण चौधरी और कैप्टन अजय यादव सभी कुछ भी करने को तैयार हैं।
21 दिसंबर 2018
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नया हरियाणा
कांग्रेस के चंडीगढ़ स्थित मुख्यालय में एक ऐसी कुर्सी है जो बड़े-बड़े नेताओं के सपनों का कत्ल करने का काम करती है। यह मनहूस कुर्सी है हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की। इस कुर्सी पर 1966 से लेकर अब तक 19 लोग बैठ चुके हैं और इन 19 प्रदेशाध्यक्ष में से एक भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। इस कुर्सी ने अहीरवाल के सबसे चमकदार नेता रहे राव निहाल सिंह, भूपेंद्र हुड्डा के पिता रणबीर सिंह, हैवीवेट जाट नेता बीरेंद्र सिंह और भजनलाल के सपनों को तार-तार करने का काम कर दिखाया। कांग्रेस को सत्ता दिलाने में सबसे अधिक मेहनत प्रदेश अध्यक्ष की मानी जाती है। उसी की पसंद पर टिकटें बांटी जाती हैं। उसी के कंधों पर सारा चुनाव प्रचार अभियान होता है और उसी के दारोमदार पर कांग्रेस का चुनाव भविष्य तय होता आया है लेकिन यही कुर्सी सत्ता हासिल होते ही खुड्डे लाइन कर दी जाती है।
वर्तमान समय में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी को हासिल करने के लिए पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा, कुलदीप बिश्नोई, रणदीप सुरजेवाला, कुमारी शैलजा, किरण चौधरी और कैप्टन अजय यादव सभी कुछ भी करने को तैयार हैं। यह सभी नेता वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को हटाने और खुद को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए हाईकमान की कोई भी बात मानने को तैयार बैठे हैं। पिछले कुछ साल में लगातार अशोक तंवर को हटाने के लिए भूपेंद्र हुड्डा खेमा अभियान चलाता रहा है लेकिन उनको यह नहीं पता कि जिस कुर्सी को हासिल करने के लिए वे पुरजोर कोशिश लगा रहे हैं, सारे हथकंडे अपना रहे हैं वहीं कुर्सी उनके सियासी करियर का बंटाधार कर सकती है।
हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी पिछले 50 साल में खुद के लिए सीएम पद हासिल करने में नाकाम रही है। 1966 में हरियाणा के गठन के समय पंडित भगवत दयाल शर्मा हरियाणा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष थे और उनको प्रदेश के पहले सीएम बनने का गोल्डन चांस मिला लेकिन प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी उन पर भारी पड़ी और 4 महीने बाद ही उनकी कुर्सी छीन ली गई। खास बात यह है कि भगवत दयाल शर्मा की अगुवाई में चुनाव नहीं हुए थे। इसलिए उनको प्रदेश अध्यक्ष के रहते सीएम बनने की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता।
भगवत दयाल शर्मा के बाद राम किशन गुप्ता और उनके बाद रामशरण चंद्र मित्तल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने लेकिन दोनों के सियासी करियर को आगे कोई भी मुकाम नहीं मिला और ना ही उनके परिजनों में कोई परदेस की राजनीति का चर्चित चेहरा बन पाया ।
इसके बाद राव निहाल सिंह को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। वह सबसे कम उम्र में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले नेता थे और सबसे कम उम्र में मंत्री बने थे। वह एकमात्र ऐसे अहीर नेता थे जो अहिरवाल की चारों सीटों से विधायक बनकर आए थे। वह मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार माने जाते थे लेकिन प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी ने उनके सीएम बनने के सियासी अरमानों को कभी पूरा नहीं होने दिया। राव निहाल सिंह के बाद भूपेंद्र हुड्डा के पिता रणबीर सिंह प्रदेश अध्यक्ष बने। वे सिर्फ 6 महीने ही प्रदेश अध्यक्ष बने रहे। रणबीर सिंह को कभी भी सीएम मेटेरियल नहीं माना गया जिसके चलते वे कभी भी सीएम पद की दौड़ में शामिल नहीं रहे। रणबीर सिंह के बाद इंदिरा गांधी ने बंसीलाल के चहेते सुल्तान सिंह को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाया।
उनके बाद दलबीर सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। वह कुमारी शैलजा के पिता थे और भजनलाल के कट्टर विरोधी माने जाते हैं। दलबीर सिंह के हटाए जाने पर सरदार हरपाल सिंह को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। 1980 में हरपाल सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के साथ ही कांग्रेस में भजनलाल युग का आगाज हुआ और वह 2006 तक यानी 26 साल तक जारी रहा । इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी कांग्रेस के सर्वेसर्वा बन गए और उन्होंने अपने पसंद के 2 नेताओं सुल्तान सिंह को पहले प्रदेश अध्यक्ष बनाया और उसके बाद वीरेंद्र सिंह को जिम्मेदारी सौंपी।
