जगाधरी विधानसभा सीट का इतिहास (1967 से लेकर 2014 तक)
इस सीट से पिछला विधायक विधानसभा में उपाध्यक्ष था वही नए एमएलए विधानसभा के अध्यक्ष बने।
9 दिसंबर 2018
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नया हरियाणा
यमुनानगर जिले की यह सीट प्रदेश की उन चंद सीटों में से है जिन पर बहुजन समाज पार्टी की स्थिति मजबूत रहती है। पिछले 6 चुनावों (2014 समेत) में बसपा यहां या तो जीती है या दूसरे स्थान पर रही है। इस सीट पर दलित मतदाता सबसे ज्यादा संख्या में है। लेकिन हरियाणा बनने के बाद से यहां विधायक सामान्य या पिछड़े वर्ग से ही बनते आए हैं। 1996 से पहले तो इस सीट पर ब्राह्मण, बनिया या पंजाबी नेताओं का ही कब्जा था। 1996 व 2005 में यहां से सुभाष चंद्र कंबोज 2000 (1996-हविपा, 2005-कांग्रेस), 2000 में बिशन लाल सैणी (बसपा) और 2009 में अकरम खान (बसपा) विधायक बने। इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी अच्छी है। इस सीट पर 2014 का विधानसभा चुनाव संतुलित स्थितियों में हुआ था। जहां विधायक बसपा का था, सरकार कांग्रेस की और लहर भाजपा की थी। 2008 परिसीमन में छछरौली विधानसभा सीट खत्म कर उसका ज्यादातर क्षेत्र जगाधरी सीट में मिल गया था। छछरौली सीट मुस्लिम और दलित बहुल सीट थी और वहां से 1977 के बाद से मुस्लिम या गुर्जर विधायक ही बनते थे। 1991 में जब से बहुजन समाज पार्टी ने हरियाणा में चुनाव लड़ने शुरू की है तब से ही पार्टी का इन दोनों सीटों पर अच्छा प्रभाव रहा है। जगाधरी सीट पर तो 1991 से 2014 तक हर चुनाव में बसपा पहले या दूसरे स्थान पर रही। बसपा से यहां 2000 में बिशनलाल सैणी और 2009 में अकरम खान विधायक बने।
Year
A.C No.
Assembly Constituency Name
Type
Winner
Gender
Party
Votes
Runner Up
Gender
Party
Votes
2014
8
Jagadhri
GEN
Kanwar Pal S/O Chandan Singh
M
BJP
74203
Akram Khan
M
BSP
40047
2009
8
Jagadhri
GEN
Akram Khan
M
BSP
39868
Subhash Chand
M
INC
35540
2005
6
Jagadhri
GEN
Subhash Chand
M
INC
32432
Rajiv Kumar
M
BSP
29238
2000
6
Jagadhri
GEN
Dr. Bishan Lal Saini
M
BSP
25952
Rameshwar Chouhan
M
BJP
22670
1996
6
Jagadhri
GEN
Subhash Chand
M
HVP
26709
Bishan Lal Saini
M
BSP
20074
1991
6
Jagadhri
GEN
Om Prakash Sharma
M
HVP
17316
Vishan Lal Saini
M
BSP
15671
1987
6
Jagadhri
GEN
Brij Mohan
M
BJP
31236
Om Parkash
M
INC
18787
1985
6
Jagadhri
GEN
Om Parkash
M
INC
20639
Brij Mohan
M
BJP
16656
1977
6
Jagadhri
GEN
Brij Mohan
M
JNP
24091
Om Prakash
M
INC
17902
1972
4
Jagadhri
GEN
Om Prakash
M
IND
16618
Sadhu Ram
M
INC
12439
1968
4
Jagadhri
GEN
Rameshwar Dass
M
INC
13534
Brijmohan Lal
M
BJS
9432
1967
4
Jagadhri
GEN
D. Prakash
M
BJS
14665
G. Singh
M
INC
12856
बसपा ने एक बार फिर क्षेत्र पर पुरानी पकड़ रखने वाले अपने इकलौते विधायक अकरम खान को ही टिकट दी। अकरम खान के पिता मोहम्मद असलम खान और दादा अब्दुल राशिद खान इस क्षेत्र की जानी-मानी राजनीतिक शख्सियत रही है। 1996 में अकरम खान ने कांग्रेस पार्टी से टिकट लेकर छछरौली सीट से चुनावी जीवन की शुरुआत करनी चाही, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। अकरम खान ने वह चुनाव आजाद उम्मीदवार के तौर पर लड़ा और 26 साल की उम्र में विधायक बन गए। अकरम खान तब बंसीलाल सरकार में हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन और चौटाला सरकार में राज्यमंत्री रहे। 2000 में छछरौली से भाजपा के कंवर पाल से चुनाव हारने के बावजूद ओमप्रकाश चौटाला ने उन्हें डेयरी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन और हारट्रोन का चेयरमैन बनाया। अकरम खान ने 2005 में इनेलो की टिकट पर छछरौली से ही चुनाव लड़ा लेकिन बसपा के अर्जुन सिंह के हाथों हार गए। 