यूपी में अभी निकाय चुनाव हुए हैं जिसमें भाजपा ने फिर से अपना बहुत अच्छा प्रदर्शन दोहराया हैं, विपक्षी पार्टियों की करारी हार हुई हैं। अब इस करारी हार के बाद होना यह चाहिए कि विरोधी पार्टियों को आत्ममंथन शुरू करना चाहिए कि वो आखिर जनता का मूड भांपने में कहाँ असफल रहे, उनसे क्या क्या गलतियां हुई? इसे आने वाले इलेक्शन में कैसे सुधारा जाए ताकि वो एक बार फिर जनता का भरोसा जीत सकें, लेकिन यह करने के बजाय विपक्षी पार्टियां यह बताने में व्यस्त हैं कि हम इसलिए हारे की दूसरे खिलाड़ी ने बेईमानी की हैं, जनमानस में भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
यह भ्रम की स्थिति विजेता पार्टी बीजेपी चाहे तो मिनटों में खत्म कर सकती हैं, क्योंकि दोनो पक्ष जानते हैं कि चुनावी प्रक्रिया बहुत ही पारदर्शी हैं और सभी राजनैतिक दल के चुने हुए कुछ कार्यकर्ता अपनी पार्टी की तरफ से बूथ प्रतिनिधि बनकर सरकारी पोलिंग अफसर के साथ वोटिंग के हर चरण में मौजूद रहते हैं। बस यही चुनावी प्रक्रिया जनता को प्रेस कांफ्रेंस करके समझा दिया जाए तो EVM हैकिंग जैसे झूठ तुरन्त खत्म हो जाये .. लेकिन ऐसा जीती हुई पार्टी के लोग भी नहीं करना चाहते क्योंकि कि जब कभी वो हारेंगे तो उनके लिए भी यही सटीक बहाना रहेगा।
सबसे पहले भारत मे 1998 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का प्रयोग हुआ था, मजे की बात यह हैं कि आमतौर पर किसी नई चीज के आने के बाद संशय की स्थिति बनती हैं पर 2004 से 2014 तक छिटपुट विरोध को छोड़ दे तो किसी भी पार्टी या नेता ने किसी भी चुनाव में EVM के साथ छेड़छाड़ का मुद्दा नही उठाया था। मजे की बात देखिये की पहले जो बीजेपी के नेता EVM से छेड़छाड़ का मुद्दा उठाते थे आज इसी EVM की वोटिंग से कई राज्यो में चुनाव जीत रहे हैं और आज जो चिल्ला रहे हैं वो भी इसी EVM से पहले जीत कर सत्तासुख ले चुके हैं, कांग्रेस से मनमोहन सिंह दो बार प्रधान मंत्री बने, केजरीवाल, मायावती, अखिलेश यादव भी मुख्यमंत्री इसी EVM पर वोटिंग से बन चुके हैं और आज उसी EVM से हारने के बाद उस पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे है।
2009 के चुनावों में भाजपा की करारी हार के बाद भाजपा ने भी EVM पर सवाल खड़े किए थे किंतु तब यही सारे राजनैतिक दल साथ नही आये थे तथा भाजपा को भी चुनाव आयोग की दलीलें सही लगी थी अतः भाजपा ने यह बात आगे नही बढ़ाई थी।
अब हम अपने पोस्ट के माध्यम से EVM से जुड़ी तमाम शंकाओं को दूर करेंगे और आप सबसे प्रार्थना भी करेंगे कि पोस्ट का लिंक सभी लोगो के साथ शेयर करके इस सच्चाई से सभी लोगो को अवगत कराये।
चुनाव प्रक्रिया
चुनाव आयोग ने प्रत्येक प्रत्याशी के लिए पोलिंग एजेंट का प्रावधान किया है। जो प्रत्याशी का खुद का चुना व्यक्ति होता है, और उससे अपेक्षा की जाती है कि प्रेसाइडिंग अफसर के सहयोग से वह पूरी सुगमता व बिना त्रुटि के मतदान सुनिश्चित करवाये। ये ज़बानी नही होता , हर कदम पर कागज़ होते हैं। पहले पढ़िए इस तस्वीर में की पोलिंग एजेंट की ज़िम्मेदारी क्या होती है।

चार बिंदु अपने में विस्तृत हैं और पोलिंग एजेंट यदि कोई गड़बड़ी देखे तो किसी समय भी अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है। हर राजनीतिक दल के पोलिंग एजेंट से अपेक्षा की जाती है कि वे पोलिंग एजेंट हैंडबुक को ध्यान से पढ़ें व चुनाव आयोग के हर प्रशिक्षण में उपस्थित रहें व मॉक पोल में भाग लें।

