जींद उपचुनाव में भाजपा ने दांवपेंच के साथ फूंका विकास का मंत्र
जींद उपचुनाव में सभी दल अपना पूरा दमखम लगाने के लिए रणभूमि में उतर चुके हैं.
19 सितंबर 2018
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नया हरियाणा
दिखने लगा है कि इस बार 2019 के समर से पहले सूबे में बांगर का रण सियासी दलों की दशा और दिशा तय करेगा। उप चुनावों की रणभेरी बजने वाली है। और चक्रव्यू रचे जाने लगे हैं। पहला दांव फेंक दिया गया है। मॉनसून सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ने सदन में जींद हलके के लिए बारिश कर दी। यहां से पूर्व विधायक स्वर्गीय हरिचंद मिड्ढा के सभी सवालों को तरजीह देते हुए सीएम ने सभी मांगें पूरी करने की घोषणा कर बताया दिया कि इस बार जंग केडी होने जा रही है।
जब जंग विधानसभा की हो और मॉनसून सत्र चल रहा हो तो वो घोषणाओं की बारिश होनी तय ही थी ना। 2019 के सेमीफाइनल की तैयारियां बीजेपी ने किस तरीके से शुरू कर दी है ये सीएम सहाब ने जींद की खाली हुई सीट के लिए घोषणाएं कर बता दिया। मतलब बांगर का रण इस बार कैड़ा होने जा रहा है। बता दें कि जींद से इनेलो विधायक हरिचंद मीढ़ा के निधन के बाद खाली हुई इस विधानसभा सीट पर उप चुनावों भी होने हैं। और बीजेपी को लगता है कि मुख्यमंत्री का ये पासा उनकी पौ बारह करवा सकता है।
देखिए सहाब ये राजनीति है यहां कोई भी मौका गंवाने के लिए नहीं होता....विधानसभा का सत्र था...सदन के भीतर बैठी बीजेपी की आंखें इनेलो विधायक हरिचंद मिड्ढा के निधन से खाली हुई सीट पर थीं... युद्ध में एक कुशल सारथी की भांति सीएम ने उपचुनावों में जीत के लिए बीजेपी के रथ को हांका तो ऐसा कैसे हो सकता था विपक्ष उसे रोकने के कोशिश न करे....और इनेलो के लिए तो ये गढ़ बचाने की कवायद जैसा होगा...क्योंकि दो बार से सीट पार्टी के कब्जे में थी...तो सीएम की घोषणाओं पर एतराज जताना लाजमी था ही....
खैर ये घोषणाएं और उसकी काट तो चुनावों के दौरान का सिलसिला होगा ही....पहले यहां जींद सीट के समीकरणों और वहां की सियासी फिजाओं के रुख को समझने की कोशिश करनी होगी....जींद एक शहरी सीट तो है लेकिन इसमें देहात के मतदाताओं की तादात भी कम नहीं है....इसलिए बीजेपी अगर इस सीट पर कब्जा चाहती है तो उसे मेहनत इनेलो और कांग्रेस से शायद कुछ ज्यादा करनी पड़े...हां ये बात भी तय है कि पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में होने की वजह ये सीट बीजेपी के लिए नाक का सवाल भी होगी...क्योंकि 2019 से पहले किसी सूरत में उपचुनाव में ढील यानि आगे की राह दुर्गम...
वैसे बीजेपी के तमाम धुरंधर महाभारत के संजय की तरह चंडीगढ़ बैठकर जींद के समीकरणों को देख भी रहे हैं और समझा भी रहे हैं....कहते हैं कि राजनीति में सिर्फ वक्त के साथ चलना चाहिए....हरिचंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्ढा की पिछले दिनों मुख्यमंत्री से हुई मुलाकात को राजनीति के जानकार लोग इसी कहावत से जोड़कर देख भी रहे हैं...हालांकि बीजेपी की टिकट पर यहां से पिछली बार के उम्मीदवार सुरेंद्र बरवाला समेत कुछ और चेहरे भी हैं जिनपर जातिगत समीकरणों को देखते हुए पार्टी दांव लगा सकती है.......
कांग्रेस की बात करें तो पहले ये तय करना होगा कि यहां चलेगी किसकी.....प्रदेश में पार्टी अध्यक्ष अशोक तंवर की चली तो फिर से प्रमोद सहवाग की उम्मीदवारी की संभावना बढ़ जाती हैं...पिछले दिनों बांगर में दो धुरंधरों की दुश्मनी दोस्ती में बदल गई..ये फैक्टर भी तो पूरा काम करेगा...वैसे यहां पूर्व मंत्री मांगेराम गुप्ता और बृजमोहन सिंगला के परिवारों को नजरअंदाज कैसे किया जा सकता है...मतलब कांग्रेस के पास भी टिकटों के अच्छे दावेदार कई हैं....
पिछली दो बार से ये सीट इनेलो के खाते में रही है....अब क्योंकि इनेलो ने अपना चश्मा बसपा के हाथी पहना दिया है तो दूर तक और साफ साफ दिख रहा होगा कि क्या कुछ करना अपनी सीट बचाने के लिए....कुछ हद तक ये विचार किया जा सकता है कि यदि कमल के साथ बात नहीं बनी तो मिट्ढा के बेटे कृष्ण का नाम ईवीएम मशीन पर चश्मे के सामने हो सकता है....लेकिन ये भी हो सकता है पार्टी इस बार किसी ऐसे चेहरे को सामने लाये जो एक दम नया हो।