किसानों ने दिखाया मनोहर सरकार को जमीनी हकीकत का आईना
सीएम मनोहर लाल ने कहा कि कृषि विभाग प्रगतिशील किसानों के चयन के लिए मापदंड बनाए।
11 दिसंबर 2018
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नया हरियाणा
हरियाणा सरकार द्वारा टॉप-100 कृषि गोष्ठी का आयोजन किसानों से सुझाव लेने के लिए चंडीगढ़ में किया गया था। इस गोष्ठी में प्रगतिशील किसानों और किसान नेताओं ने कृषि क्षेत्र की योजनाओं का कच्चा-चिठ्ठा खोल दिया। कृषि, पशु और बागवानी क्षेत्र की कमियों पर बात करते हुए विशेषज्ञों ने जहाँ अनेक सुझाव दिए वहीं किसानों और किसान नेताओं ने अपनी समस्याओं को गिनाते हुए सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत पर रोशनी डालने का काम किया। गोष्ठी के दूसरे सत्र में हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सामने किसानों ने अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर तीखे कटाक्ष किये। कृषि मंत्री ओपी धनखड़ ने कहा कि किसानों ने जो मुद्दे उठाएं हैं उनके अध्ययन के बाद विभागों के कार्यों में सुधार और नए संसाधनों की पहल समयानुसार की जाएगी। फसल बीमा योजना में निजी कम्पनियों को प्रीमियम का 3 गुना मुआवजा भी देना पड़ा है। किसान विपक्ष के बहकावे में न आए। सीएम मनोहर लाल ने कहा कि कृषि विभाग प्रगतिशील किसानों के चयन के लिए मापदंड बनाए। किसानों के बीच प्रतियोगिता कराकर प्रगतिशील किसान चुनें। चयन के बाद उन्हें सम्मान और प्रोत्साहित दें। किसानों की आय दोगुना करना जटिल विषय है। इसे किसान, विशेषज्ञ और सरकार मिलकर कर सकते हैं।
किसानों के सुझाव यह हैं-
1) खाद्यान्नों के अंधाधुंध आयात से किसानों पर आर्थिक मार पड़ रही है। गेहूं बाहर से आयात किए जाने पर किसानों को एमएसपी 1700 रुपये से अधिक होने पर मात्र 1000 रुपए प्रति क्विंटल मूल्य ही मिलता है। आयात उसी वस्तु का होना चाहिए, जिसकी जरूरत है। एमएसपी से कम खरीद करने वाले आढ़तियों पर अपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए। जिसके लिए सरकार कड़ा कानून बनाएं।
2) प्रदेश में पशुधन के नस्ल सुधार की प्रक्रिया बेहद धीमी है। दूध का निर्यात करने में इसलिए दिक्कत आ रही है क्योंकि दूध संक्रमित पाया जाता है। पशुधन का नियमित टीकाकरण होना चाहिए।
3) टमाटर को बर्बाद होने से बचाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगाई जानी चाहिए। इस दिशा में काम नहीं हो रहा। फव्वारा सिंचाई योजना की भी सब्सिडी नहीं मिल पा रही। किसानों को चक्कर काटने पड़ रहे हैं
4) भारतीय किसान संघ के प्रदेश संगठन मंत्री सुरेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल सेे कहा कि एसी रूम में बैठकर अधिकारी किसानों के कल्याण की योजनाएं नहीं बना सकते। उन्हें जमीनी हकीकत समझनी होगी। कृषि वैज्ञानिक व अधिकारी एक-एक गांव गोद लें और उसे योजनाओं के अनुसार आदर्श बनाएं। योजनाएं बेहतर साबित हो सकती हैं लेकिन क्रियान्वयन में अधिकारी रोड़ा बने हुए हैं। लाभ न मिलने पर किसान परेशान होकर सरकार को कोस रहा है।
5) फसल बीमा करने वाली कंपनी 2% प्रीमियम किसान के बैंक खाते से काट लेती है। बाकी प्रीमियम सरकार देती है। गेहूं अप्रैल में कटता है और बीमा कंपनियों की समयावधि मार्च में खत्म हो जाती है। गेहूं कटाई के समय अगर बारिश हो जाए तो किसान बेचारा मारा जाता है। क्योंकि बीमा करने वाली कंपनी अपना समय पूरा कर चुकी होती है। और नई कंपनी बीमा देती नहीं। इसीलिए बीमा कंपनी के साथ अनुबंध कम-से-कम 2 फसलों के लिए होना चाहिए। फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 170 रुपये बढ़ता है तो खरीद एजेंसियां 100 रुपये नमी और थोथापन के नाम पर काट लेती हैं। जबकि इसका कट 20-30 रुपये से अधिक नहीं बनता। इसीलिए किसानों को समर्थन मूल्य बढ़ने का कोई लाभ नहीं मिल पाता। फसल खरीद के समय सरकारी कंडा मंडी के गेट पर लगे। वही किसान को कुल वजन की स्लिप मिले। पेमेंट सीधी खाते में हो ताकि आढ़ती मनमाने तरीके से नमी और थोथापन के नाम पर कटौती न करें।
6) डेयरी फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए सिस्टम ऑनलाइन हो। शेड बनाने के नाम पर 2 लाख तक का सामान खरीदने की बाध्यता खत्म की जाए। इसमें अधिकारियों की मिलीभगत होती है।
7) कुरुक्षेत्र के किसान धर्मबीर डागर ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों का 2 साल से मुआवजा लंबित पड़ा है। सीएम विंडो पर भी अनेक शिकायतें की गई हैं। जिला प्रशासन व कृषि विभाग के अधिकारियों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। निजी कंपनियां किसानों से मोटा फायदा कमा रही हैं और किसान आत्महत्या कर रहा है।