गुजरात में पाटीदार-पटेल समाज भाजपा की हार का कारण बन सकता है!
आखिर क्या कारण हैं कि भाजपा सरकार पटेल और जाट समाज को अपने साथ जोड़कर रखने में असफल हो रहे हैं? जबकि दोनों समुदायों की अपने-अपने राज्य में काफी बड़ी संख्या है. हरियाणा का राजनीतिक भविष्य किस तरफ जाएगा, यह अप्रत्यक्ष तौर पर गुजरात चुनाव के परिणामों पर भी टिका हुआ है.
7 दिसंबर 2017
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नया हरियाणा
क्या गुजरात में पाटीदार-पटेल समाज भाजपा की हार का कारण बन सकता है? यदि ऐसा हुआ तो ऐसा ही खतरा हरियाणा में जाट समाज भाजपा के सामने खड़ा कर सकता है. आखिर क्या कारण हैं कि भाजपा सरकार पटेल और जाट समाज को अपने साथ जोड़कर रखने में असफल हो रहे हैं? जबकि दोनों समुदायों की अपने-अपने राज्य में काफी बड़ी संख्या है. हरियाणा का राजनीतिक भविष्य किस तरफ जाएगा, यह अप्रत्यक्ष तौर पर गुजरात चुनाव के परिणामों पर भी टिका हुआ है.
गुजरात में तकरीबन 4 करोड़ 35 लाख मतदाताओं में 1 करोड़ से ज़्यादा मतदाता पटेल पाटीदार बिरादरी से हैं जो कि किसी राज्य के जाति या वर्ण आधारित मतदाताओं की 22-23% संख्या हुई. हालांकि, गुजरात में पाटीदार-पटेल समुदाय दो वर्णों में बंटा हुआ है. कड़वा पाटीदार पटेल और लेउवा पाटीदार पटेल.
हार्दिक पटेल खुद कड़वा पटेल हैं और हाल के गुजरात के शासन में सत्तारुढ़ पटेल-पाटीदार नेताओं में कड़वा पटेल नेताओं की संख्या ज़्यादा है. पाटीदार-पटेल भले ही दो वर्णों में हों, पर उनका मूल व्यवसाय और उनकी आर्थिक आय, खेती, पशुपालन और डेरी सहकारी क्षेत्र पर आधारित है.
लेउवा पटेल ज़्यादातर सौराष्ट्र-कच्छ इलाके (गुजरात के पश्चिम तटीय क्षेत्र का इलाका) के राजकोट, जामनगर, भावनगर, अमरेली, जूनागढ़, पोरबंदर, सुरेंद्रनगर, कच्छ ज़िलों में ज़्यादातर पाए जाते हैं.जबकि कड़वा पटेल समुदाय के लोग उत्तर गुजरात के मेहसाणा, अहमदाबाद, कड़ी-कलोल, विसनगर इलाके में पाए जाते हैं.कड़वा पाटीदार की कुलदेवी उमिया माता हैं जबकि लेउवा पटेलों की कुलदेवी खोडियार माता हैं.कड़वा पाटीदारों का सबसे बड़ा धार्मिक संस्थान उत्तर गुजरात के उंझा गांव में मां उमिया संस्थान के नाम से प्रचलित है.जबकि लेउवा पाटीदारों का सबसे बड़ा धार्मिक संस्थान सौराष्ट्र के कागवड गांव में मां खोडलधाम के नाम से प्रचलित है.
ऐसे में अगर ये 1 करोड़ से ज़्यादा मतदाताओं का अनुपात कड़वा और लेउवा पाटीदार के रूप में देखें तो कड़वा पटेल 60% और लेउवा पटेल 40% हैं.
गुजरात राज्य के इतिहास में 1960 (जब से बॉम्बे सूबे से अलग गुजरात राज्य की स्थापना हुई) से लेकर अब तक सात बार पटेल नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुके हैं.गुजरात राज्य के 57 साल के राज में 16 मुख्यमंत्री बदल चुके हैं और उसमें सात बार पटेल मुख्यमंत्री गुजरात की गद्दी पर बैठे हैं. हालांकि, इसमें गुजरात राज्य की सबसे पहली पटेल महिला मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल का भी नाम शामिल है.