अटल बिहारी वाजपेयी और ताऊ देवीलाल ने भी चखा चिमनलाल की कचौड़ी का स्वाद
जायका हरयाणे का : मौलाना हाली के पानीपत में है चिमनलाल की मशहूर कचौड़ी
17 दिसंबर 2018
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नया हरियाणा
उर्दू साहित्य में हरियाणा के पानीपत का विशेष स्थान है. इस शहर में गजल के शहंशाह मिर्जा गालिब के शिष्य मौलाना हाली, ख्वाजा अहमद अब्बास, ख्वाजा जाफर हसन 'जाफर', मौलवी वहीदुद्दीन 'सलीम', सूरज भारद्वाज, साबिर पानीपत सरीखे उर्दू के अनेक नामचीन शायर और साहित्यकार दिए हैं. सूती कपड़ों के उत्पादन से भी दिल्ली रोड पर स्थित इस शहर का पुराना रिश्ता है. इससे अलावा यहां की मशहूर चिमनलाल कचौड़ी वाले ने भी पानीपत को अलग पहचान दिलाई है.
लगभग डेढ़ सौ साल पहले शहर के 'हलवाई हट्टा' मोहल्ले में चिमन लाल हलवाई ने उड़द की दाल भरी मसालेदार कचौड़ी, सब्जी बेचने का कारोबार शुरू किया. अब उनके वंशज इस कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं. दुकान के संचालक राजीव कुमार का कहना है कि हमारी कचौड़ी का जायका शुद्धता और पवित्रता पहले जैसी ही है. दुकान पर सुबह पांच बजे काम शुरू करने से पहले व्यापार से जुड़े तमाम लोगों को स्नान करके आना अनिवार्य है. बिना नहाए किसी को भी काम में हाथ लगाने की इजाजत नहीं होती. इनकी कचौड़ी, आलू छोले की सब्जी, मेथी की चटनी खास है. छाछ में लहसुन और प्याज का इस्तेमाल नहीं होता. चिमनलाल की कचौड़ी शक्ल से बहुत हद तक राजस्थानी कचौड़ी से मिलती जुलती है मगर चिमन की कचौड़ी राजस्थान की कचौड़ी की तरह मैदे से नहीं आटे से बनती है. अपने पुश्तैनी धंधे से जुड़े विकास दावा करते हैं कि उनकी कचौड़ी सुपाच्य है जबकि मैदे की कचौड़ी को हजम करना मुश्किल होता है.
दिल्ली-पानीपत रोड पर फ्लाईओवर से पहले एक रास्ता 'पांडव किला' की ओर जाता है. उसके पास ही यह दुकान है. 1969 में यह जर्जर होकर गिर गई थी. बाद में नए सिरे से इसका निर्माण कराया गया. मीडिया के पेशे से जुड़े विनय बताते हैं कि केवल पानीपत ही नहीं, हरियाणा भर के खान-पान के शौकीन यहां की कचौड़ी के दीवाने हैं. चिमन की कचौड़ी का स्वाद 2000 में विधानसभा चुनाव के दौरान ओम प्रकाश चौटाला के समर्थन में जनसभा करने आए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी चखा था. 58 वर्षीय राजीव जी बताते हैं कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल को पानीपत की अग्रवाल धर्मशाला में उन्होंने अपने हाथों से पूरी- सब्जी खिलाई थी. उनकी बातों पर यकीन करें तो पानीपत की जेल में बंद आजादी के क्रांतिकारियों के लिए उनकी दुकान से कचौड़ी-सब्जी जाती थी.
पानीपत से होकर चंडीगढ़ या दिल्ली जाने वाले बड़ी संख्या में इस दुकान पर आते हैं. कभी-कभी वे अपने साथ हाफ फ्राई कचौड़ी भी ले आते हैं ताकि घर पर उसे पूरी तरह पका कर परिवार के साथ खाया जा सके. राजीव बताते हैं कि वाजपेयी के करीबी आरएसएस के एक वरिष्ठ नेता जब तक जीवित रहे यहां से नियमित कचौड़ी-सब्जी दिल्ली मंगवाते रहे. सुबह 8:00 बजे से चिमनलाल की कचौड़ी के शौकीनों का तांता लगना शुरू हो जाता है. जो शाम 4:00 बजे दुकान बंद होने तक बना रहता है. रविवार के दिन ग्राहकों की भीड़ आम दिनों के मुकाबले कई गुना बढ़ जाती है.