चुनाव आयोग ने इसका भी पूरा ख्याल रखा है कि चुनाव हारने के बाद कोई उनपर उंगली न उठाए। ये वाला फॉरमैट सुबह पोलिंग शुरू होने से पहले भरते हैं। मशीन चेक कर के और इस पर पार्टी के अधिकृत पोलिंग एजेंट हस्ताक्षर करते हैं।

अगर आप ध्यान से देखें तो पायेंगे कि अगर किसी पोलिंग एजेंट को गड़बड़ लगती है तो वो इस फॉरमेट को साइन करने से मना भी कर सकता है। लेकिन अगर साइन किया तो इसका मतलब सब ठीक है।
मतदान के दौरान का किसी और कारण से यदि वोटिंग मशीन बदली जाती है तो उसका उल्लेख भी होता है और इसको भी जांच कर पोलिंग एजेंट सहमति देकर साइन करते हैं। आपत्ति होने पर हस्ताक्षर करने से मना भी कर सकते हैं।

जो मॉक पोल करवाया जाता है उसका ये सर्टिफिकेट है, इसे भी प्रेसाइडिंग अफसर व पोलिंग एजेंट साइन करते हैं। सब कुछ ध्यान से जांच कर लेने के बाद, जब पोलिंग हो जाती है तो इसमें भी सभी के हस्ताक्षर लिए जाते हैं और किसी प्रकार की भी आपात्ति दर्ज कराई जा सकती है।

इसके बाद कड़ी सुरक्षा में इन मशीन को स्ट्रांग रूम में ले जा कर रखा जाता है जिसके ताले पर राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि भी सील लगा सकते हैं। यहां भी कोई आपत्ति होने पर बता सकते हैं।