देवी लाल के न्याय युद्ध की आंधी को रोकने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने किसी जाट नेता को सीएम बनाने का फैसला किया। प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते पहली दावेदारी बीरेंद्र सिंह की बनती थी लेकिन राजीव गांधी ने खासमखास होने के बावजूद 1986 में बंसीलाल को भजनलाल की जगह सीएम बना दिया। इसके साथ बीरेंद्र सिंह को अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया। यह भी कह सकते हैं कि अध्यक्ष पद की कुर्सी ने उनके सीएम बनने के सपने को पूरा नहीं होने दिया।
बीरेंद्र सिंह की जगह भजनलाल के नजदीकी हरपाल सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। उसके बाद बलबीर पाल शाह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। बलबीर पाल शाह के बाद शमशेर सिंह सुरजेवाला को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। यह तीनों प्रदेश अध्यक्ष भजनलाल की गेम प्लान के हिस्से रहे और उनके मनचाही रणनीति पर काम करते रहे।।
1990 में राजीव गांधी ने फिर से बीरेंद्र सिंह पर भरोसा जताया और उनको अध्यक्ष बना दिया लेकिन 1991 में राजीव गांधी की असामयिक मौत के चलते बीरेंद्र सिंह का मुकद्दर फिर दगा दे गया। अगर राजीव गांधी जिंदा रहते तो 1991 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सत्ता में आने पर बीरेंद्र सिंह का सीएम बनने का भरपूर चांस था लेकिन उनकी जगह भजनलाल हरियाणा के सीएम बन गए। यानि दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए बीरेंद्र सिंह सीएम पद की दौड़ से बेदखल कर दिए गए।
सत्ता हाथ में आने के बाद भजनलाल ने अपने चहेते धर्मपाल मलिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जो 1997 तक रहे। 1997 में सोनिया गांधी का कांग्रेस पर दोबारा दबदबा बनने के चलते भजन लाल के विरोधी भूपेंद्र हुड्डा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। वे 5 साल तक इस पद पर बने रहे। 2002 में जब कांग्रेस हाईकमान को यह लगा कि हुड्डा के अगुवाई में पार्टी सत्ता में नहीं आ सकती तो उनकी जगह भजनलाल को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया।
2005 में जब कांग्रेस सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ आई तो भजनलाल के सीएम बनने के 100 फिसदी चांस थे लेकिन प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी उनकी दावेदारी को लील गई और उनकी जगह भूपेंद्र हुड्डा को सोनिया गांधी ने हरियाणा का सीएम बना दिया। भूपेंद्र हुड्डा के सीएम बनने के साथ ही राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले भजनलाल का कांग्रेस में सियासी करियर खत्म हो गया।
हुड्डा ने अपने इशारे पर चलने वाले फूलचंद मुलाना को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सरकार के साथ-साथ संगठन पर भी 7 साल तक राज किया। 2014 में राहुल गांधी को खुश करने के लिए भूपेंद्र हुड्डा ने अशोक तंवर को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने दिया। 6 महीने बाद ही तंवर की आपस में खटपट हो गई और उसके बाद कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई ।
2016 से भूपेंद्र हुड्डा अशोक तंवर को हटाने के लिए हर हथकंडे अपना रहे हैं लेकिन राहुल गांधी की नामंजूरी के चलते उनका हर दांंव फेल होता चला आ रहा है । अब देखना यह है कि 2019 के चुनाव में क्या अशोक तंवर प्रदेश अध्यक्ष बने रहते हैं और अगर वह प्रदेश अध्यक्ष बने रहते हैं तो क्या वे अपने से पूर्व के 18 प्रदेश अध्यक्षों की सीएम नहीं बनने के इतिहास के शिकार होते हैं या राहुल गांधी की मेहरबानी से सीएम बनकर नया इतिहास रचते हैं? (सोशल मीडिया से साभार)
अभी तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी सभी नेताओं के लिए मनहूस साबित हुई है। हालांकि राजस्थान में अध्यक्ष को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली है और मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में सीधे सीएम की कुर्सी नसीब हुई है।