देश में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद हिमाचल के सिरमौर के राजा लक्ष्मी नारायण ने नारायणगढ़ शहर को बसाया था। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा से लगता है यह इलाका राजनीतिक रुप से हलचल भरा है। अंबाला लोकसभा क्षेत्र की यह इकलौती सीट है जहां जाट मतदाता अच्छा असर रखते हैं। इस सीट पर दबदबा गुज्जर नेताओं का रहा है। हालांकि बीच-बीच में राजपूत, सैणी और पंजाबी विधायक भी यहां से बने हैं। हरियाणा बनने के बाद 2014 से पहले यहां हुए 11 चुनावों में से सात बार गुज्जर विधायक बने। इस बार यहां से भाजपा के नायब सिंह सैणी चुनाव जीते। हालांकि इससे पहले कभी भाजपा उम्मीदवार यहां जीतना तो दूर दूसरे स्थान पर भी नहीं रहा था। बस 1967 में जनसंघ का उम्मीदवार दूसरे नंबर पर आया था। पंजाब केसरी अखबार के संस्थापक और स्वतंत्रता सेनानी लाला जगत नारायण ने भी 1968 में यहां से चुनाव लड़ा था हालांकि वह हार गए थे।
नारायणगढ़ विधानसभा से आज तक रहे विधायकों(MLA) की सूची:
Year |
Winner |
Party |
Votes |
Runner-UP |
Party |
Votes |
1967 |
L. Singh |
INC |
16691 |
R. N. Sarup |
BJS |
8528 |
1968 |
Lal Singh |
INC |
14745 |
Jagat Narain |
BKD |
3585 |
1972 |
Jagjit Singh |
INC |
21818 |
Sadh Ram |
IND |
14556 |
1977 |
Lal Singh |
JNP |
20909 |
Jagjit Singh |
INC |
12482 |
1982 |
Lal Singh |
IND |
18091 |
Jagjit Singh |
INC |
13842 |
1987 |
Jagpal Singh |
IND |
24456 |
Sadhu Ram |
LKD |
12363 |
1991 |
Surjeet Kumar |
BSP |
15407 |
Ashok Kumar |
INC |
10869 |
1996 |
Raj Kumar |
HVP |
22309 |
Man Singh S/O Pirthi Chand |
BSP |
14262 |
2000 |
Pawan Kumar |
INLD |
32092 |
Lal Singh |
INC |
24659 |
2005 |
Ram Kishan |
INC |
40877 |
Pawan Kumar |
INLD |
33114 |
2009 |
Ram Kishan |
INC |
37298 |
Ram Singh |
INLD |
28978 |
2014 |
Nayab Singh |
BJP |
55931 |
Ram Kishan |
INC |
31570 |
भाजपा के उम्मीदवार नायब सैणी के राजनीतिक पृष्ठभूमि पार्टी की जिला इकाई तक ही ज्यादा सीमित थे। हालांकि अंबाला जिले में कई पद संभालने के अलावा भी पार्टी के किसान मोर्चा के प्रदेश महामंत्री भी रह चुके थे। मुख्यमंत्री बने मनोहर लाल खट्टर के सहयोगी रहे नायब सैणी ने 2014 में अपना दूसरा चुनाव लड़ा और विधायक बन गए। सैणी ने करीब 40 फ़ीसदी वोट हासिल किए और 24365 वोटो ( 17% का अंतर) से जीत हासिल की। इससे पहले 2009 में भी सैणी ने भाजपा की ही टिकट पर चुनाव लड़ा था और 7 फ़ीसदी वोट लिए थे। नायब सैणी खेती के अलावा खनन और केबल टीवी के कारोबार से जुड़े रहे हैं।
1996 में विफल निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी राजनीति की शुरुआत करने वाले रामकिशन गुज्जर ने 2005 में कांग्रेस के टिकट पर जीतकर लगातार 10 साल तक यहां अपना दबदबा बनाए रखा। इससे पहले इनके पिता लाल सिंह जी यहां से चार बार 1967, 1968, 1977 और 1982 में विधायक रहे। 2009 में लगातार दूसरी जीत के बाद 2014 में भी उन्होंने कांग्रेस की टिकट हासिल की। लेकिन इस बार जीत नहीं पाए। रामकिशन को नारायणगढ़ सीट पर 33 साल बाद कांग्रेस की वापसी करवाने का श्रेय जाता है। 1972 के बाद से कांग्रेस पार्टी यहां जीत के लिए तरस गई थी जिसे 2005 और 2009 में रामकिशन ने हासिल किया। कांग्रेस विरोधी माहौल के चलते 2014 का चुनाव उनके लिए शुरू से ही मुश्किल था और वे 2009 के 32.14 के मुकाबले 22.46% वोट ही ले पाए।
इनेलो यहां पिछले दो चुनावों में दूसरे स्थान पर रही थी और उससे पहले 2000 में जीती थी। लेकिन कुछ बदलावों की वजह से 2014 में पार्टी चौथे स्थान पर चली गई। 2009 के उम्मीदवार राम सिंह कोडवा की टिकट काट दी और जगमाल सिंह को उम्मीदवार बनाया। जगमाल सिंह का यह पहला चुनाव था और पार्टी के अंदरूनी टकराव की वजह से उनका प्रचार उठने की बजाय ढीला पडता चला गया। 2000, 2005, 2009 में इनेलो के 38, 35 और 25 फ़ीसदी वोट आए थे जो 2014 में गिरकर 12% रह गए। दूसरी ओर जिन राम सिंह कोडवा की टिकट इनेलो ने काटी थी, वे बहुजन समाज पार्टी की टिकट ले आए और लगभग 22 फ़ीसदी वोट ले गए। बसपा को 2009 में यहां 13% वोट मिले थे।
नारायणगढ़ का चुनाव बहुत सी अन्य सीटों की तरह मोदी लहर में बहने वाला चुनाव था। यहां भाजपा की टिकट पर उतरे नायब सिंह को लोगों ने 40 फ़ीसदी वोट देकर विधायक बनाया। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा को सिर्फ 7 फ़ीसदी वोट मिले थे।