शॉपिंग कहने को तो बहुत छोटा-सा शब्द है, लेकिन इसका दायरा असीमित है. शॉपिंग लोगों के लिए अब हॉबी बनता जा रहा है. खासतौर पर फेस्टिवल के दौरान यह हॉबी लोगों के दिलो दिमाग पर फोबिया का रूप ले लेती है. किसी मॉल या मार्केट में शॉपिंग से पुरुष 30 मिनट में ही बोर हो जाते हैं. इसके उलट महिलाएं आराम से दो घंटे तक शॉपिंग कर सकती हैं. इस तरह के नतीजे देश-विदेश में हुई कई तरह की रिसर्च में सामने आ चुके हैं. हालांकि इसके पीछे तर्क अलग-अलग दिए जाते हैं.
शॉपिंग फोबिया से अक्सर महिलाएं ज्यादा ग्रस्त मिलती हैं. इसके पीछे क्या सामाजिक व मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं, इनका अध्ययन करने की आवश्यकता है.पहले के मुकाबले महिलाएं शॉपिंग के मामले में अब ज्यादा पावरफुल हुई हैं. कामकाजी महिलाएं अब पति की कमाई पर डिपेंड नहीं हैं. पॉकेट में मनी के चलते वह जब चाहे तब शॉपिंग के लिए निकल पड़ती हैं. एक रिसर्च यह भी बताती है कि महिलाओं को घर का भी ध्यान होता है साथ ही वह घर के प्रत्येक सदस्य का ध्यान रखती हैं. इनके अलावा ऐसी कई महिलाएं हैं जो माइंड रिफ्रेशिंग के लिए शॉपिंग करती हैं. थोड़ी देर की शॉपिंग उन्हें खुश कर देती है. इसमें टेक्नालॉजी ने इस उत्साह को दोगुना कर दिया.
कई तरह की ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट मनभावन ऑफर्स देकर लोगों को अट्रैक्ट कर रही है. बिना भीड़ वाले इलाके में गए बिना ही आप शानदार शॉपिंग कर सकते हैं.
क्या है शॉपिंग का मनोविज्ञान
1 नेसेसिटी: जरूरतों का सामान खरीदना, शॉपिंग का सबसे अहम मनोविज्ञान है. फेस्टिवल टाइम में यह जरूरतें बढ़ जाती हैं.
2 टेंशन रिलीज: शॉपिंग व्यक्ति की टेंशन को कम करती है. व्यक्ति के अंदर फीलगुड हार्मोन्स एक्टिव होते हैं, जो उन्हें खुशी देते हैं.
3 रिलेक्सेशन: पसंदीदा सामान खरीदने के बाद रिलेसेक्शन मिलता है. पसंद की चीजें आंतरिक सुख का अहसास देती है.
4 शो ऑफ: अधिक शॉपिंग करने का दिखावा. सोसायटी में शॉपिंग स्टेटस सिम्बल भी है. एक-दूसरे की देखा-देखी.
5 अट्रैक्टिव ऑफर्स: अट्रैक्टिव ऑफर्स भी लोगों को काफी लुभाते हैं. इसके कारण वह शॉपिंग करने के लिए आकर्षित होते हैं.
6 शॉपिंग साइट्स: शॉपिंग वेबसाइट्स पर लुभावने आॅफर्स अ.र आसान शॉपिंग के कारण लोग अट्रैक्ट होते हैं.
7 अट्रेक्टिव कलर: कलर डिजाइन पैकिंग ग्राहकों को आकर्षित करती है.
अमेरिका की एक शॉपिंग बेवसाइट स्वैप डॉट कॉम ने यूरोप और एशिया के देशों के 2000 लोगों की खरीदारी की आदतों पर अध्ययन किया. नतीजा निकला कि-दुनिया भर के लोग सिर्फ अपना मूड सही करने के लिए शॉपिंग पर जमकर पैसा और समय खर्च करते हैं. शोध में शामिल सभी लोगों का इस तरह की इमोशनल शॉपिंग पर औसत खर्च 1.06लाख रुपए निकला.
स्टडी में ये भी पता चला है कि मूड ठीक करने के लिए लोग साल में 65 घंटे ऑनलाइन शॉपिंग, तो 90 घंटे स्टोर में जाकर शॉपिंग करते हैं. ऐसी इमोशनल शॉपिंग करते हुए ग्राहक साल में 18 आइटम तक खरीद डालते हैं. साल भर में दुनिया भर में जितनी भी शॉपिंग होती है, उसमें से 22% ऐसी ही इमोशनल शॉपिंग की श्रेणी में आती है. बोरियत और तनाव कम करने के लिए शॉपिंग का सहारा लेने की इस प्रवित्ति को रिटेल थेरेपी का नाम दिया गया है.
ये स्टडी इस मायने में भी अहम् है, क्योंकि इमोशनल शॉपिंग की इसी आदत पर शोध के लिए इस साल रिचर्ड थालेर को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
अच्छा महसूस करने के लिए कीजाने वाली शॉपिंग को रिटेल थेरे पी नाम दिया गया है.
डिप्रेशन, वर्क प्रेशर कम करने के लिए रिटेल थेरेपी का सहारा-
44% लोग डिप्रेशन दूर करने के लिए रिटेल थेरे पी का सहारा लेते हैं
43% लोग अपनी बोरियत को दूर करने के लिए खरीदारी करते हैं
27% लोग काम का तनाव कम करने के लिए जमकर शॉपिंग करते हैं.
23% लोग साथी से लड़ाई होने के बाद रिटेल थेरेपी का सहारा लेते हैं
थालेर की शोध में भी यही परिणाम निकले थे कि लोग जब अपनी भावनाओं के चरम पर होते हैं, तो उनमें धन खर्च करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है. थालेर के रिसर्च पर ही आधारित इस नए अध्ययन में शामिल 70% लोगों ने स्वीकार किया कि जब उन्होंने मूड खराब होने पर शॉपिंग का सहारा लिया, तो उनका मूड वाकई में अच्छा हो गया. 13% लोगों ने तो ये भी स्वीकार किया कि वो रोज काम के बाद अपनी थकान उतारने के लिए शॉपिंग बेवसाइट पर समय बिताते हैं. 52% लोगों ने कहा कि वो मूड सही करने के लिए कम से कम एक बार तो रिटेल थेरेपी का सहारा ले ही चुके हैं. रिटेल थेरेपी लेने के बाद औसतन 5 घंटे 45 मिनट तक लोगों का मूड अच्छा बना रहता है. हालांकि 40% लोगों ने यह भी स्वीकार किया है कि इमोशनल होकर वो शॉपिंग कर लेते हैं, लेकिन पैसा खर्च करने के बाद पछताते भी हैं.
(सोशल मीडिया पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर)
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