काचर के बीज : सामाजिक मुहावरा बना हरियाणा में राजनीतिक मुहावरा
सोशल मीडिया के अनुसार ये शब्द ओमप्रकाश चौटाला ने दुष्यंत समर्थकों के लिए इस्तेमाल किया है।
4 दिसंबर 2018
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नया हरियाणा
काचर के बीज शब्द पहली बार हरियाणा में सोशल मीडिया पर पढ़ने को मिला तो इसका मूल अर्थ समझ ही नहीं आया. हुआ यूं था कि हरियाणा के राजनीतिक दल इनेलो ने गोहाना में ताऊ देवीलाल सम्मान दिवस रैली का आयोजन किया था. जिसमें इनेलो सुप्रीमो के मंच पर बोलते वक्त उनके बेटे बड़े युवा सांसद दुष्यंत चौटाला के समर्थकों ने हुटिंग कर दी थी. हरियाणा की राजनीति में यह पहला मौका था जब ओमप्रकाश चौटाला के बोलते वक्त हुटिंग हुई हो. ओमप्रकाश चौटाला के दो बेटे हैं- बड़े हैं अजय चौटाला व छोटे अभय चौटाला. अजय चौटाला और ओमप्रकाश चौटाला दोनों बाप-बेटे 10-10 साल की सजा काट रहे हैं. जेबीटी भर्ती घोटाले में. खैर. अजय चौटाला और उनके दोनों बेटों व समर्थकों ने पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी. इन बगावती समर्थकों को लेकर एक खबर सोशल मीडिया पर फैली की ओमप्रकाश चौटाला ने किसी वार्तालाप में इनके लिए एक मुहावरा इस्तेमाल किया वो था- काचर के बीज.
यही से ये मुहावरा सामाजिक से राजनीतिक मुहावरा बन गया और फेसबुक पर दुष्यंत समर्थकों ने खुद के नाम के आगे या पीछे काचर शब्द लिखना शुरू कर दिया. आइए जानते हैं इसके सामाजिक व राजनीतिक निहितार्थ।
काचर, एक ऐसा शब्द जो राजस्थान के थार में और हरियाणा के बागड़ी क्षेत्र(फतेहाबाद, सिरसा आदि) इस्तेमाल होता है. काचर, एक ऐसा फल (या सब्जी) जो कहीं-कहीं बारह महीने तो कहीं-कहीं छह महीने थाली को चटपटा बनाए रखता है. कचरी की चटनी तो लगभग पूरे हरियाणा में ही प्रसिद्ध है।
इसको लेकर दो मुहावरे हैं- काचर गा बीज और अठे कै काचर ल्ये (काचर का बीज/ यहां क्या काचर ले रहा है.) काचर अपने तीखी खटास या अम्ल के लिए भी जाना जाता है. काचर के एक छोटे से बीज को अगर एक मण (40 किलो लगभग) दूध में डाल दें तो वह पूरे दूध को फाड़ देगा. खराब कर देगा. यहीं से ‘काचर का बीज’ मुआवरा निकलता है यानी कुचमादी, गुड़ गोबर करने वाला, अच्छे भले काम को बिगाड़ने वाला. बस यही से इसका राजनीतिक अर्थ निकलना शुरू हो गया। ओमप्रकाश चौटाला आम बातचीत में बागड़ी भाषा का बखूबी इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने दुष्यंत समर्थकों के लिए इन्हीं अर्थों में काचर के बीज शब्द का इस्तेमाल किया है।
इसी तरह ‘यहां क्या काचर ले रहा है’ मतलब यहां क्या भाड़ झोंक रहा है, जाकर अपना काम क्यों नहीं करते?