24 फरवरी 1885 को सोनीपत के पास माहरा गांव में एक किसान परिवार में बच्चा जन्मा। पढाई में होशियार वह बच्चा किशोर बनते ही 19 साल की उम्र में ही पटवारी भी नियुक्त हो गया। अब भले ही पटवारी की कद्र ना हो लेकिन उस वक्त पटवारी होना अपने आप में कायदे आजम होना ही था। पटवारी बनने के बाद उन्होंने रिश्वत भी ली और तमाम व्यसन भीकरके देखे। एक दिन उनकी मुलाकात स्वामी सुबोधानंद से हुई और हरफूल सिंह पटवारी की जगह भगत फूल सिंह जैसी शख्सियत का जन्म हुआ। जिस पटवारी की आसपास के गांवों में तूती बोलती थी वह एक जमींदार के घर के सामने खडा होकर गिडगिडा रहा था कि-जमींदार मैंने तुझसे एक काम के लिए रिश्वत ली थी तूं मुझे दो कोडे मार दे ताकि मुझे प्राश्चित हो जाए।
कन्याओं के लिए अपनी ही जमीन दान कर पहला गुरुकुल खोलने की शुरुआत की। आर्थिक दिक्कतें आई तो एक दिन मंत्री चौधरी छोटूराम के दरवाजे पर लाहौर जा पहुंचे भगत फूल सिंह। दरबानों ने चौधरी साहब तक संदेश भिजवाया कि एक बाबा हरियाणा से उनसे मिलने आया है। चौधरी साहब ये कहकर बाहर दौडे की जरूर भगत फूल सिंह जी आए होंगे। उनका अंदाजा भी सही निकला और तब गुरुकुल में लाहौर से बिस्तर और तख्तों से भरी गाडी पहुंची थी। आज ये गुरुकुल विश्वविद्यालय बन चुका है।
एक दिन भगत फूल सिंह गुुरुकुल के चंदे के लिए हाथ पसारे एक गांव में पहुंचे तो देखा कि कुएं पर दलित महिलाएं पानी के इंतजार में बैठी हैं। उस दिन की महिला ने उनके बर्तनों में पानी डालने की जहमत नहीं उठाई थी। भगतफूल सिंह वहीं अनशन पर बैठ गए। जल भी त्याग दिया। गांव वाले पुरानी परंपराएं त्यागने को तैयार नहीं थे और भगत फूल सिंह अपना हठ। चौधरी छोटूराम को किसी ने इसकी खबर दी। चौधरी साहब गांव में पहुंचे और कहा कि शाम तक गांव में नया कुंआ खोदो और उसका पानी मैं भगत जी को पिलाकर ही जाऊंगा। बात के धनी चौधरी साहब की सुनी गई और सबने मिलकर नया कुआं खोदा तब जाकर भगत फूल ने पानी पिया और परांपराएं भी पानी में बह गई।
14 अगस्त 1942 का दिन था। चौधरी छोटूराम को भगत फूल सिंह के पास गुरुकुल में आना था। चौधरी साहब उस दिन पहुंच नहीं सके और इसका टेलीग्राम भी उन्होंने भिजवा दिया था कि भगत जी व्यवस्तताओं के चलते मैं नहीं पहुंच सकूंगा आप लाहौर आने का कार्यक्रम बनाएं ताकि सारी बातें विस्तार से की जा सकें।
खैर टेलीग्राम समय पर नहीं पहुंचा लेकिन भगत फूल सिंह बार-बार गुरुकुल से बाहर निकलकर देखते रहे कि कहीं चौधरी साहब का काफिला आ तो नहीं रहा। तभी दूर से 15-20 घुडसवार आते दिखाई दिए। भगत फूल सिंह मन में फूले नहीं समा रहे थे। घुडसवार पास आए और तभी एक गोली सीधे उनकी छाती में आकर लगी। भगत फूल सिंह नफरत की गोली का शिकार हो गए और मरते-मरते उनके मुंह से यही निकला कि शिक्षा ही वो हथियार है जिससे सभी बुराइयों का खात्मा किया जा सकता है। इस मुहिम को रूकने मत देना। आज 14 अगस्त और भगत फूल सिंह का पुण्य स्मृति दिवस है। भगत फूल सिंह ने हरियाणा में बेटियों को शिक्षित करने की जो लौ जलाई थी वह आज भी अनवरत जारी है। ऐसी महान आत्मा की पुण्यतिथित पर हम उनको नमन करते हैं।