वोटों की गिनती तक कड़ी सुरक्षा व निगरानी में EVM को रखा जाता है, उम्मीद हैं इतने सबूतों के बाद आपको चुनाव प्रक्रिया अच्छे से समझ आ गयी होगी और हाँ हर राजनैतिक दल को हर समय पूरी स्वतंत्रता होती है किसी प्रकार की भी आपत्ति दर्ज कराने की। अब इतनी सारी प्रक्रियाओं में कोई भी पार्टी अगर चूँ तक न करे, कुछ भी न कहे और जब नतीजे अपने विरुद्ध आएँ तो EVM को दोष दे तो इसको क्या कहेंगे। विशेषकर कोई ऐसी पार्टी ऐसा कहे जो 70 साल सत्ता में थी तो और अज़ीब लगता है।
अब कुछ बात उत्तरप्रदेश निकाय चुनावों की, क्योकि इसके परिणामो को लेकर बहुत गलतफहमी खड़ी की जा रही हैं, सबसे पहले यह आंकड़ा देखिये।
पीले में दर्शाए गए है नगर निगम जहाँ EVM से वोटिंग हुई और नीले में पंचायत चुनाव जहाँ बैलट से मतदान हुआ और लाल में दर्शाया गया है EVM से मत पत्र में जीत का गिरा हुआ %, मतलब जहाँ बीजेपी का जीत का प्रतिशत 46 से गिरकर 15 हो रहा मतलब करीब 66 % की गिरावट वहीं कांग्रेस का जीत का प्रतिशत 8 से 2 पर आ रहा मतलब 67 % गिरावट, उसी प्रकार सपा और बसपा का 39 % और 57 % घट रहा है। पर EVM पर सवाल उठाने वाले सभी नेता सिर्फ बीजेपी के गिरते प्रतिशत की बात कर रहे है।
दूसरी सबसे बड़ी बात, उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों को सपा बसपा या कांग्रेस किसी भी पार्टी ने सीरियस नही लिया और ना ही चुनाव प्रचार किया जबकि भाजपा से उनके मंत्री और स्वयं मुख्यमंत्री तक चुनाव प्रचार के मैदान में थे। अब आप मेहनत नही करोगे और दोष मशीन को दोगे तो कैसे चलेगा।
खैर अब सवाल यह उठता है कि जब सबका जीत का प्रतिशत गिर रहा है तो आखिर बढ़ किस का रहा है? तो इसका सीधा सा जवाब है जहां शहर में पार्टी के उम्मीदवार जीते वहीं गांव देहात कस्बो में निर्दलीय ज्यादा जीते हैं और उन्ही का वोटिंग शेयर बढ़ रहा हैं।
125 करोड़ का देश, जिसमे 82 करोड़ वोटर, एक लोक सभा, 29 राज्यो के विधानसभा, और हज़ारों नगर निकाय चुनाव करवाना कोई हँसी खेल नहीं होता। भारतीय चुनाव आयोग की साख पूरी दुनिया में है, आये दिन दुनिया के कई मुल्क चुनाव आयोग के अधिकारियों को अपने देश में चुनाव सुधार को लेकर सेमिनार में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित करते है। लीबिया ,नामीबिया ब्राज़ील जैसे देशों ने चुनाव आयोग से बकायदा MOU कर रखा हैं अपने देश मे चुनाव करवाने को लेकर, चुनाव आयोग स्वयं भी समय समय पर सेमिनार आयोजित कर दुनिया भर के मुल्कों को चुनाव सुधार से जुड़ी जानकारियों से अवगत कराता रहा हैं। दुनिया के अग्रणी देश रूस ने तो यहां तक ऐलान कर दिया कि उनके देश मे 2018 के राष्ट्रपति चुनाव में भारत मे निर्मित EVM का प्रयोग किया जाएगा।
पूरे विश्व मे जिस चुनाव आयोग की साख हैं, उस पर अपने देश के ही राजनैतिक दलों द्वारा हमले किया जाना चुनाव आयोग पर प्रश्नचिन्ह तो खड़ा करता ही हैं और देश की छवि भी धूमिल होती हैं, खैर इस तरह की अफवाहों को जवाब देने के लिए चुनाव आयोग ने ये फैसला किया कि वो EVM हैकिंग का ओपन चेलेंज आयोजित करेंगे।
Hackathon के नाम से आयोजित चेलेंज में देश भर के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों को चुनाव आयोग की EVM हैक करने के लिये ओपन चेलेंज दिया गया और 10 दिन का समय दिया गया राजनैतिक दलों के विशेषज्ञ को हैक करने के लिए, लेकिन जो राजनैतिक दल हो हल्ला मचा रहे थे उनमें से एक ने भी ये चैलेंज स्वीकार नही किया।
इस मुद्द्दे पर सबसे ज्यादा मुखर रहने वाले नेता है अरविंद केजरीवाल, उनकी आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज दिल्ली विधान सभा मे EVM से मिलता जुलता उपकरण amazon से खरीद कर ले आए जिसको वो EVM बता कर पेंचकस से खोल कर उसकी मदरबोर्ड बदल कर हैकिंग करने का तमाशा कर के जनता को बेवकूफ बनाने का प्रयास कर रहे थे। सवाल यह उठता हैं की दिल्ली विधानसभा क्यों, चुनाव आयोग के दफ्तर क्यों नहीं? अपनी मशीन क्यों ,चुनाव आयोग का EVM हैक क्यों नहीं किया?
बच्चा बच्चा जानता है कि हैकिंग सॉफ्टवेयर के साथ किया जाने वाला करतब है न ही हार्डवेयर के साथ ,EVM एक कैलकुलेटर की तरह मशीन है .जो किसी भी नेटवर्क से नहीं जुड़ी हुई होती, कहने का तात्पर्य अगर आपको चुनाव प्रभावित करना है तो आपको एक एक EVM की मदर बोर्ड की प्रोग्रामिंग को बदलना पड़ेगा।
चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सबसे बड़ा संदेह तब उत्पन्न हो जाता है, जब उम्मीदवार स्वयं आ कर बोलने लगता है कि उसको 0 वोट मिले। ऐसा ही एक दावा निर्दलीय प्रत्याशी शबाना ने किया जिसको राजनेताओं ने प्रोपगंडा फैलाने के लिए हाथोहाथ लिया पर उस दावे की पोल राज्य चुनाव आयोग की वेबसाइट के आंकड़ो से 2 मिनट में खुल जाती है, महिला को 87 वोट मिले थे जिसे आप यहाँ नीचे चुनाव आयोग की वेबसाइट के स्क्रीन शॉट में देख सकते हैं।
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अंतः में हम यही कहेंगे की हारे हुए प्रत्याशियों और पार्टियों की खीज और गुस्से में लगाये गये आरोपो के बहकावे में न आये, चरणबद्ध और फूल प्रूफ तरीके से भारतीय चुनाव आयोग यह चुनाव सम्पन्न कराता है जिसमे गलती की गुंजाइश शुन्य के बराबर होती है। अरविंद केजरीवाल जैसे लोग देश की हर संस्था को कमजोर करना चाहते है सवालिया निशान लगा कर, सर्जिकल स्ट्राइक हुआ सेना पर सवाल उठा दिया, नोटबन्दी हुई तो रिज़र्व बैंक पे उंगली उठा दी और अब तो संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा कर रहे थे, पर hackthon chalange में मुँह दिखाने भी नहीं आये उनके लिए तो देश की हर संस्था हर इंसान पक्षपाती हैं जो उनके मतमुताबिक परिणाम ना दें।
(पोस्ट लिखने में चुनाव प्रक्रिया सम्बंधित शोध श्री शैलेश पांडेय जी का हैं, उनका आभार)
साभार-http://epostmortem.blogspot.in