हरियाणवी कहावत : बंसीलाल ने सड़कों का मोड और मास्टरों की मरोड दोनों निकाल दी
सत्ता में रहते बंसीलाल अफसरशाही को भी टाइट रखते थे और पत्रकारों के मामले में बंसीलाल का रैवया काफी अक्खड़ रहता था।
15 दिसंबर 2018
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नया हरियाणा
चौधरी बंसीलाल एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कई लोगों द्वारा आधुनिक हरियाणा के निर्माता माने जाते हैं। उनका जन्म हरियाणा के भिवानी जिले के गोलागढ़ गांव के जाट परिवार में हुआ था। उन्होंने तीन अलग-अलग अवधियों: 1968-197, 1985-87 एवं 1996-99 तक हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। बंसीलाल को 1975 में आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी का एक करीबी विश्वासपात्र माना जाता था। उन्होंने दिसंबर 1975 से मार्च 1977 तक रक्षा मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दी एवं 1975 में केंद्र सरकार में बिना विभाग के मंत्री के रूप में उनका एक संक्षिप्त कार्यकाल रहा। उन्होंने रेलवे और परिवहन विभागों का भी संचालन किया। लाल सात बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए, पहली बार 1967 में. उन्होंने 1996 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा विकास पार्टी की स्थापना की।
हरियाणा में बंसीलाल को उनकी कार्यशैली के लिए जाना जाता है। हालांकि बंसीलाल का मूल स्वभाव काफी नरम था, पर शासक के तौर पर वो काफी अक्खड़ थे। बंसीलाल जब हरियाणा में 1985 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने बात तब की है। उस समय उन्होंने मास्टरों की कामचोरी और उनके बार-बार नेतागिरी से परेशान होकर मास्टरों के तबादलें उनके घरों से कम से कम 20किलोमीटर की दूरी पर कर दिए थे। हालांकि मास्टरों और विपक्ष ने उन पर काफी दबाव बनाया पर वो टस से मस नहीं हुए। बात हाईकमान तक भी गई और मास्टर अपने आंदोलन को लेकर दिल्ली तक पहुंच गए थे। पर बंसीलाल कहां झुकने वाले थे। तभी बंसीलाल बाबत एक कहावत पूरे हरियाणा में प्रसिद्ध हो गई थी कि बंसीलाल ने सड़कों का मोड और मास्टरों की मरोड दोनों निकाल दी।
सत्ता में रहते बंसीलाल अफसरशाही को भी टाइट रखते थे और पत्रकारों के मामले में बंसीलाल का रैवया काफी अक्खड़ रहता था। कहा जाता था कि जिसके साथ बन जाती थी, उसे निभाते थे और जिनसे बिगड़ जाती थी, उनसे हमेशा 36 का आंकड़ा रखते थे। बताया जाता है कि चंडीगढ़ से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक अखबार दैनिक ट्रिब्यून से उनकी लंबी खींचतान चली। इस खींचातानी पर उनका साफ कहना था कि मैं अखबार वालों की परवाह नहीं करता। सुबह नाश्ते के बाद तो अखबार बच्चों का नाक पोछने के काम ही आता है।