2007 में अकरम खान ने बसपा ज्वाइन कर ली और छछरौली सीट खत्म हो जाने के चलते 2009 में जगाधरी से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बन गए। विधानसभा में कांग्रेस के पास सिर्फ 40 सीटें होने की वजह से निर्दलीय के साथ -साथ बसपा के इस इकलौते विधायक की भी अच्छी पूछ रही और उन्हें विधानसभा में डिप्टी स्पीकर बनाया गया। 2014 में अकरम खान मुश्किल चुनौतियों से गिरे थे क्योंकि सांसद और मुख्यमंत्री की अनबन की वजह से उनके क्षेत्र के काम भी अटके पड़े थे। लंबे वक्त तक यमुना क्षेत्र में खनन बंद होने की नाराजगी भी अकरम खान को झेलनी पड़ी और उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी। 20 साल के राजनीतिक करियर में तीन पार्टियों और निर्दलीय राजनीति से होते हुए अकरम खान सिर्फ 2005 से 2009 के बीच ही बिना किसी संवैधानिक पद के रहे। 2009 के मुकाबले 2014 में उनके वोट 6% कम हुए और 30.86 से गिरकर 24.18% पर आ गए।
इनेलो ने जगाधरी सीट पर अपने मजबूत नेता डॉ. बिशन लाल सैनी को उतारा था। डॉ. सैनी 2000 में इसी जगाधरी सीट से बसपा की टिकट पर विधायक रहे थे। 2005 में वे जगाधरी सीट से इनेलो की टिकट पर चुनाव हार गए थे। जिसके बाद 2009 में उन्होंने सीट बदलकर रादौर से चुनाव लड़ा और एमएलए बने। राजनीतिक घरानों से बाहर बहुत कम नेता ऐसे होते हैं जो एक से ज्यादा क्षेत्र में कामयाब हो सके । 1987 में अपने गांव सारन की सरपंची से राजनीति शुरू करने वाले बिशन लाल बीएएमएस की पढ़ाई कर चुके हैं। 2014 में डॉ. सैनी का जगाधरी सीट पर प्रदर्शन काफी खराब रहा और वे 10 फ़ीसदी वोट भी नहीं दे पाए। इनेलो को यहां 2009 में सिर्फ 14.26% ही वोट मिले थे लेकिन 2014 में तो यह घटकर 8.93% रह गए।
सैणी कों कई बार सीट बदलने का नुकसान हुआ। जगाधरी में एक दशक से सक्रिय उनकी पार्टी के स्थानीय नेताओं ने खुद की टिकट कटने पर उनका सहयोग नहीं किया। छछरौली और खिजराबाद क्षेत्रों में तो पार्टी गायब सी हो गई थी।
जगाधरी सीट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ रामप्रकाश के नजदीकी भूपाल सिंह भाटी को टिकट दिया था। भूपाल सिंह कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री रहे थे और कुमारी सैलजा व भूपेंद्र सिंह हुड्डा दोनों के खेमों में संतुलन बनाने की कोशिश रखते थे। चुनाव में वे हुड्डा के उम्मीदवार के तौर पर ही देखे गए और सैलजा के कार्यकर्ता प्रचार में सक्रिय नहीं दिखे। कांग्रेस पार्टी की यहां बहुत बुरी गत हुई और पार्टी के वोट 2009 में 27.52% से घटकर 05.76% पर आ गए।
भाजपा ने यहां से अपने पुराने नेता कंवरपाल गुर्जर को अवसर दिया जो 1996 से छछरौली या जगाधरी सीट से चुनाव लड़ते आ रहे थे। वे इससे पहले एक बार 2000 में छछरौली से विधायक रह चुके थे। तब भी उन्होंने अकरम खान को हराया था जो फिलहाल इस जगाधरी सीट से विधायक थे। 2005 में कंवरपाल ने फिर छछरौली से ही चुनाव लड़ा था और बुरी तरह हार कर चौथे स्थान पर आ गए थे। 2009 में छछरौली सीट खत्म हो जाने पर कंवरपाल जगाधरी सीट पर आ गए और अच्छे वोट लेने के बावजूद तीसरे स्थान पर रहे थे। छछरौली सीट पर अकरम खान को हराने वाले कंवरपाल जगाधरी आकर उनसे हार गए थे। लेकिन 2014 में उन्होंने एक बार फिर हिसाब बराबर किया और शानदार जीत हासिल की। जगाधरी उन सीटों में से है जहां भाजपा को कुछ आधार रहा है और पार्टी उम्मीदवार मुकाबले में आते रहे हैं। कंवर पाल गुर्जर ने 2009 के 24.51 के मुकाबले 2014 में 44.79% वोट लिए और 34 हजार से ज्यादा वोटों की जीत दर्ज की। वे खेती और खनन के काम से जुड़े व्यवसाय करते हैं।
उत्तराखंड से सटे इस सीट पर मुकाबला दो गुर्जर नेताओं के बीच ही रहा। कंवर पाल गुर्जर के अलावा अकरम खान भी मुस्लिम गुर्जर समुदाय से ही हैं। खास बात यह रही कि इस सीट से पिछला विधायक विधानसभा में उपाध्यक्ष था वही नए एमएलए विधानसभा के अध्यक्ष बने।