नगर निगम चुनाव में बीजेपी का परचम और हरियाणा की राजनीति का भविष्य
हरियाणा में पांच नगर निगम चुनावों का राजनीतिक विश्लेषण.
19 दिसंबर 2018
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नया हरियाणा
हरियाणा में 5 नगर निगम चुनावों में बीजेपी ने पांचों सीटों पर जीत का परचम लहराया है। इस पर संजीदा पत्रकार धर्मेंद्र कंवारी ने अपना चुनावी विश्लेषण प्रकट किया है। उनके अनुसार-
1. तीन राज्यों में हार के बाद टूटे हुए मनोबल को ऊंचा कर दिया है बीजेपी के। अब चुनाव तक ये नतीजे बैकअप देते रहेंगे।
2़ एक ओपिनयन ये बन गया था कि बीजेपी तो गई, अब ऐसा कहने वाले साथी थोडा ठहरेंगे। कुछ साथियों की बर्फ पिघलने में समय लगेगा।
3. कई गढ और बहम टूटे हैं। रोहतक में हुड्डा, हिसार में जिंदल व भजनलाल परिवार को लोगों ने यह जताने का काम किया है कि अब वो किसी के कहने से वोट नहीं डालेंगे।
4़ इसमें कोई शक ही नहीं है पूरा इलेक्शन जाति पर लडा गया है और बीजेपी को इससे कम से कम इस चुनाव में बहुत फायदा हुआ है।
5़ बीजेपी खास मुख्यमंत्री खट्टर को इसका नुकसान ये हुआ है कि वो अभी तक गैर जाट के नेता के रूप में सामने आ रहे थे लेकिन पंजाबी का नारा देकर एक जाति तक खुद को सिमटा लिया है। मैं राजनीतिक रूप से ये गलत फैसला मानता हूं उनका। एक दिन वो भी जरूर इसे अनुभव करेंगें।
6. रोहतक को संचित जैसा होनहार युवा मिला है। अगर वो रोहतक में डटकर मेहनत करे तो भविष्य उज्जवल है।
7. व्यक्तिगत छवि ने भी काम किया है। सचदेवा के हारने का कारण हुड्डा की अपील बेअसर होने के साथ साथ सट्टे और दारूबाजी आदि की बातों ने पंजाबी मतदाताओं को गोयल की तरफ सरकने पर मजबूर किया।
8. पंजाबी पल्स जाट नाम का कोई गठजोड इस चुनाव में नहीं हो सकता है। ये मानकर चलें कि भविष्य में भी नहीं हो सकता है। दोनों अलग अलग तासीर की कौमें हैं।
9. आरएसएस को कोसने वालों को इस बात से बडी खीज होगी लेकिन ये सच है कि सभी शहरों में आरएसएस के लोगों ने बडी मेहनत की है बीजेपी के उम्मीद्वारों को जिताने के लिए। कांग्रेस के पास इस तरह की टीम का एक तरह से अकाल पडा हुआ है।
10. करनाल जैसे शहर विपक्षी एकता के बावजूद बीजेपी का जितना लेकिन बहुत कम मार्जिन से जितना सीएम खट्टर जी के लिए एक अलार्म है। कहीं ऐसा ना हो कि हु्ड्डा साहब की तरह करनाल भी उन्हें कभी शर्मिंदा ना कर दे।
11. रोहतक में फरवरी 2016 के दंगे एक बडा मुद्दा रहे हैं और कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी को इसकी सजा मिली है।
12. युवा वोटर करीबन बीजेपी के साथ गया है। नाैकरियों में पारर्शिता इसका एक बडा कारण रहा है। बीजेपी के लिए ये एमएलएम की तरह वोट मार्केटिंग का कारण बनता जा रहा है।
13. सरदाना की जीत का मार्जिन अगर 5-छह हजार रहता तो इसमें दुष्यंत समर्थकों की स्पेार्ट का अहम योगदान माना जाता लेकिन अब ऐसा नहीं है। सरदाना की व्यक्तिगत छवि ने बडा काम किया है। दो विधानसभा चुनावेां में हार की सहानुभूति उनके साथ थी।
14. रोहतकी का कौतकी से बडा नाता है। मंत्री ग्रोवर का विवादित बयान को यहां के लोगों खासकर पंजाबी समाज को बडा पसंद आया।
15. हुड्डा साहब या किसी अन्य बडे नेता के बूथ पर उनके प्रत्याशी का हारना कोई बडा मुद्दा नहीं है। बहुत बार ऐसा हो जाता है, हो चुका है।
16. इनेलो कहीं भी इसमें बहुत प्रभावी भूमिका नहीं निभा सकी है रोहतक को छोडकर, अभय जी को इस पर चिंतन करना चाहिए। केवल ये कहने से काम नहीं चलेगा कि इनेलो तो शहरों में पहले से ही नहीं है।
17. कांग्रेस ये सबक ले सकती है कि उनके प्रदेश अध्यक्ष कोई बात कहें तो मान लेनी चाहिए। सिंबल पर चुनाव से पीछे हटना उनकी ऐतिहासिक भूल साबित होगी।
18. युवा वोटर युवा प्रत्याशी को पसंद करता है और वोट भी देता है। रोहतक में संचित और पानीपत में अवनीत युवाओं को अच्छी खासी पसंद आई।
19. इन चुनावों से ये साबित हो गया है कि केवल फेसबुक पर हराने से काम नहीं चलेगा। मतदाताओं से कनेक्ट होना होगा।
20. अंतिम बात ये है जो अभी फिलहाल हवा में लग सकती है लेकिन ये संभव है कि अब बीजेपी प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव करवा सकती है।