दीनबंधु छोटूराम की प्रतिमा दूध से धोने वाले छूआछूत के विचार को तंवर का समर्थन
आधुनिक युग में इस तरह के भेदभाव भरे विचारों को समर्थन देना समाज के वैमनस्य को बढ़ावा देते हैं.
11 अक्टूबर 2018
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नया हरियाणा
हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने गढ़ी सांपला में दीनबंधु सर छोटूराम की प्रतिमा को दूध से धोने के बयान का समर्थन किया है. तंवर ने कहा कि जिनके हाथ खून से रंगे हुए है, उन्हें ऐसे महान पुरुषों की प्रतिमा का अनावरण करने का अधिकार नहीं है.
गैरतलब है कि कुछ किसान संगठनों ने प्रतिमा को दूध से धोने की बात कही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को इस प्रतिमा का अनावरण किया था.
हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर दलित परिवार में जन्मे होने के बावजूद छुआछूत जैसी रूढ़िवादी सोच को बढ़ावा दे रहे हैं. उनका बयान उनकी राजनीतिक समझ पर सवाल खड़ा करता है. आखिर कैसे वो एक ऐसे काम को बढ़ावा दे रहे हैं, जिन कामों की वजह से समाज में जाति आधारित भेदभाव की शुरूवात हुई. जिसका दंश भारतीय समाज आजतक भोग रहा है. दूसरी तरफ किसान नेताओं के इस तरह के बयान उनकी समझ पर सवाल उठाते हैं.
राजनीति में मतभेद जायज हैं परंतु उनका स्तर छुआछूत के स्तर का नहीं होना चाहिए. आधुनिक युग में इस तरह के भेदभाव भरे विचारों को समर्थन देना समाज के वैमनस्य को बढ़ावा देते हैं. कहीं न कहीं यह उन लोगों के संकीर्ण विचारों को बढ़ावा देना है जिनके अनुसार जाति आधारित भेदभाव सही है. और इसी में अगला कदम बढ़ाते हुए वो छूने से मना करते हैं. अस्पृश्यता के खिलाफ भारत में सख्त कानून है, फिर भी राजनीति में इसका इस्तेमाल लोकतंत्र की हत्या करता है.
पत्रकार ऋषि पांडे फेसबुक पर लिखते हैं कि 70 के दशक में जगजीवन राम देश के रेल मंत्री थे। बनारस में डॉ. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में उन्होंने डॉ. संपूर्णानंद की मूर्ति का अनावरण किया । जगजीवन राम जो कि जाति से दलित थे, ने दिल्ली की ट्रेन अभी पकड़ी भी नहीं थी कि बनारस के ब्रम्भनों ने दूध और गंगा जल से मूर्ति को धोया और अभिषेक किया।
40 साल बाद हरियाणा में भी नव-सामन्तों और नव ब्रम्भनों ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सर छोटूराम की मूर्ति के अनावरण के बाद मूर्ति के अपवित्र होने का स्वांग रचा है। अब मूर्ति को दूध से धोने की घोषणा की है।
ये नव-सामन्त(neofeudals) कई मामलों में ब्रम्भनों से भी घोर जातिवादी और बददिमाग नफरत से प्रेरित लोग हैं। किसानों के नाम पर विशेष जातिवाद का चोला ओढ़कर बैठे हैं। जहां तक किसनों का सवाल है कोई तार्किक बात करने को तैयार नहीं। सिर्फ जातीय वर्चस्व की चेष्टा और विध्वंश की राजनीति। नफरत से भरी क़ौमें खुद का ही कितना नुकसान करती हैं, इतिहास उठाकर देख लो। मूर्ति धोने से तुम्हारा कल्याण नहीं होने वाला।