चौ. मित्रसेन आर्य की जयंती पर हिसार में होगा ‘भजन संध्या’ का आयोजन
जीवन पर्यंत आदर्श पर चलने और समाज को एक दृष्टि व दिशा देने वाले चौधरी मित्रसेन राजनैतिक रूप से आज भले ही हमारे बीच नहीं रहे हों, लेकिन उनके विचार, कार्य और उनकी दृष्टि हमें युगों-युगों तक आलोकित करते रहेंगे।
12 दिसंबर 2017
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नया हरियाणा
परममित्र मानव निर्माण संस्थान के संस्थापक वैदिक पथ के पथिक स्व. चौधरी मित्रसेन आर्य की 86वीं जयंती शुक्रवार को इंडस पब्लिक स्कूल, हिसार में शाम चार बजे से मनाई जाएगी। इस भजन संध्या कार्यक्रम में सुविख्यात भजन गायक कुमार विशु प्रस्तुति देंगे। मुख्यातिथि गो भक्त एवं प्रमुख समाजसेवी नंद किशोर गोयंका रहेंगे। कार्यक्रम में कैप्टन अभिमन्यु सहित समस्त सिंधु परिवार सदस्य, मित्र और दूरदराज से लोग शिरकत करेंगे। चौ. मित्रसेन आर्य का जन्म 15 दिसंबर 1931 को हुआ था और वे 27 जनवरी 2011 को ब्रह्मलीन हो गए।
चौ. मित्रसेन जी सच्चे आर्यसमाजी थे। सरलता, सहजता और निष्कपट व्यवहार से सभी का मन जीत लेने वाले मित्रसेन जी सरस्वती और लक्ष्मी दोनों के उपासक थे। यदि कहा जाए कि वे आर्य समाज के भामाशाह थे तो अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा। मात्र 18 वर्ष की आयु में वे 1949 में रोहतक शहर के झज्जर रोड़ स्थित आर्य समाज और 1951 में गुरुकुल झज्जर के अजीवन सदस्य बन गए थे। गुरुकुलों, गोशालाओं, कन्या गुरुकुलों, आर्यसमाजों, आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा हरियाणा, पंजाब, उड़ीसा, परोपकारी सभा अजमेर और वैदिक विद्वजनों, संन्यासियों व गरीबों के लिए आर्थिक सहायता करने के लिए वे हमेशा तत्पर रहते थे। जनसेवा की निहितार्थ उन्होंने परम मित्र मानव निर्माण संस्थान की भी स्थापना की थी। इसके जरिए वे जरूरतमंदों की तो मदद कर ही रहे थे, विलुप्त हो रहे लोक साहित्य को प्रकाशित कर बहुत बड़ा काम भी कर रहे थे। गौ सेवा को वे सबसे बड़ी सेवा मानते थे। वे हर वनस्पति, प्राणी व जन्तु में जीवन मानते थे, इसीलिए उन्होंने उड़ीसा में देवी मेले पर गाय की दी जाने वाली बलि को रुकवाया।
ईश्वर में उनका अटूट विश्वास था लेकिन वे भाग्यवादी नहीं थे। उन्होंने कहा कि आलसी व्यक्ति ईश्वरीय सत्ता का तो तिरस्कार करता ही है, अपने अमूल्य जीवन को भी गंवाता है। उनका मानना था कि अच्छे कर्मों से भाग्य को बदला जा सकता है। उन्होंने स्वयं इसका उदाहरण प्रस्तुत किया। सुबह चार बजे उठना। रात 10 बजे तक सो जाना। सुबह शाम सन्ध्या करना और नित रूप से यज्ञशाला में हवन करना उनकी और उनके परिवार की दिनचर्या में शामिल हो गया। वे कहते थे कि हमारी अर्थ व्यवस्था का मूल आधार हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थ बनें। हमारे वेद अपने आप में विज्ञान हैं। नूतन भारत के निर्माण में गीता, वेद, उपनिषदों का आकंलन हो। इन ग्रन्थों में राजतन्त्र, अर्थ तन्त्र, शिक्षा, मुद्रा, युद्धनीति, विदेश नीति सहित सभी प्रकार की नीतियों के बारे में स्पष्ट उल्लेख है। अगर हम इन ग्रन्थों के मूल दर्शन को समझ पाए और अपना पाए तो वह दिन दूर नही जब एक बार पुन: भारत दुनिया का सिरमोर देश बनेगा।