कांग्रेस में रणदीप सुरजेवाला जाट मुख्यमंत्री के रूप में पार्टी की पहली पसंद हैं.
9 अगस्त 2018
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नया हरियाणा
भाजपा हाईकमान ने जहां मनोहर लाल के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा करके पार्टी के भीतर की उठापठक को लगभग विराम दे दिया है. वहीं इनेलो और कांग्रेस में उठापठक का खेल अपने चरम पर है. इनेलो में चाचा-भीतजे का विवाद जगजाहिर है. वहीं कांग्रेस में हुड्डा का विरोधी खेमा उन्हें हर मोर्चे पर कमजोर कर रहा है.
प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर हुड्डा में आंख शुरू से खटकते रहे हैं. शैलजा और कुलदीप बिश्नोई से उनके संबंधों में खटास है. इन सबसे तेज पड़ने वाले जाट नेता रणदीप सुरजेवाला बड़ी चतुराई के साथ कांग्रेस हाईकमान को साधने के बाद अपनी राजनीतिक चालें हरियाणा में भी चलने लगे हैं. कांग्रेस अगर जाट नेता को मुख्यमंत्री बनाने का विचार करेगी तो उसकी पहली पसंद रणदीप सुरजेवाला होंगे. गैर जाट मुख्यमंत्री के तौर पर कांग्रेस में कुलदीप बिश्नोई व अशोक तंवर रेस में शामिल हैं. कांग्रेस हरियाणा में दोनों कार्ड खेलकर सत्ता पाने का भरपूर प्रयास करेगी.
बांगर की धरती पर अपनी चौधर का दावा ठोंकने वाले नेताओं में बीरेंद्र सिंह, रणदीप सुरजेवाला और जयप्रकाश नेता हैं. इन का बांगर की धरती पर अपना-अपना मजबूत राजनैतिक दुर्ग है. सियासी हलचल के बीच अनगिनत बार चौधरी बीरेंद्र सिंह और जयप्रकाश की आपस में खास बनती-बिगड़ती रही है. जयप्रकाश ने देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री रहे चौधरी देवीलाल के सिपाही के तौर पर राजनैतिक करियर की शुरूआत भी बीरेंद्र सिंह के खिलाफ लोकसभा चुनाव में उतरकर की थी. इस जीत के बाद जयप्रकाश केंद्र सरकार में पेट्रोलियम मंत्री बने.
बांगर की राजनीति में दो जाट नेताओं के दिल मिले
बांगर की धरती पर राजनैतिक वर्चस्व को लेकर एक ही पार्टी के धुर विरोधी रहे कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और कलायत से आजाद विधायक जयप्रकाश धीरे-धीरे गुपचुप ढंग से एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं. जल्दी ही ये दोनों खिलाड़ी एक-साथ मंच पर दिखने की संभावनाएं हैं.
2004 में हिसार संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस टिकट को लेकर दोनों के बीच खींचतान हुई थी. हाईकमान ने रणदीप सुरजेवाला का टिकट काट जयप्रकाश को उम्मीदवार घोषित किया. उस दौरान सुरजेवाला अपना चुनाव प्रचार शुरू कर चुके थे. इसके चलते दोनों की राहें अलग हो गई. तभी से दोनों दिग्गज एक पार्टी में होने के बाद भी एक-दूसरे से दूरी बनाकर रहने लगे. राजनैतिक क्रम में 2014 में जयप्रकाश बतौर आजाद उम्मीदवार कलायत विधानसभा से विजयी हुए. उपरांत उन्होंने कैथल मुख्यालय पर ही अपना कार्यलय स्थापित कर दिया.
एक शहर में रहना मुख्य रूप से इनकी दूरियां को समाप्त करने का प्रबल कारक बन रहा है. जिले में इनेलो और भाजपा द्वारा बढ़ाई गई सियासी गतिविधियों के कारण दोनों कहीं न कहीं मजबूत ढंग से आपस में हाथ मिलाना बेहतर समझ रहे हैं. यही कारण है कि इनका एक-दूसरे के कारण रुख बदल रहे हैं. अमूमन पूर्व में रणदीप और जयप्रकाश एक दूसरे के खिलाफ मुखर होकर बोलते थे. अब दोनों के सुर बदले हुए लग रहे हैं.
अब सार्वजनिक आयोजनों में दोनों नजरें चुराने के बजाय दोस्ताना ढंग से मिलने लगे हैं.
आजाद विधायक जयप्रकाश के बेटे विकास सहारण का विवाह समारोह जेपी की राजनीति को खूब रास आया. इस समारोह में विभिन्न दलों के नेताओं के साथ-साथ चौधरी बीरेंद्र सिंह और रणदीप सुरजेवाला भी शामिल हुए. इसके उपरांत इन नेताओं के संबंधों में चली आ रही खटास मिठास में बदल गई.
रणदीप और जयप्रकाश के बीच दूरियां मिट जाने से कैथल जिले के साथ-साथ हरियाणा की सियासत में बदलाव आएगा. मैत्री संबंध कितने घनिष्ठ रहेंगे? इसकी सही तसवीर चुनाव में देखने को मिलेगी.
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